34 वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल को राजस्थान के जैसलमेर जिले के थईआत गाँव में डायनासोर के पदचिह्न 13 जनवरी 2014 को प्राप्त हुआ. इस समय अनेक देशों के वैज्ञानिकों का यह दल रेतीले रेगिस्तानी क्षेत्रों में डायनासोर के जीवाश्मों का अध्ययन करने के लिए जैसलमेर में है.
जीवाश्मों से संबंधित यह शोध डायनासोरों के विकास, विनाश और पैलियो-बायो-जीनोग्राफी पर केंद्रित है. वैज्ञानिकों के इस दल में भारत के वैज्ञानिक भी शामिल हैं. इसमें फ़्रांस और जर्मनी के वैज्ञानिक भी हैं.
स्लोवाकिया के डॉ. जेन स्लोगल के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के इस दल ने थईआत स्क्रैप सेक्शन की आधारिक चट्टानों पर ये पदचिह्न देखे और उन्हें टेरोसोरस (उड़ने वाले डायनासोर) के पदचिह्नों के रूप में पहचाना. इसी प्रकार टेरोसोरस की हड्डियों के टुकड़े पूर्व में राजस्थान विश्वविद्यालय के डॉ. पी.के. पांडे द्वारा प्राप्त किए गए.
खोजा गया पहला पदचिह्न केवल 5 से.मी. लंबा था, जिसकी प्रजाति का आकार और नाम ग्रैलेटर बताया गया (यह पदचिह्न को दिया गया एक विशिष्ट नाम है). दूसरा पदचिह्न लगभग 30 से.मी. लंबा था, जो तीन उंगलियों वाला पदचिह्न (ट्राइडैक्टिल फुटप्रिंट) था. इसे यूरोंटेस जाइगैंटिस नाम दिया गया.
वैज्ञानिकों का यह दल राजस्थान विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग द्वारा 6 से 9 जनवरी तक आयोजित जुरासिक सिस्टम पर 9वीं इंटरनेशनल कांग्रेस की साइडलाइंस पर राजस्थान के दौरे पर है.
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