भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं या सहायक कंपनियों को वित्तीय और डेरिवेटिव उत्पादों को बेचने की अनुमति संबंधी अधिसूचना 12 मई 2014 को जारी की जिसे घेरलू बाजार में बेचने की अनुमति नहीं है. यह अनुमति केवल भारत के बाहर स्थापित वित्तीय केंद्रों जैसे न्यूयॉर्क, लंदन, सिंगापुर, हांगकांग, फ्रैंकफर्ट, दुबई और अन्य के लिए ही है.
अधिसूचना में बैंकों की विदेशी शाखाओं या विदेशी अधिकार क्षेत्र में इन उत्पादों के साथ काम करने वाली उनकी सहायक कंपनियों को इन उत्पादों की पर्याप्त जानकारी, समझ और जोखिम प्रबंधन की क्षमता होने की बात भी कही गई है. अन्य केंद्रों पर बैंक सिर्फ उन्ही उत्पादों को जनता के सामने प्रस्तुत कर सकेगा जिसे खासतौर पर भारत में बेचने की अनुमति है.
अधिसूचना में आरबीआई ने भारतीय बैंकों से उनकी शाखाओं और विदेश में सहायक कंपनियों से विदेश में मुहैया कराए जाने वाले उत्पाद संबंधित देश के नियमों के अनुसार है या नहीं, उसे बेचने के लिए उनके बोर्ड से पहले से अनुमति ली गई है या नहीं और उन विदेशी न्यायालयों में उपयुक्त प्राधिकारी के बाबत भी सवाल पूछे हैं.
अधिसूचना में आरबीआई ने बैंकों से बैंकिंग विनियम अधिनियम 1949 (मामले के आधार पर) धारा 6(1)(m) या 19(1)(c) के तहत आरबीआई या भारत सरकार से आवश्यक अनुमति लेने को कहा है जो बैंकिंग विनियम अधिनियम 1949, निजी क्षेत्र के बैंकों के संबंधित संविधि को अनुमति नहीं देता है.
आरबीआई ने भारतीय बैंकों के विदेशी शाखाओँ में कार्य करने संबंधी नियमों में ढील देते हुए 1 दिसंबर 2008 को पारित हुए नियमों को संशोधित किया है, जिसके अनुसार घरेलू ऋणदाताओं के लिए जटिल डेरिवेटिव उत्पादओं को पेश करने से पहले आरबीआई से सलाह लेना अनिवार्य था.
आरबीआई का यह कदम भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं को अपनी आमदनी सुधारने में मदद करेगी.

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