राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 336 शिक्षकों को उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया. उन्होंने यह सम्मान शिक्षक दिवस (5 सितंबर) पर नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में प्रदान किया. सम्मानित होने वाले शिक्षकों में 177 प्राइमरी के 140 माध्यमिक के, 6 संस्कृत के और 4 मदरसा के शामिल है.
शिक्षकों को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित करने का प्रचलन 1958 से शुरू हुआ और इसका उद्देश्य शिक्षकों के सम्मान को बढ़ाना था. पुरस्कार के तहत प्रत्येक विजेता को एक प्रमाण-पत्र, एक रजत पदक तथा 25 हजार रूपये नकद दिये जाते है.
शिक्षक दिवस
देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ एस राधाकृष्णन का जन्म दिवस 5 सितंबर देश भर में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. डॉ एस राधाकृष्णन महान विद्वान और दार्शनिक थे.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
शिक्षाविद और भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुतनी ग्राम में हुआ था. इनके पिता सर्वपल्ली वीरास्वामी राजस्व विभाग में कार्यरत थे. इनकी माता का नाम सीतम्मा था.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन वर्ष 1962 में भारत के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए. वह भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे. वर्ष 1954 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें 'भारत रत्न' की उपाधि से सम्मानित किया. डॉ. राधाकृष्णन को ब्रिटिश शासनकाल में 'सर' की उपाधि भी दी गई थी. इसके अलावा 1961 में इन्हें जर्मनी के पुस्तक प्रकाशन द्वारा 'विश्व शांति पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया था. वर्ष 1952 में उन्हें भारत का प्रथम उपराष्ट्रपति निर्वाचित किया गया और भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बनने से पहले 1953 से 1962 तक वह दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति थे.
दार्शनिक बर्टेड रशेल ने उनके राष्ट्रपति बनने पर कहा था, 'भारतीय गणराज्य ने डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को राष्ट्रपति चुना, यह विश्व के दर्शनशास्त्र का सम्मान है. मैं उनके राष्ट्रपति बनने से बहुत खुश हूं. प्लेटो ने कहा था कि दार्शनिक को राजा और राजा को दार्शनिक होना चाहिए. डॉ. राधाकृष्णन को राष्ट्रपति बनाकर भारतीय गणराज्य ने प्लेटो को सच्ची श्रद्धांजलि दी है.'
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 12 साल की उम्र में ही बाइबिल और स्वामी विवेकानंद के दर्शन का अध्ययन कर लिया था. उन्होंने दर्शन शास्त्र से एम.ए. किया और 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में सहायक अध्यापक के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई. उन्होंने 40 वर्षो तक शिक्षक के रूप में काम किया.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन वर्ष 1931 से 1936 तक आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति रहे. इसके बाद 1936 से 1952 तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्य किया तत्पश्चात वर्ष 1939 से 1948 तक वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति रहे.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का देहावसान 17 अप्रैल 1975 को हो गया.
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