सर्वोच्च न्यायालय ने जाट आरक्षण पर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका 21 जुलाई 2015 को खारिज कर दी. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2015 में दिए अपने फैसले (जाट आरक्षण निरस्त) में फेरबदल करने से इनकार कर दिया. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रंजन गोगई की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार की याचिका खारिज करते हुए कहा कि ‘पूर्व फैसले में दखल देने का कोई कारण नहीं बनता.’
विदित हो कि 17 मार्च 2015 को शीर्ष अदालत ने नौ राज्यों के जाट समुदायों को अन्य पिछड़ा वर्ग की केंद्रीय सूची में डालने के तत्कालीन केंद्र सरकार के फैसले को पलट दिया था. पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा वर्ष 2014 आम चुनाव से ठीक पहले इस संबंध में अधिसूचना जारी की गई थी, जिसे अदालत ने निरस्त कर दिया था. अदालत ने अपने फैसले में साफ कर दिया था कि अब जाटों को न तो केंद्र सरकार की नौकरियों में और न ही किसी शिक्षण संस्था में आरक्षण का लाभ मिलेगा. इसके साथ सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जाट आरक्षण पर जिस दिन फैसला दिया गया, उसी दिन से वह प्रभावी हो गया. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने उन छात्रों को राहत देने से इनकार किया है जिनका चयन स्टेट बैंक ऑफ इंडिया पीओ (प्रोबेशनरी) परीक्षा में हो चुका है, लेकिन नियुक्ति पत्र नहीं मिला है.
सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2015 में दिए गए अपने फैसले में कहा था कि, ‘किसी समूह को पिछड़ा वर्ग का दर्जा देने में सामाजिक पिछड़ेपन की सबसे अहम भूमिका होती है लेकिन इसके लिए जाति को सिर्फ आधार नहीं बनाया जाना चाहिए. पिछड़ेपन के नए और उभरते स्वरूप के प्रति राज्य को चौकन्ना और सतर्क रहने की जरूरत है. शीर्ष कोर्ट ने ओबीसी कोटे में जाटों के आरक्षण को रद्द करते हुए कहा था कि जाटों को आरक्षण की जरूरत नहीं है.
आम चुनाव 2014 से ठीक पहले तत्कालीन यूपीए सरकार ने मार्च 2014 में अधिसूचना जारी कर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान के दो जिले भरतपुर और धौलपुर के जाटों को ओबीसी की सूची में शामिल करने का फैसला लिया था. कोर्ट ने तत्कालीन सरकार के फैसले को बदलते हुए अपने फैसले में कहा था कि अतीत में ओबीसी सूची में किसी जाति को संभावित तौर पर गलत रूप से शामिल किया जाना गलत रूप से दूसरी जातियों को शामिल करने का आधार नहीं हो सकता है. हालांकि जाति एक प्रमुख कारक है, पिछड़ेपन के निर्धारण के लिए यह एकमात्र कारक नहीं हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जाट जैसी राजनीतिक रूप से संगठित जातियों को ओबीसी सूची में शामिल करना अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सही नहीं है. न्यायालय ने ओबीसी पैनल के उस निष्कर्ष पर ध्यान नहीं देने के केंद्र के फैसले में खामी पाई जिसमें कहा गया था कि जाट पिछड़ी जाति नहीं है.
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