उच्च न्यायालय, दिल्ली ने 6 जनवरी 2014 को फैसला सुनाया कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी– कैग) निजी क्षेत्र की दूरसंचार कंपनियों के खातों की जांच कर सकता है.
उच्च न्यायालय, दिल्ली ने कहा कि कैग के पास दूरसंचार कंपनियों के खातों को जांचने की शक्ति और अधिकार दोनों है. बिजली, दूरसंचार के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियां आम जनता को सेवाएं प्रदान करती है. स्पेक्ट्रम के लिए लाइसेंस शुल्क अदा की जाती है और कंपनियों को होने वाला मुनाफा एक सार्वजनिक संसाधन है. लोगों को यह जानने का पूरा हक है कि जनता के खजाने में जाने वाली आमदनी उचित है या नहीं. योजना आयोग के उपाध्यक्ष के बुनियादी सुविधाओँ के सलाहकार ने बताया कि सरकार के साथ राजस्व साझा करने वाली कंपनियों को ऑडिट से कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए.
इंडिया इंक और दूरसंचार कंपनियां द्वारा इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देनी की संभावना है.
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के बारे में
• कैग के कर्तव्यों और शक्तियों का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद (149– 151) के भाग– V किया गया है.
• कैग भारतीय संघ की संचित निधि, विधानसभा वाले प्रत्येक राज्य और प्रत्येक केंद्र शासित प्रदेश द्वारा किए जाने वाले सभी खर्चों का ऑडिट करती है.
• संघ या किसी भी राज्य के सभी व्यापार, विनिर्माण, लाभ और हानि खाते, बैलेंस शीट और दूसरे सहायक खाते, व्यय, लेन–देन या खाते के रिपोर्ट ऑडिट किए जाएंगे.
• कैग केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की ऑडिट के आधार पर संसद औऱ राज्य विधानमंडल में भारत के संविधान के अनुच्छेद 151 के तहत ऑडिट रिपोर्ट पेश करता है.
• कैग केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की विनियोग खातों और वित्त खातों को प्रमाणित करता है.
• कैग कंपनी अधिनियम 1956 और कैग (डीपीसी) के अधिनियम 1971 के तहत सरकारी कंपनियों और निगमों की ऑडिट करता है.
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