पाकिस्तान की मलाला युसुफजई को लड़कियों के लिए शिक्षा के अधिकारों हेतु लड़ने हेतु विश्व बाल पुरस्कार (वर्ल्ड चिल्ड्रेंस प्राइज अर्थात डब्ल्यूसीपी) के लिए नामित किया गया. इसकी घोषणा स्वीडन में 6 फरवरी 2014 को की गई. इस वर्ष पुरस्कार के लिए मलाला युसुफजई के साथ ही यूएसए के जॉन वुड और नेपाल की इंदिरा रानामगर को भी नामित किया गया.
डब्ल्यूसीपी के 15-सदस्यीय अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार निर्णायक मंडल के अनुसार, इस पुरस्कार के लिए मलाला का नाम इसलिए चुना गया, क्योंकि वह पाकिस्तान में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में लड़कियों के शिक्षा के अधिकारों के लिए खड़ी होने वाली लड़की है.
विश्व बाल पुरस्कार (डब्ल्यूसीपी) बच्चों के नोबल पुरस्कार के रूप में भी जाना जाता है. शैक्षिक कार्यक्रमों के जरिये 110 देशों के 60000 विद्यालयों में बच्चों के अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए इसकी स्थापना वर्ष 2000 में हुई थी.
डब्ल्यूसीपी कार्यक्रम 2014, 5 फरवरी से 15 अक्तूबर 2014 तक खुला है.
मलाला युसुफजई के बारे में
• सभी बच्चों के शिक्षा के अधिकार के लिए अपने जिहाद हेतु मलाला नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित हुई थी.
• विश्व बाल पुरस्कार 2014 के लिए उनका नामांकन लड़कियों के शिक्षा के अधिकार हेतु उनकी साहसिक और जोखिम भरी लड़ाई के लिए किया गया.
• 11 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए आवाज उठानी शुरू कर दी थी.
• तालिबान द्वारा पाकिस्तान की स्वात घाटी में लड़कियों के स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगाने के बाद भी वे स्कूल जाती रही थीं.
• 15 वर्ष की उम्र में स्कूल से घर लौटते समय तालिबान ने उन्हें गोली मार दी थी और वे मृतप्राय हो गई थीं, किंतु सौभाग्य से बच गईं.
जॉन वुड के बारे में
• उन्होंने पिछले 15 वर्ष से बच्चों के शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी है. अपने इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट में प्रबंधक का अपना पद छोड़ दिया. उनका सपना विश्वभर में बच्चों को स्कूल जाने का अवसर प्रदान कर गरीबी से लड़ना है.
• उनका विश्वास है कि शिक्षित बच्चे अपने अधिकारों की माँग करने में ज्यादा समर्थ होते हैं और वे गुलामी, खरीदफरोख्त और दुर्व्यवहार से अपना बचाव कर सकते हैं.
• वे 'रूम टु रीड (पढ़ने का मौका)' नामक एक संगठन चलते हैं, जो अब तक विश्व के कुछ निर्धनतम देशों में लगभग 1700 स्कूल और 15000 स्कूल-पुस्तकालय निर्मित कर चूका है.
• उन्होंने स्थानीय भाषा में 874 किताबें प्रकाशित की हैं और किताबों से वंचित गरीब बच्चों को 10 मिलियन से ज्यादा किताबें दे चुके हैं.
बांग्लादेश, कंबोडिया, भारत, लाओस, नेपाल, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, वियतनाम, जिंबाब्वे और तंजानिया में कार्यरत रूम टु रीड संगठन का लड़कियों की शिक्षा पर विशेष फोकस है और उसने अब तक 20000 से ज्यादा लड़कियों को अपनी शिक्षा पूरी करने में मदद की है. यह संगठन 7.8 मिलियन बच्चों तक पहुँच चुका है.
इंदिरा रानामगर के बारे में
• इंदिरा रानामगर को इस पुरस्कार के लिए नेपाल में कैदियों के बच्चों के लिए अपने 20 वर्ष संघर्ष के लिए नामित किया गया है.
• वे अत्यंत गरीबी में पली-बढ़ीं और स्कूल जाने के लिए संघर्ष किया.
• उन्होंने प्रिजनर्स असिस्टेंस नेपाल (पीए) नामक संगठन की स्थापना की.
पीए नामक उनके संगठन ने देश की गंदी और तंग जेलों से 1000 से ज्यादा बच्चों को छुड़ाया. ये बच्चे इसलिए जेल में डाल दिए गए थे, क्योंकि उनके माँ-बाप के जेल जाने के बाद उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था. पीए ने इन बच्चों को छुड़ाकर अपने तीन बालघरों में रखा, जहाँ उन्हें शिक्षा प्रदान की जाती है और सुरक्षित बचपन उपलब्ध कराया जाता है. पीए काठमांडू के बाहर जनकुरी नामक एक बालघर का संचालन करता है. आसपास के गाँवों के बच्चों को भी स्कूल आने दिया जाता है.
विश्व बाल पुरस्कार (डब्ल्यूसीपी)
विश्व बाल पुरस्कार (डब्ल्यूसीपी) विश्व का एक विशिष्ट और सबसे बड़ा वार्षिक वैश्विक शिक्षा कार्यक्रम है. अब तक यह लगभग 35 मिलियन बच्चों को उनके अधिकारों और लोकतंत्र की शिक्षा दे चुका है. यह 'और अधिक मानवीय संसार' के लक्ष्य के साथ काम करता है, जहाँ सभी लोग बच्चों के अधिकारों का सम्मान करते हों. यह बड़ों को बच्चों के अधिकारों, लोकतंत्र और वैश्विक मैत्री की शिक्षा देता है. बाल अधिकारों के लिए विश्व बाल पुरस्कार के प्रत्याशियों के रूप में डब्ल्यूसीपी चाइल्ड जूरी द्वारा हर साल तीन 'बाल अधिकार नायकों' का चयन किया जाता है.
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