कोलकाता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में जहरीली शराब कांड में राज्य सरकार द्वारा घोषित मुआवजे पर 6 फरवरी 2012 को अंतरिम रोक लगा दी. कोलकाता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जयनारायण पटेल और न्यायाधीश न्यायमूर्ति संबुद्ध चक्रवर्ती की खंडपीठ ने मुआवजा राशि देने के सरकारी निर्णय पर 8 सप्ताह के लिए अंतरिम स्थगनादेश जारी कर दिया.
कोलकाता उच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं (चित्तरंजन पंडा और सुब्रत मुखर्जी) की याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जयनारायण पटेल और न्यायाधीश न्यायमूर्ति संबुद्ध चक्रवर्ती की खंडपीठ ने राज्य में सीआइडी के डीआइजी तथा आबकारी आयुक्त से घटना के संबंध में 6 सप्ताह के भीतर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया. साथ ही राज्य सरकार को भी अपना पक्ष रखने के लिए 8 सप्ताह का समय दिया.
अधिवक्ता और याचिकाकर्ता चित्तरंजन पंडा और सुब्रत मुखर्जी ने जहरीली शराब पीकर मारे गए लोगों के लिए मुआवजा दिए जाने के सरकार के निर्णय को युक्तिहीन तथा असंगत करार देते हुए इसे एक गलत परंपरा की शुरुआत करने वाला बताया. कोलकाता उच्च न्यायालय के खंडपीठ के सामने दोनों अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि जिन्होंने शराब पी थी उन्होंने बुद्धि विवेक से ऐसा किया था. मरने वालों को किसी ने जबरन शराब नहीं पिलाई थी. ऐसे में, मुआवजा दिए जाने से एक गलत परंपरा का जन्म हो सकता है. साथ ही मुआवजा दिए जाने से अत्यंत गरीबों में जहरीली शराब पीकर मरने और परिजनों को आर्थिक मदद दिलाने की प्रवृत्ति भी बढ़ सकती है. जबकि वरिष्ठ सरकारी अधिवक्ता अशोक बनर्जी ने मुआवजे की घोषणा को राज्य सरकार का मानवीय आधार पर लिया गया फैसला बताया.
ज्ञातव्य हो कि 14 दिसंबर 2011 को पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के विष्णुपुर-संग्रामपुर गांव में जहरीली शराब पीकर 172 लोगों की मौत हुई थी. पश्चिम बंगाल राज्य सरकार द्वारा जहरीली शराब पीकर मारे गए लोगों के परिजनों को 2-2 लाख रुपये के सरकारी मुआवजे देने की घोषणा की गई थी.
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