सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में बताया कि तत्काल शांति भंग आशंका और संज्ञेय अपराध की आशंका होने पर ही एहतियातन हिरासत कानून लागू किया जा सकता है. सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के अनुसार इस कानून को लागू किए जाने की शर्तें पूरी नहीं करने की स्थिति में कार्रवाई करने वाले अधिकारी ही कानून के दायरे में आ जाते हैं.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति बीएस चौहान की पीठ ने 17 अगस्त 2011 को एहतियातन हिरासत से संबंधित निर्णय में बताया कि इसकी अनुमति केवल तभी दी जा सकती है, जब पुलिस को इस बात का विश्वास हो कि वह व्यक्ति कोई संज्ञेय अपराध कर सकता है. यह निर्णय दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश को रद्द करते हुए दिया गया.
ज्ञातव्य हो कि दिल्ली के जहांगीरपुरी में शराब पीकर बवाल मचाने के मामले में दो लोगों को एहतियातन हिरासत में लिया गया था. इस मामले पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस के पक्ष में फैसला सुनाया था.
दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को रद्द करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति बीएस चौहान की पीठ ने अपने निर्णय में यह भी बताया कि अगर पुलिस यह साबित करने में नाकाम रहती है कि हिरासत में लिया गया व्यक्ति कोई अपराध करने का इरादा रखता था, तो पुलिस कार्रवाई पीड़ित के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा. अगर एहतियातन हिरासत की शर्तें पूरी नहीं होतीं, तो कार्रवाई करने वाले अधिकारी को अनुच्छेद 21 और 22 में निहित मौलिक अधिकारों के उल्लंघन कानून के तहत दोषी पाया जाएगा.
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