भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने देश के सभी 40 बाघ अभयारण्यों के भीतरी क्षेत्रों में पर्यटन गतिविधियों को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया. न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार और न्यायमूर्ति इब्राहिम कलीफुल्ला की पीठ ने 24 जुलाई 2012 को यह निर्णय दिया.
सर्वोच्च न्यायालय ने साथ ही सभी राज्यों को अपने बाघ अभयारण्यों में बफर जोन अधिसूचित न जारी करने पर उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करने और जुर्माना लगाने का आदेश दिया. 3 सप्ताह के अंदर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन नहीं किए जाने पर प्रत्येक राज्य पर 50 हजार रुपए का जुर्माना होगा. यह राशि राज्य के मुख्य सचिव वन से वसूली जाएगी.
सर्वोच्च न्यायालय ने 4 अप्रैल और दस जुलाई 2012 को भी राज्यों को अपने अभयारण्यों में बफर जोन अधिसूचित जारी करने का आदेश दिया था. कई राज्यों ने ऐसा नहीं किया और सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्रप्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, महाराष्ट्र और झारखंड राज्यों पर दस दस हजार रूपये का जुर्माना भी किया. राजस्थान ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश अनुसार अपने बाघ अभयारण्यों में बफर जोन अधिसूचित कर दिया है.
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की धारा 38 (बी) और स्पष्टीकरण एक तथा दो के अनुसार, राज्यों को अपने अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले बाघ अभयारण्यों के अंदरूनी और बफर इलाकों की सूची को अधिसूचित करना होगा.
बफर जोन
अधिनियम के मुताबिक, बफर जोन उन इलाकों को कहा जाता है जो बाघों के रिहायशी या अंदरूनी इलाकों के आसपास होते हैं, जहां कभी कभी बाघ आ जाते हैं और जहां मानवीय गतिविधियों की भी गुंजाइश होती है.
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