नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) ने मंगल ग्रह पर पानी की मौजूदगी की घोषणा की. नासा के मार्स रिकानाससेंस ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट को मंगल ग्रह पर तरल अवस्था में सॉल्ट पेरोक्लोट होने के सबूत मिले हैं. इस शोध की जानकारी नेचर जिओसाइंस पत्रिका में 28 सितंबर 2015 को प्रकाशित हुई.
सैटेलाइट से मिले आंकड़ों से पता चला कि चोटियों पर दिखने वाली गहरे रंग की लकीरें पानी और नमक के कारण बनी हैं. नासा के अनुसार सॉल्ट पेरोक्लोरेट मंगल पर तरल अवस्था में मौजूद है जिसके कारण मंगल ग्रह की सतह और ढलानों पर लकीरें बनी हुई हैं. सॉल्ट पेरोक्लोरेट नाम का यह नमक -70 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी पानी को जमने से बचाता है.
मंगल पर गरनी क्रेटर
मंगल ग्रह पर मौजूद गहरी लकीरें मौजूद हैं जिन्हें रेकरिंग स्लोप लाइंस कहा जाता है. यह सैंकड़ों मीटर लम्बी लकीरें हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह लकीरें तरल पदार्थ के बहने से बनी हैं.
इसका अर्थ है कि इनके बनने में यहां पानी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. स्पेक्ट्रोमीटर के अनुसार हाइड्रेटेड लवण की मौजूदगी के कारण बनी लकीरों को बहुत से आरएसएल स्थानों पर देखा गया है. एमआरओ की हाई रेसोल्यूशन इमेजिंग साइंस एक्सपेरिमेंट के अनुसार मंगल ग्रह पर इस तरह की विभिन्न आरएसएल लोकेशन्स का पता चला है.
पेरोक्लोरेट में मैग्नीशियम परक्लोरेट, मैग्नीशियम एवं सोडियम परक्लोरेट का मिश्रण मौजूद है. परक्लोरेट की पहले भी मंगल पर मौजूदगी दर्ज की जा चुकी है.
निष्कर्ष
मंगल ग्रह पर तरल पानी की मौजूदगी बताती है कि यह ग्रह अभी भी भौगोलिक रूप से सक्रिय है. यह इस धारणा को भी बल प्रदान करती है कि रेकरिंग स्लोप पर लाइनों की मौजूदगी पानी का संकेत हैं.
मंगल ग्रह
मंगल ग्रह हमारे सौर मंडल का चौथा ग्रह है अर्थात सूर्य की परिक्रमा चौथे नंबर पर करता है. इसका नाम रोम के युद्ध देवता के नाम पर रखा गया है. मंगल की सतह पर मौजूद पर्वतों में लौह की मात्रा अधिक होने एवं धूल भरे वातावरण के कारण यह लाल दिखाई देता है. मंगल ग्रह पर पृथ्वी की तुलना में एक-तिहाई गुरुत्वा बल है. सितंबर 2014 तक विश्व भर से 40 से अधिक मिशन मंगल ग्रह के लिए शुरू किए गए थे.
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