पुदुचेरी की शोध संस्था फाउंडेशन फॉर इकोलॉजीकल रिसर्च, एडवोकेसी एण्ड लर्निंग की 11 अगस्त 2013 जारी एक रिपोर्ट के अनुसार अंडमान के वनों को यहां के हिरण तथा हाथियों से खतरा है.
यह रिपोर्ट इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आमतौर पर माना जाता है कि मानवों द्वारा विकास कार्यों तथा लकड़ी के लिए पेड़ों की कटाई से वनों को खतरा होता है जबकि इस रिपोर्ट में वन्य जीवों (हिरण तथा हाथी) को ही अंडमान के वनों के लिए खतरा बताया गया है.
शोध संस्था में कार्यरत राउफ अली के द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में बताया गया है कि हिरण की अधिकता वाले स्थलों के अवक्रमण की दर हिरणों के निम्न संख्या वाले वनों की अपेक्षा अधिक होती है. साथ ही, जिन स्थानों पर हिरण तथा हाथी दोनो ही अधिक संख्या में मौजूद होते हैं वहां अवक्रमण अधिकतम होता है जबकि इन दोनो ही की कम संख्या वाले वनों में अवक्रमण की संभावना न्यूनतम होती है.
हाथियों से वनों के खतरे के बारे में बताया गया है कि हाथियों ने हाल के वर्षों में अपने रिहायशी वनों की पादप प्रजातियों को खासा नुकसान पहुँचाया है और ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर दी हैं वनों के पुन: उत्पन्न होने की गति सामान्य से अधिक बढ़ी है.
दूसरी तरफ हिरण से वनों को इसलिए खतरा उत्पन्न हो जाता है क्योंकि के नये पौधों को अधिक चाव से खाते हैं इसलिए इनकी अधिकता वाले क्षेत्रों में नये पादपों व उनकी नई प्रजातियों का विकास कम हो पाता है अपेक्षाकृत उन वनों के जहां इनकी संख्या कम होती है.
अंडमान में हिरणों को 1930 में अंग्रेजों के द्वारा एक क्रीड़ा-पशु के रूप में लाया गया था. इनका शिकार करने वाली प्रजातियों की निम्न संख्या तथा अच्छे तैराक होने के कारण अंडमान के वनों में हिरणों की संख्या बढ़ती गयी. यहां जंगली सुअरों के अलावा अधिक संख्या में मांसाहारी जीव नहीं हैं. हाथियों को अंडमान के वनों में 1880 के दशक के दौरान लाया गया था.
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