यूके, फ्रांस, नेपाल ने भारत, जर्मनी, ब्राजील और जापान (जी–4 राष्ट्र) के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के स्थायी सदस्य बनने की उम्मीदवारी का समर्थन किया. इन देशों ने अफ्रीकी प्रतिनिधित्व और अस्थायी सीटों के विस्तार पर भी जोर दिया.
इन देशों ने जी–4 देशों की उम्मीदवारी के सर्थन का फैसला संयुक्त राष्ट्र महासभा में सुरक्षा परिषद में समान प्रतिनिधित्व और उसमें बढ़ोत्तरी विषय पर हुए बहस के दौरान 13 नवंबर 2014 को व्यक्त किया.
बहस के दौरान भाग लेने वाले कई देशों ने इस बात पर गौर किया कि अपनी स्थापना के 50 वर्षों के बाद और विश्व शिखर सम्मेलन–2005 जहां विश्व के नेताओं ने सुधार प्रक्रियाएं शुरु करने पर सहमति जताई थी, के करीब दस वर्षों के बाद भी परिषद में पहली और अब तक सिर्फ सुधार की एक ही प्रक्रिया हुई.
भारत का दृष्टिकोण
भारत ने वर्ष 2015 तक इस शक्तिशाली संयुक्त राष्ट्र निकाय के सुधार लक्ष्य को हासिल करने की तत्काल जरूरत को फिर से दुहराया और सदस्य देशों को इस बारे में वास्तविक वार्ता शुरु करने के लिए पाठ पेश किया जाना चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत अशोक मुखर्जी ने बिना सुधार किए हुए सुरक्षा परिषद की खामियों को उजागर करते हुए कहा कि अपने प्रमुख सक्षमता के क्षेत्र में 15 देशों का यह निकाय अपने अप्रतिनिधित्व प्रकृति के कारण विश्वसनीयता के साथ काम करने में विफल रहा है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की जरूरत क्यों है?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार 1993 से ही संयुक्त राष्ट्र के एजेंडे में है और इसमें पांच प्रमुख मुद्दों को शामिल किया गया है. ये पांच मुद्दे हैं–
• संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अभी भी द्वितीय विश्व युद्ध के भू– राजनीतिक वास्तुकला की छाप नजर आती है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थापना से शक्ति के नए केंद्र उभरे हैं.
• संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार सिर्फ एक बार 1965 में किया गया था. मूल रुप से इसमें 11 सीटें थी– पांच स्थायी और छह अस्थायी सीटें. वर्ष 1965 के विस्तार के बाद से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुल 15 सीटें हो गईं, इसमें 4 अस्थायी सीटों को जोड़ा गया लेकिन स्थायी सदस्यों की सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं किया गया था.
• वर्ष 1965 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की संरचना में कोई भी बदलाव किए बगैर संयुक्त राष्ट्र की सदस्यों की संख्या 118 से बढ़कर 193 हो गई. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को फिर से बढ़ाने की मांग के पीछे यह मुख्य वजह है.
• संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधित्व के मामले में जहां तक स्थायी सदस्यों (चीन, फ्रांस, रूस, यूके और संयुक्त राज्य अमेरिका) का सवाल है, अनुपातिक नहीं है, न तो भौगोलिक दृष्टि से और न ही क्षेत्र फल, और न ही संयुक्त राष्ट्र सदस्य की संख्या या आबादी के लिहाज से. इस तथ्य के बावजूद की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का 75 फीसदी कार्य अफ्रीका केंद्रित है फिर भी इसमें अफ्रीका से कोई स्थायी सदस्य नहीं है.
• अंतरराष्ट्रीय संघर्ष की स्थितियों पर प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने में असमर्थ.
• स्थायी सदस्यता और उन पांच देशों को अतिरिक्त वीटो पावर देने की प्रासंगिकता पर अब बहुत संदेह है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों के लिए जी–4 देशों के प्रस्ताव
जी– 4 में चार देश शामिल हैं. ये 25 सदस्य देशों तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार में बिना वीटो पावर के स्थायी सीट के इच्छुक हैं.
जी– 4 में जापान, जर्मनी, भारत और ब्राजील हैं.
यदि स्थायी सदस्य देशों की संख्या में वृद्धि की जाती है तो इन देशों को सबसे अधिक संभावना वाले उम्मीदवार के रूप में देखा जाता है. संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट में जापान दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता राष्ट्र है जबकि जर्मनी योगदान करने में तीसरे स्थान पर है.
आबादी के लिहाज से भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है और यहां विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. इसके अलावा, यह विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के सैनिकों में भारत का तीसरा सबसे बड़ा योगदान है.
लैटिन अमेरिका में, ब्राजील क्षेत्रफल के लिहाज से सबसे बड़ा देश है और आबादी एवं अर्थव्यवस्था के मामले में भी यह सबसे बड़ा है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से तीन यूके, फ्रांस और रूस ने जी-4 के आकांक्षी देशों का समर्थन किया है.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation