राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भूमि अर्जन, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता अधिकार (संशोधन) अध्यादेश (The Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement (Amendment) Ordinance) पर हस्ताक्षर 4 अप्रैल 2015 को किया. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करने के साथ ही यह भूमि अधिग्रहण अध्यादेश लागू हो गया. संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप यह अध्यादेश 5 अप्रैल के बाद निष्प्रभावी होने वाला था.
संवैधानिक प्रावधानों के कोई भी अध्यादेश 6 महीने के लिए और संसद की कार्यवाही जारी रहने की स्थिति में (पारित नहीं हो पाने की स्थिति में) संसद शुरू होने से अगले छह सप्ताह तक प्रभावी रहता है. इसी वजह से अध्यादेश 5 अप्रैल 2015 को समाप्त हो रहा था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमण्डल ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पुनः जारी करने की सिफारिश 31 मार्च 2015 को की थी. इस अध्यादेश में वे नौ संशोधन शामिल किये गए हैं जो मार्च 2015 में लोक सभा में पारित विधेयक का हिस्सा थे.
संसदीय मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने 27 मार्च 2015 को राज्यसभा के मौजूदा सत्र का सत्रावसान करने की सिफारिश की. राष्ट्रपति ने संसदीय मामलों से सम्बद्ध मंत्रिमण्डल की समिति की सिफारिश पर 28 मार्च 2015 को सदन का सत्रावसान कर दिया था.
संविधान के अनुसार कोई अध्यादेश जारी करने के लिए संसद के कम से कम एक सदन का सत्रावसान जरूरी है.
संसद का बजट सत्र 23 फरवरी 2015 को शुरू हुआ था और अब संसद में एक महीने का अवकाश चल रहा है.
यह अध्यादेश मोदी सरकार द्वारा जारी किया गया 11वां अध्यादेश है.
विदित हो कि भूमि अर्जन, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता अधिकार (संशोधन) विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है. जबकि यह विधेयक राज्यसभा में विचाराधीन है जहां सरकार अल्पमत में है.
दिसंबर 2014 में जारी अध्यादेश के स्थान पर इस विधेयक को लाया गया था. अध्यादेश के प्रभावी बने रहने के लिए इसे 5 अप्रैल 2015 तक संसद की मंजूरी आवश्यक थी.
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