हिमालय के ग्लेशियर सिकुड़ने की बजाय बढ़ रहे हैं - शोध

Oct 18, 2014, 12:24 IST

हिमालय के ग्लेशियर सिकुड़ने की बजाय बढ़ रहे हैं - शोध

वैज्ञानिकों ने हिमालय के काराकोरम क्षेत्र के अपने अध्ययन में पता लगाया हैं की इस क्षेत्र के ग्लेशियर स्थिर हैं और विस्तारित हो रहे हैं जबकि शेष विश्व के ग्लेशियर पिघल रहे हैं. वैज्ञानिकों की इस टीम ने कहा की इस क्षेत्र में बर्फबारी घटने की बजाय बढ़ती जा रही है. अपने अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस स्थिरता के लिए एक स्पष्टीकरण का पता लगाया हैं और कहा की सम्पूर्ण हिमालय भर में वर्षा की मात्र बढ़ती जा रही है. अधिकांश नमी गर्मी में गिरती हैं, काराकोरम को छोड़कर वह क्षेत्र जहां सदैव बर्फ हावी रहती है. इस अध्ययन की सूचना डिस्कवरी न्यूज़ पर 13 अक्टूबर 2014 को प्रसारित की गईं थी.

काराकोरम पर पृथ्वी की दूसरी सबसे ऊंची चोटी के-2 (K2) अवस्थिति हैं साथ ही यह भारत, पाकिस्तान और चीन की सीमा पर बर्फीली चोटियों की एक श्रृंखला बनाती हैं.


अध्ययन की प्रक्रिया

अध्ययन शोधकर्ता सारा कपनिक जो कि प्रिंसटन विश्वविद्यालय में वायुमंडलीय और समुद्र विज्ञान में एक पोस्टडाक्टरल शोधकर्ता हैं ने ग्लेशियरों की इस स्थिरता के पीछे कारण खोजने के लिए अध्ययन किया गया तथा इस प्रक्रिया की व्याख्या की.

अध्ययन के दौरान, कपनिक और उसके साथियों ने पाकिस्तान मौसम विभाग, अन्य स्रोतों व उपग्रह डेटा से हाल ही के वर्षोँ के वर्षा और तापमान के आंकडें एकत्र किये. इनका मुख्य उद्देश्य 1861 और 2100 के बीच हिमालय के तीन क्षेत्रों काराकोरम, केंद्रीय हिमालय और दक्षिण पूर्व हिमालय जिसमें तिब्बती पठार का हिस्सा शामिल है में परिवर्तनों का पता लगाना था. उन्होनें जलवायु मॉडलों के साथ एकत्र जानकारी को संयुक्त किया. अध्ययन के दौरान उन्होनें पाया की जलवायु अनुरूपता का एक नया मॉडल जो 965 वर्ग मील के एक क्षेत्र (2500 वर्ग किलोमीटर) में विस्तृत हैं काराकोरम में प्राप्त तापमान एवं वर्षा चक्रों से मेल खाता हैं.

उन्होंने दावा किया कि जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) द्वारा विश्व द्वारा मौजूदा दरों पर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने से क्या होगा के अनुरूपण के लिए प्रयोग किये गए मॉडल इन मौसमी चक्रों का पता लगाने में असमर्थ हैं. इन मौसमी चक्रों  का पता लगाने में  असमर्थ होने का कारण यह हैं की कि आईपीसीसी और अन्य जलवायु मॉडल कम-रिज़ॉल्यूशन के हैं एवं वे 17,027 वर्ग मील (44100 वर्ग किमी) से बड़े क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव देखते हैं. यह अध्ययन जर्नल नेचर जियोसाइंस के अप्रैल 2012 के अंक में प्रकाशित किया गया था और इस अध्ययन की सूचना डिस्कवरी न्यूज़ पर 13 अक्टूबर 2014 को प्रसारित की गईं थी.

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