राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने देश भर में बगैर लाइसेंस और पर्यावरण मंजूरी के बिना नदियों के किनारे और तली से रेत निकालने और खनन पर प्रतिबंध लगा दिया. राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने 5 अगस्त 2013 को दिए अपने आदेश में कहा है कि अवैध रूप से रेत निकालने से सरकारी खजाने को अरबों रुपये का नुकसान हो रहा है.
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार के नेतृत्व में एक पीठ ने यह निर्णय दिया. पीठ ने कहा है कि यह आदेश पूरे देश पर लागू होना है. राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने सभी राज्यों के खनन अधिकारियों और संबंधित पुलिस अफसरों से कहा है कि वो आदेश का पालन करवाएं.
विदित हो कि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण में दायर याचिका में आरोप लगाया गया था कि उत्तर प्रदेश में अवैध रूप से रेत निकाली जा रही है. शुरू में इस पीठ ने यमुना, गंगा, हिंडन, चंबल और गोमती नदियों के किनारों और तली से अवैध रूप से रेत निकालने पर रोक लगाई थी, लेकिन बाद में आदेश में संशोधन करते हुए कहा कि ऐसी गतिविधियों का असर देश भर में हो रहा है.
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (National Green Tribunal)
भारत सरकार ने देश में पर्यावरण संबंधी मामलों पर सुनवाई के लिए एक राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण प्राधिकरण की स्थापना की. सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति लोकेश्वर सिंह पांटा को इसका पहला प्रमुख नियुक्त किया गया था. राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण विधेयक संसद के दोनों सदनों में मई 2010 में पारित किया गया था तथा राष्ट्रपति द्वारा इसका अनुमोदन 2 जून 2010 को किया गया था. हरित न्यायाधिकरण को उच्च न्यायालय का दर्जा दिया गया है. इसका मुख्यालय दिल्ली में स्थापित है. इसके साथ ही इसकी चार पीठें देश के चार विभिन्न शहरों में स्थापित हैं.
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के अधिकार
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण को व्यापक अधिकार दिए गये हैं. पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करने वालों को यह तीन वर्ष तक के कारावास व 10 करोड़ रुपए तक की सजा दे सकता है. कार्पोरेट सेक्टर के लिए यह राशि 25 करोड़ तक हो सकती है. इस न्यायाधिकरण के पहले पर्यावरण मामलों की देखभाल के लिए देश में नेशनल एन्वॉयरमेंट एपीलेट अथॉरिटी थी जिसे भंग कर दिया गया. इसके अंतर्गत सभी विचाराधीन मामले हरित न्यायाधिकरण को हस्तांतरित कर दिए गए थे.
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