थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति मई 2013 में साढ़े तीन वर्ष के न्यूनतम स्तर पर पहुंची

Jun 17, 2013, 14:36 IST

थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति मई 2013 में साढ़े तीन वर्ष के (वर्ष 2010 के बाद) न्यूनतम स्तर 4.7 प्रतिशत पर पहुंची.

थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति मई 2013 में साढ़े तीन वर्ष के (वर्ष 2010 के बाद) न्यूनतम स्तर 4.7 प्रतिशत पर पहुंची. लगातार चार महीनों से थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर में कमी आ रही है. ये आंकड़े 16 जून 2013 को जारी किए गए. यह थोक मूल्य सूचकांक आधार: 2004-05=100 पर निकला गया है.

खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़ने के बावजूद विनिर्माण क्षेत्र के सामान के मूल्य गिरने के कारण मुद्रास्फीति कम हुई. अप्रैल 2013 में यह दर 4.89 प्रतिशत थी. वर्ष 2012 के मई में यह दर 7.55 प्रतिशत थी.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार विनिर्माण क्षेत्र की वस्तुओं की थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति मई 2013 में 11 प्रतिशत रह गई, जबकि अप्रैल 2013में 3.41 प्रतिशत थी.

फाइबर, तिलहन और खनिजों सहित गैर-खाद्य वस्तुओं की महंगाई 4.88 प्रतिशत तक गिर गई, जबकि अप्रैल में यह दर 7.59 प्रतिशत थी, लेकिन खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति मई 2013 में बढ़कर 8.25 प्रतिशत हो गई. खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति में वृद्धि प्याज, सब्जियों, अनाज और मोटे अनाज और प्रोटीन वाली वस्तुओं के दाम बढ़ने से हुई.
 
थोक मूल्‍य सूचकांक (डब्‍ल्‍यूपीआई):
 
थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) एक मूल्य सूचकांक है जो कुछ चुनी हुई वस्तुओं के सामूहिक औसत मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है. भारत और फिलीपिन्स आदि देश थोक मूल्य सूचकांक में परिवर्तन को महंगाई में परिवर्तन के सूचक के रूप में प्रयोग करता है. थोक मूल्य सूचकांक को कैसे निकला जाता है. नीचे दिए गए उदाहरण से यह स्पष्ट है.
 
जैसे

 

मान लीजिए हमें वर्ष 2004 के लिए गेहूं का थोक मूल्य सूचकांक निकालना है. अगर  1994 में गेहूं की क़ीमत 8 रूपए प्रति किलो थी और वर्ष 2004 में यह 10 रूपए प्रति किलो है तो क़ीमत में अंतर हुआ 2 रूपए का.

अब यही अंतर अगर प्रतिशत में निकालें तो 25 प्रतिशत बैठता है. आधार वर्ष (1994) के लिए सूचकांक 100 माना जाता है, इसलिए वर्ष 2004 में गेहूं का थोक मूल्य सूचकांक होगा 100+25 अर्थात 125.

इसी तरह सभी पदार्थों के अलग-अलग थोक मूल्य सूचकांक निकाल कर उन्हें जोड़ दिया जाता है. लेकिन ऐसा करते समय अगर ये लगता है कि अर्थव्यवस्था में किसी ख़ास सामान की उपयोगिता अधिक है तो सूचकांक में उसकी हिस्सेदारी का भारांक (वेटेज) को कृत्रिम तौर पर बढ़ाया जा सकता है.

मंहगाई दर या मुद्रा स्फीति

 

गणित के हिसाब से थोक या ख़ुदरा मूल्य सूचकांक में निश्चित अंतराल पर होने वाले बदलाव को जब हम प्रतिशत के रूप में निकालते हैं, तो उसे ही मंहगाई दर या मुद्रास्फीति कहते हैं.

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