सेवानिवृत्ति या सरकारी पद छोड़ने के एक माह के अन्दर सरकारी आवास छोड़ने हेतु समय सीमा तय

Jul 6, 2013, 18:57 IST

सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने सांसदों, मंत्रियों, न्यायाधीशों और अधिकारियों की सेवानिवृत्ति या सरकारी पद छोड़ने के बाद सरकारी आवास छोड़ देने हेतु समय सीमा तय की.

सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी सतशिवम और न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की पीठ ने सांसदों, मंत्रियों, न्यायाधीशों और वरिष्ठ अधिकारियों की सेवानिवृत्ति या सरकारी पद छोड़ने के बाद सरकारी आवास छोड़ देने के लिए समय सीमा तय की. साथ ही उनसे आवास खाली कराने के लिए उचित बल का उपयोग करने की अधिकारियों को मंजूरी दी.

सर्वोच्च न्यायालय की इस पीठ ने सरकारी आवास खाली कराने संबंधी निर्देश 5 जुलाई 2013 को दिया.
 
पीठ ने निर्धारित अवधि के बाद आधिकारिक आवास को खाली करने के मामले में संबद्ध व्यक्तियों के लिए समयसीमा दो माह निर्धारित की है. अधिकारियों को विभिन्न सुझाव देते हुए पीठ ने कहा कि आवासीय उद्देश्य से निर्धारित किए गए किसी सरकारी आवास में भविष्य में किसी भी स्मारक को मंजूरी नहीं दी जाएगी. यदि संपदा अधिकारी के अनुसार रहने वाले व्यक्ति का मामला सही नहीं है तो 15 दिन से अधिक का समय नहीं दिया जाना चाहिए तथा उसके बाद कानूनी धारा (5) (ए) के तहत उचित बल का इस्तेमाल किया जा सकता है.

न्यायमूर्ति पी सदाशिवम एवं न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की पीठ ने कहा यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कर्मचारी, अधिकारी, जन प्रतिनिधि एवं अन्य गणमान्य लोगों भारत सरकार द्वारा मुहैया कराए गए आवासीय स्थलों पर टिके रहते हैं. जबकि वे इस प्रकार के आवास के लिए पात्र नहीं होते हैं. सांसदों, मंत्रियों एवं नौकरशाहों को पद छोड़ने के बाद तुरंत परिसर खाली कर देना चाहिए. यदि परिसर पर बने रहने का कारण सही है तो आवंटी की रहने की सीमा को 30 दिन से अधिक नहीं बढ़ाया जाना चाहिए.
न्यायपालिका के सदस्य के मामले में किसी भी न्यायाधीश को सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी परिसर को 30 दिन के भीतर खाली करना होता है जिसे एक अन्य माह के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है.

पीठ के निर्देशानुसार एहतियाती उपाय के रूप में संबद्ध आवंटी को उसके या उसकी सेवानिवृत्ति की तिथि से तीन माह पहले लोक परिसर (अनधिकृत कब्जे को खाली कराना) कानून की धारा 4 के तहत एक नोटिस भेजा जाना चाहिए. इसमें उसे परिसर खाली करने के बारे में पहले से ही अवगत करा दिया जाना चाहिए. पीठ ने कहा कि संबद्ध व्यक्ति को सात दिनों के भीतर कारण बताओ नोटिस जारी किया जाना चाहिए. इसके बाद संपदा अधिकारी सात दिनों के भीतर उसकी सुनवाई करेगा. खाली कराए जाने का आदेश जितना जल्दी संभव हो जारी किया जाना चाहिए और यह अवधि प्राथमिकता के आधार पर 15 दिनों के भीतर हो सकती है.

 पीठ के अनुसार संपदा अधिकारी कितने समय में यह तय करेगा कि किराए की कितनी मात्रा का भुगतान किया जाना है तथा बकाया (क्षतिपूर्ति) को भूमि राजस्व के बकाए के रूप में एकत्र किया जाना चाहिए और सामान्य ब्याज के बजाय चक्रवृद्धि ब्याज के रूप में लेने का प्रावधान होना चाहिए. अधिकारियों द्वारा परिसर खाली किए जाने की तिथि तक मासिक पेंशन को रोकने या कम करने का भी प्रावधान होना चाहिए.

सरकारी आवास मंत्रियों एवं सांसदों को दिया जाने वाला विशेषाधिकार है अतः अनधिकृत रूप से संपत्ति को बरकरार रखने के मामले से सदन के अध्यक्ष या सभापति को अवगत कराया जाना चाहिए.

विदित हो कि सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने यह आदेश कर्नाटक सरकार के एक कर्मचारी की अपील पर सुनाया है. इस कर्मचारी ने उस आदेश को चुनौती दी जिसके तहत उसे सरकारी आवास खाली करने का निर्देश दिया गया था. शीर्ष न्यायालय ने उसके अनुरोध की सुनवाई करते हुए याचिका के दायरे में विस्तार कर दिया और सरकारी कर्मचारियों के गैर कानूनी कब्जे के मुद्दे पर सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए.

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