नासा ने नई रॉकेट स्पेस लॉन्च प्रणाली का शुभारम्भ किया

Feb 19, 2016, 14:13 IST

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 2 फरवरी 2016 को अपने नए रॉकेट, स्पेस लॉन्च सिस्टम (एसएलएस) की घोषणा की.

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 2 फरवरी 2016 को अपने नए रॉकेट, स्पेस लॉन्च सिस्टम (एसएलएस) की घोषणा की. इस प्रणाली के माध्यम से 13 क्यूबसैट्स और बिना चालकदल वाले ऑरियन अंतरिक्ष यान को  2018 में अपनी पहली उड़ान पर भेजा जाएगा.

  • ये छोटे उपग्रह द्वितीयक अंतरिक्ष वस्तु (पेलोड) विज्ञान और प्रौद्योगिकी की जांच करेंगे, जो मंगल पर यात्रा समेत भविष्य में अंतरिक्ष में मनुष्यों की खोज के लिए रास्ता बनाने में मदद करेगा.
  • इन अंतरिक्ष वस्तुओं का चयन नासा की चुनौती और नासा के अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ वार्ता के बाद किया गया है.
  • एसएलएस की पहली उड़ान को एक्सप्लोरेशन मिशन– 1 (ईएम–1) नाम दिया गया है.
  • इन छोटे प्रयोगों को अंतरिक्ष के सूदूर गंतव्यों तक पहुंचने का दुर्लभ अवसर मुहैया कराएगा क्योंकि क्यूबसैट्स के लिए ज्यादातर प्रक्षेपित अवसर पृथ्वी की निचली कक्षाओं तक ही सीमित रही हैं.
  • इस रॉकेट में ऑरियन को अंतरिक्ष में भेजने की अभूतपूर्व शक्ति के साथ 13 छोटे उपग्रह – पेलोड जो न्यूनतम लागत में अंतरिक्ष से सम्बंधित हमारे ज्ञान को उन्नत बनाएगा.

एसएलएस द्वारा ले जाए जाने वाले क्यूबसैट्स की सूची-

पेलोड

चयन की प्रक्रिया

उद्देश्य

स्काईफायर

खोज भागीदारी के लिए नेक्स्ट स्पेस टेक्नोलॉजिज ब्रॉड एजेंसी के माध्यम से (NextSTEP ) 

  • लॉकहीड मार्टिन स्पेस सिस्टम्स कंपनी, डेनवर, कोलोराडो द्वारा विकसित किया जाएगा.
  • यह क्यूबसैट चंद्रमा के बहुत करीब से गुजरेगा, चंद्रमा की सतह के बारे में और जानकारी प्राप्त करने के लिए अपनी परिक्रमा के दौरान सेंसर डाटा लेगा.

लूनर आइसक्यूब

खोज भागीदारी के लिए नेक्स्ट स्पेस टेक्नोलॉजिज ब्रॉड एजेंसी के माध्यम से (NextSTEP ) 

  • मोरहेड स्टेट यूनिवर्सिटी, केंटुकी द्वारा बनाया जाएगा.
  • यह क्यूबसैट चंद्रमा की सतह के उपर सिर्फ 62 मील के निम्न कक्षा पर पानी बर्फ और अन्य संसाधनों की खोज करेगा.

नीयर– अर्थ एस्टेरॉयड स्काउट (एनईए स्काउट)

नासा का मानव अन्वेषण और संचालन मिशन निदेशालय (ह्यूमन एक्सप्लोरेशन एंड ऑपरेशंस मिशन डायरेक्टोरेट)

  •  यह एक क्षुद्रग्रह के लिए टोही का काम करेगा, तस्वीरें लेगा और अंतरिक्ष में उसकी स्थिति का निरीक्षण करेगा.

बायो सेंटिनेल

नासा का मानव अन्वेषण और संचालन मिशन निदेशालय (ह्यूमन एक्सप्लोरेशन एंड ऑपरेशंस मिशन डायरेक्टोरेट)

यह अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने के दौरान जीवित पदार्थों पर अंतरिक्ष के विकिरण के प्रभावों का पता लगाने, मापने और तुलना करने के लिए खमीर का उपयोग करेगा. 

लूनर फ्लैशलैइट

नासा का मानव अन्वेषण और संचालन मिशन निदेशालय (ह्यूमन एक्सप्लोरेशन एंड ऑपरेशंस मिशन डायरेक्टोरेट)

  • यह बर्फ के चट्टानों को खोजेगा और चंद्रमा की सतह से कहां से संसाधनों को निकाला जा सकता है, उन स्थानों की पहचान करेगा.

CuSP

नासा का विज्ञान मिशन निदेशालय (साइंस मिशन डायरेक्टोरेट)

  • यह अंतरिक्ष में कणों और चुंबकीय क्षेत्रों को मापने, अंतरिक्ष के मौसम की निगरानी के लिए स्टेशनों के नेटवर्क की व्यावहारिकता की जांच करने वाला अंतरिक्ष मौसम स्टेशन है. 

लूना एच–मैप

नासा का विज्ञान मिशन निदेशालय (साइंस मिशन डायरेक्टोरेट)

चंद्रमा के दक्षिणी गोलार्द्ध में बने गड्ढ़ों और अन्य स्थायी छाया वाले क्षेत्रों में हाइड्रोजन का पता लगाएगा.

 

  • नासा के क्यूब क्वेस्ट चैलेंज जिसे नासा का अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी मिशन महानिदेशालय प्रायोजित कर रहा है. इसके माध्यम से तीन अतिरिक्त पेलोड को चुना जाएगा.
  • इसे छ: अंतरिक्ष यान प्रणोदन और संचार तकनीक के क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है. एसएलएस की पहली उड़ान पर जाने के लिए क्यूबसैट निर्माताओं को चार दौर में होने वाली प्रतियोगिता में हिस्सा लेना होगा.
  • इस आधार पर 2017 में मिशन पर उड़ान भरने के लिए पेलोड का चयन किया जाएगा.
  • नासा ने अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के लिए पेलोड्स हेतु तीन स्लॉट भी आरक्षित किए हैं. इन तीन पेलोड्स के उड़ान भरने पर चर्चा जारी है और इनकी घोषणा बाद में की जाएगी.
  • अपनी पहली उड़ान के दौरान एसएलएस चंद्रमा के पार स्थिर कक्षा में ओरियन अंतरिक्ष यान को भी लॉन्च करेगा और चालक दल के साथ पहली उड़ान से पहले ओरियन के एकीकृत प्रणाली का प्रदर्शन करेगा एवं एसएलएस रॉकेट का प्रदर्शन करेगा.
  • ईएम–1 पर उड़ान भरने वाले एसएलएस के पहले विन्यास को ब्लॉक I कहा जाता है औऱ इसमें न्यूनतम 70 मिट्रिक टन (77 टन) भार ले जाने की क्षमता होगी और यह दोहरे बूसटर्स एवं चार आरएस–25 इंजन से संचालित होगा.
  • क्यूबसैट्स को ऊपरी चरण से ओरियन के अलग होने और उसके सुरक्षित दूरी पर पहुंच जाने के बाद लगाया जाएगा.
  • प्रत्येक पेलोड को ओरियन स्टेज एडॉप्टर पर लगे डिस्पेंसर में से स्प्रिंग मैकेनिज्म के जरिए बाहर निकाला जाएगा.
  • इसके  बाद, क्यूबसैट्स के ट्रांसमीटरों को चालू किया जाएगा और पृथ्वी पर स्थित स्टेशन इन छोटे उपग्रहों की कार्यक्षमता के निर्धारण के लिए उनकी आवाज सुनेंगें.

 

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