मिजोरम सरकार ने 12 अप्रैल 2014 को त्रिपुरा के छह राहत शिविरों में रहने वाले सभी ब्रू शरणार्थियों को तीन माह के भीतर वापस भेजने से मना कर दिया.
इससे पहले 8 अप्रैल 2014 को राज्य सरकार गैर सरकारी संगठन समन्वय समीति की मांग मानते हुए ब्रू शरणार्थियों को तीन माह के भीतर वापस भेजने को राजी हो गई थी. सरकार चल रही चुनाव प्रक्रिया के खत्म होते ही सभी ब्रू शरणार्थियों को वापस भेजने की बात मान गई थी. इसके अलावा राज्य सरकार वापस जाने से मना करने वाले शरणार्थियों के नाम मतदाता सूची से हटाने को भी तैयार हो गई थी.
ब्रू शरणार्थी कौन हैं?
ब्रू शरणार्थिय़ों को रियांग शरणार्थी भी कहते हैं. ये मूल रूप से मिजोरम के आइजल जिले के माम्मित सब– डिविजन के निवासी हैं. वे उत्तरी त्रिपुरा के कंचनपुरा सब डिविजन में 29 अक्टूबर 1997 से आना शुरु हो गए थे.
ब्रू शरणार्थियों के पलायन की मुख्य वजह –
• मिजो समुदाय द्वारा ब्रू समुदाय की विशेष स्वायत्त जिला परिषद की मांग का विरोध.
• मिजो समुदाय से ब्रू समुदाय की पारंपरिक प्रतिद्वंद्विता.
रियांग या ब्रू शरणार्थी त्रिपुरा के 21 अनुसूचित जनजातियों में से एक हैं और केंद्र सरकार की जनसंख्या के दौरान गलती से इनके नाम जोड़ दिए गए थे.
ब्रू शरणार्थियों की भाषा– ये कोकबोरोक भाषा का इस्तेमाल करते हैं जिसे स्थानीय भाषा में काउ ब्रू कहते हैं. यह तिब्बती– बर्मी मूल से बनी भाषा है.
वतन वापसी (रिपैट्रिएशन) क्या है?
इस प्रक्रिया के तहत लोग अपने मूल निवास या देश लौट जाते हैं. इसमें शरणार्थियों का वापस अपने देश लौटना या युद्ध के बाद सैन्य कर्मियों का वापस लौटना शामिल होता है.

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