भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 9 मई 2014 को भारतीय कंपनियों को भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं और सहायक बैंकों से भारतीय बैंकिंग प्रणाली द्वारा पुनर्वित्त या रुपयों में लिए गए ऋण के भुगतान के लिए विदेशी व्यावसायिक ऋण (External Commercial Borrowings, ईसीबी) जुटाने पर प्रतिबंध लगा दिया. ईसीबी नीति में बदलाव के लिए केंद्रीय बैंक की अधिसूचना तत्काल प्रभाव से लागू हो गई है.
आरबीआई की अधिसूचना के अनुसार, ये प्रतिबंध आउट फाइनैंसिंग, बुनियादी ढांचों के लिए दिए जाने वाले वित्त और स्पेक्ट्रम आवंटन एवं अन्य पुनर्वित्त भुगतान के मामलों में लागू होगा. आरबीआई के ये निर्देश विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और 11 (1) के तहत जारी किए गए हैं.
ईसीबी ऋण घरेलू ऋण की तुलना में बहुत सस्ता होता है और इसी कारण कुछ कंपनियां इसका फायदा उठाती हैं.
इससे पहले अप्रैल 2014 में आरबीई ने बैंकों को विदेशी संयुक्त उद्यमों और भारतीय कंपनियों की सहायक कंपनियों पर विदेशी मुद्रा ऋण का लाभ उठाकर रुपये में लिए गए ऋण के भुगतान पर भी रोक लगाई थी.
विदेशी व्यावसायिक ऋण (ईसीबी, External Commercial Borrowing, ECB)
विदेशी व्यावसायिक ऋण एक प्रकार मौद्रिक उपकरण है जिसके प्रयोग से कंपनियां तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम विदेशी पूंजी के प्रवाह के सुनिश्चित कर पाते हैं. ईसीबी में वाणिज्यिक बैंकों से ऋण, क्रेता क्रेडिट, विक्रेता क्रेडिट, प्रतिभूत उपकरण (जैसे फ्लोटिंग व निश्चित दरों नोट, आदि) को शामिल किया जाता है. ऋणी इकाई ऋण का अधिकतम 25 फीसदी अपने पूर्व ऋण के भुगतान के लिए कर सकती है जबकि 75 ऋण का इस्तेमाल नयी परियोजनाओं के लिए करना है. भारत में ईसीबी की देख-रेख भारतीय रिजर्व बैंक तथा वित्त मंत्रालय का आर्थिक मामलों का विभाग करता है. इंफ्रास्ट्रक्चचर तथा ग्रीनफील्ड परियोजनाओं और टेलीकॉम क्षेत्र के लिए अधिकतम 50 फीसदी ईसीबी की अनुमति है.

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