भारत की वायु की गुणवत्ता जांच करने वाली पहली मोबाइल एप्प सफ़र-एयर महाराष्ट्र के पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मिट्रिओलॉजी (आईआईटीएम) में 17 फरवरी 2015 को शुरू की गई.
सफ़र हवा की गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान की प्रणाली है जो पहली बार राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान वर्ष 2010 में दिल्ली में शुरू की गई थी. सफर के परियोजना निदेशक गुफरान बेग हैं.
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) ने रीयलटाइम में ऑनलाइन मेट्रो वायु गुणवत्ता सूचना सेवा प्रदान करने हेतु मोबाइल एप्प सफ़र-एयर शुरू की. वर्तमान में इस मोबाइल एप्प की सेवा पुणे और दिल्ली शहर में ही उपलब्ध है और मई 2015 तक यह मुंबई में भी उपलब्ध हो जाएगी.
यह प्रणाली आईआईटीएम और भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा संयुक्त रूप से चलाया जा रहा है और यह पूर्वानुमान मॉडल आईआईटीएम के सुपर कंप्यूटर आदित्य द्वारा संचालित है.
- सफ़र-एयर वर्तमान में हवा के प्रदूषण स्तर की सूचना उपलब्ध कराने वाली भारत में पहली मोबाइल एप्प सेवा है.
- सफ़र-एयर एप्प को पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मिट्रिओलॉजी (आईआईटीएम) के वैज्ञानिकों ने विकसित किया.
- यह एप्लिकेशन नागरिकों को उनके शहर के हवा के प्रदूषण स्तर की सूचना रीयलटाइम में उपलब्ध कराने में सक्षम होगी.
- यह एप्लिकेशन उपयोगकर्ता के वर्तमान स्थान पर एक रंग कोडित प्रणाली के माध्यम से वर्तमान डेटा और हवा की गुणवत्ता की पूर्वानुमान सूचना प्रदान करेगी. हरा रंग वायु प्रदूषण के न्यूतम स्तर का, पीला रंग सूक्ष्म प्रदूषण और लाल खतरनाक स्तर का सूचक है.
- एप्लिकेशन को शुरू में गूगल के एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम के स्मार्टफोन्स पर और बाद में एप्पल के आईओएस स्मार्टफोन्स पर उपलब्ध होगा.
- उपयोगकर्ता एप्प की जानकारी ट्विटर, फेसबुक और ईमेल के माध्यम से साझा भी कर सकते हैं.
भारत में हवा के प्रदूषण का स्तर
भारत के मेट्रो शहरों में हवा के प्रदूषण का स्तर विशेषत: दिल्ली में बहुत तेजी से बिगड़ रह है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार भारत में 1.9 करोड़ लोग वायु प्रदूषण के कारण प्रति वर्ष मृत्यु के शिकार हो जाते हैं.
मई 2014 में डब्ल्यूएचओ द्वारा और फरवरी 2014 में येल विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार नई दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर भारत और दुनिया में सबसे अधिक है.
वर्ष 2010 के बाद से नई दिल्ली की हवा में नवंबर 2014 और जनवरी 2015 के बीच 2.5 माइक्रोमीटर व्यास से कम आकार के पार्टिकुलेट मैटर्स सबसे ज्यादा थे.
पार्टिकुलेट मैटर्स क्या हैं?
पार्टिकुलेट मैटर्स में सल्फेट्स, नाइट्रेट, अमोनिया, सोडियम क्लोराइड, कार्बन ब्लैक, खनिज धूल और जल शामिल है. इन सभी को सबसे खतरनाक वायु प्रदूषक माना जाता है. वायु प्रदूषण से सांस संबंधी बीमारियां होती हैं. इनमें अस्थमा और फेफड़े से संबंधी बीमारी भी शामिल है. वायु प्रदूषण फेफड़ों के कैंसर का कारक भी हो सकता है.
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 10 माइक्रोन या उससे कम व्यास के कण स्वास्थ्य को ज्यादा नुकसान पहुँचाते हैं. यह कण फेफड़ों को ज्यादा प्रभावित करते हैं.
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