प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के अध्यक्ष डॉ. सी रंगराजन ने आर्थिक दृष्टिकोण 2011-12 (Economic Out Look 2011-12) नई दिल्ली में 1 अगस्त 2011 को जारी किया. इस रिपोर्ट के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं.
• वर्ष 2011-12 में आर्थिक विकास 8.2 प्रतिशत का लक्ष्य
• वर्ष 2010-11 में कृषि विकास की वृद्धि दर 6.6 प्रतिशत रही. वर्ष 2011-12 में कृषि विकास दर वृद्धि 3.0 प्रतिशत का लक्ष्य
• वर्ष 2010-11 में औद्योगिक विकास दर 7.9 प्रतिशत रही. वर्ष 2011-12 में इसका 7.1 प्रतिशत का लक्ष्य
• वर्ष 2009-10 में सेवाओं में 9.4 प्रतिशत की दर से विकास हुआ. वर्ष 2011-12 में इसके विकास का लक्ष्य 10.0 प्रतिशत रहने का अनुमान
• 8.2 प्रतिशत की लक्षित विकास दर पिछले वर्ष की तुलना में कम थी, परंतु वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए इसे उच्च विकास दर के तौर पर स्वीकार किया जाना चाहिए.
• वैश्विक आर्थिक और वित्तीय परिस्थिति में सुधार की संभावना कम.
• नौ प्रतिशत की विकास दर प्राप्त करने के लिए स्थिर निवेश दर में वृद्धि किया जाना आवश्यक.
• वर्ष 2010-11 में 36.3 प्रतिशत और वर्ष 2011-12 में 36.7 प्रतिशत की निवेश दर का आकलन.
• सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में घरेलू बचत दर वर्ष 2010-11 में 33.8 प्रतिशत और वर्ष 2011-12 में 34.0 प्रतिशत का आकलन था.
• दीर्घावधि औसत के अनुमान के अनुसार वर्ष 2011 में मानसून के 90 से 96 की परिधिमें रहने की संभावना. परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन क्षेत्र का विकास तीन प्रतिशत की दर से होने का अनुमान.
• औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की समीक्षित श्रंखला से उत्पादन स्तर का पता चलता है जो पुरानी श्रंखला की तुलना में बेहतर है.
• उत्पादन विकास का पुरानी श्रंखला के अनुरूप वित्तवर्ष 2007-08 में आकलन किया गया था जबकि वित्तवर्ष 2008-09 और वित्तवर्ष 2009-10 में अधिक आकलन किया गया था.
• औद्योगिक उत्पादन पर वैश्विक संकट का बहुत प्रभाव पड़ा जिसका संकेत पुरानी श्रंखलाओं में मिलता है.
• पुरानी श्रंखलाओं द्वारा 7.8 प्रतिशत के उत्पादन विकास का संकेत मिलता था, उसकी तुलना में वित्तवर्ष 2011 में उत्पादन विकास दर 8.2 प्रतिशत रही जो अधिक है.
• वित्तवर्ष 2010-11 में चालू खाता घाटा (सकल घरेलू उत्पापद का 2.6 प्रतिशत) 44.3 अरब डॉलर था और वित्तवर्ष 2011-12 में इसके (सकल घरेलू उत्पालद का 2.7 प्रतिशत) 54.0 अरब डॉलर रहने का अनुमान.
• वित्तवर्ष 2010-11 में वाणिज्यिक व्यापार घाटा 130.5 अरब डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद का 7.59 प्रतिशत है और वित्तवर्ष 2011-12 में इसके 154.0 अरब डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद का 7.7 प्रतिशत रहने की संभावना.
• वित्तवर्ष 2010-11 में अलक्ष्य व्यापारिक बेशी 86.2 अरब डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद का पांच प्रतिशत है और वित्तवर्ष 2011-12 में इसके 100.0 अरब डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद का पांच प्रतिशत रहने की संभावना.
• वित्तवर्ष 2010-11 में पूंजी प्रवाह 61.9 अरब डॉलर रहा और वर्ष 2011-12 में इसके 72.0 प्रतिशत रहने की संभावना.
• वित्तवर्ष 2011-12 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 35 अरब डॉलर अनुमानित जबकि वित्तविर्ष 2010-11 में यह 23.4 अरब डॉलर के स्तर पर था.
• विदेशी औद्योगिक निवेश 14 अरब डॉलर रहने का अनुमान जो पिछले वर्ष 30.3 अरब डॉलर के स्तर के आधे से भी कम है.
• वित्तवर्ष 2010-11 में संचयों में 15.2 अरब डॉलर की वृद्धि. वित्तवर्ष 2011-12 में इसके 18.0 अरब डॉलर होने का आकलन.
• मार्च 2012 में मुद्रास्फीति दर 6.5 प्रतिशत रहने का आकलन.
• जुलाई-अक्टूबर 2011 में मुद्रास्फीति दर नौ प्रतिशत के स्तर पर बनी रहेगी. नवंबर2011 में कुछ राहत मिलने की संभावना है और मार्च 2012 तक इसमें 6.5 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान.
• उपलब्ध खाद्यान्न भंडारण को उदारता के साथ जारी करना होगा.
• मांग दबाव का मुकाबला करने में वित्तीय नीति की महत्वपूर्ण भूमिका सुनिश्चित करना होगा ताकि वित्तीय घाटा बजटीय स्तर से अधिक न होने पाए.
• जब तक मुद्रास्फीतिमें गिरावट का रुझान न आ जाए, तब तक भारतीय रिजर्व बैंक को कड़ी मौद्रिक नीतिका पालन करना होगा.
• वित्तवर्ष 2011-12 के बजट अनुमानों में उल्लिखित वित्तीय लक्ष्य को प्राप्त करना होगा, ताकि चुनौतियों का सामना किया जा सके.
• वित्तवर्ष 2011-12 के लिए बजट अनुमान – केंद्र के लिए 4.7 प्रतिशत, राज्यों के लिए 2.1 प्रतिशत और बजटीय देनदारियों सहित समेकित वित्तीय घाटा 6.8 प्रतिशत.
• सरकार को अधिक राजस्व प्राप्त करने और कर बकायों के मामलों को हल करने के लिए प्रयास बढ़ाने होंगे.
• जिन खर्चों को टाला जा सकता है उन्हें कम किया जाए और राजस्व बढ़ाने के लिए उपाय शुरू किए जाएं.
• राज्यों के साथ चलने वाले मामलों का निपटारा किया जाए और माल एवं सेवा कर आरंभ किया जाए.
• राज्य सरकारों की देनदारियां सीमित करने के लिए ऊर्जा क्षेत्र में वितरण प्रणाली में सुधार किया जाए.
• राज्य सरकारों की देनदारियां सीमित करने के लिए ऊर्जा क्षेत्र में वितरण प्रणाली में सुधार किया जाए.
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