भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकिंग स्ट्रक्चर इन इंडिया-द वे फॉरवर्ड नामक चर्चा पत्र को 27 अगस्त 2013 को जारी किया. चर्चा पत्र में बैंकिंग संरचना के पुनरभिविन्यास से संबंधित कई विषयों पर चर्चा की गई, इनमें प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के उच्च विकास के वित्तपोषण, विशेष सेवाएं प्रदान करने और वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाना शामिल है. चर्चा पत्र में वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए व्यापार बंद के प्रबंधन हेतु बदलाव से उत्पन्न चिंताओं को दूर करने की जरूरत पर भी जोर दिया गया.
आरबीआई ने 'बैंकिंग स्ट्रक्चर इन इंडिया- द वे फॉरवर्ड' पेपर में कहा, बैंकिंग के फाइनेंशियल इनक्लूजन के मकसद और भौगोलिक पहुंच तभी बढ़ सकती है, जब एंट्री प्रोसेस पाबंदी लगाने वाली न हो.
पेपर में भारत में नए बैंक खोलने हेतु लगातार विचार को सही माना गया, जबकि मौजूदा व्यवस्था यह है कि नए बैंकों खोलने की प्रक्रिया अलग-अलग अंतराल में शुरू की जाती है. आरबीआई ने लाइसेंसिंग पॉलिसी को तीन से 5 वर्ष की शेल्फ लाइफ के साथ सही माना है.
बैंकिंग व्यवस्था इन इंडिया-द वे फॉरवर्ड, चर्चा पत्र के मुख्य बिंदु
• पत्र में केंद्रीय बैंक ने कहा,'बैंकिंग सेक्टर की गुणवत्ता सुधारने और प्रतिस्पद्रधा को बढ़ावा देने के लिए यह जरूरी है कि नए बैंकों के प्रवेश के लिए नियम सख्त किए जाएं जिससे कि बेहतर इकाइयां ही आवेदन कर सकें.
• घरेलू बैंकों के लिए 4-टीयर व्यवस्था का सुझाव देते हुए नए बैंकों के प्रवेश के नियम सख्त करने की बात कही.
• प्रस्तावित 4-टीयर व्यवस्था में रिजर्व बैंक ने टॉप टीयर में 3-4 बड़े बैंकों को उनकी विदेशी शाखाओं समेत रखने का प्रस्ताव दिया है, जिनकी देश और विदेश दोनों स्थानों पर उपस्थिति हो.
• टीयर 4 में निजी मालिकाना हक वाले लोकल बैंक और सहकारी बैंकों को शामिल करने का प्रस्ताव है.
• पत्र में कहा गया है कि टीयर 2 में मध्यम आकार के विस्तृत अर्थव्यवस्था वाले बैंक शामिल होने हैं और उसके बाद टीयर 3 में पुराने निजी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और बहु-राज्यीय सहकारी बैंकों की एक श्रेणी होनी है.
• एकीकरण के मामले में आरबीआई ने सहकारिता के आधार पर नपे-तुले कदम की बात की है और इसे अनिवार्य न बनाने पर जोर दिया.
• मालिकाना हक मसले पर पेपर में एक बार फिर से सरकारी स्वामित्व को घटाकर 51 प्रतिशत से नीचे लाने की बात की गई, ताकि घाटा के बोझ से दबी सरकार को बैंकों को फंड देने के झंझट से बचाया जा सके. ज्यादातर बैंकों के पास निजी पूंजी जुटाने की आजादी नहीं है.
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