भारत द्वारा छोड़ा गया संचार उपग्रह जीसैट-5पी का प्रक्षेपण असफल रहा. जीएसएलवी-एफ़06 यान के द्वारा 25 दिसंबर 2010 को श्रीहरिकोटा से किया गया प्रक्षेपण विस्फोट के कारण विफल हो गया. उल्लेखनीय है कि इससे पहले अप्रैल 2010 में जीएसएलवी-डी का प्रक्षेपण भी सफल नहीं हो सका था.
भारतीय वैज्ञानिकों ने जीएसएलवी (GSLV: Geosynchronous Satellite Launch Vehicle) पर 18 वर्ष पहले काम करना शुरु किया था जिसमें क्रायोजेनिक इंजन का प्रयोग किया जाता है. विश्व में अब तक सिर्फ चार देशों अमेरिका, रूस, जापान और चीन को क्रायोजेनिक इंजन बनाने में महारत हासिल है. फ्रांस भी जीएसएलवी यानों का इस्तेमाल करता है, लेकिन इनके इंजन वह आयात करता है.
जीसैट-5पी उपग्रह: जीसैट-5पी उपग्रह को इसरो के बंगलौर केंद्र में विकसित किया गया था और जीसैट श्रृंखला में ये पांचवां उपग्रह था. इसकी अनुमानित उम्र 12 साल थी. जीसैट-5पी उपग्रह में 24 सी-बैंड वाले ट्रांसपॉन्डर लगे थे और इसका उद्देश्य भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली यानी इनसैट द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही संचार सेवाओं में और वृद्धि करना था. इस नए संचार उपग्रह से टीवी, टेलीमेडीसीन, टेलीशिक्षा और टेलीफ़ोन सेवाओं को बेहतर करने में मदद मिलती.
इससे पहले अप्रैल 2010 में भारतीय वैज्ञानिकों का जीएसएलवी डी मिशन सफल नहीं हो पाया था. जीएसएलवी डी 3 में पहली बार घरेलू क्रायोजेनिक टेक्नॉलॉजी का प्रयोग किया गया था और प्रक्षेपण के दौरान कोई समस्या नहीं आई थी. बल्कि जीएसएलवी डी 3 प्रक्षेपण यान अपने निर्धारित रास्ते पर उड़ान पूरी नहीं कर सका था.
जीएसएलवी: जियोसिंक्रोनस उपग्रह प्रक्षेपण यान एक ऐसा बहुचरण रॉकेट होता है जो दो टन से अधिक भार के उपग्रह को पृथ्वी से 36 हजार कि.मी. की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित करता है. यह रॉकेट अपना कार्य तीन चरणों में पूरा करता है. इसके तीसरे यानी अंतिम चरण में सबसे अधिक बल की आवश्यकता होती है. रॉकेट की यह आवश्यकता केवल क्रायोजेनिक इंजन ही पूरा कर सकता है. इसलिए बिना क्रायोजेनिक इंजन के जीएसएलवी रॉकेट का निर्माण मुश्किल होता है.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation