क्या आप महाभारत के बारे में 25 चौकाने वाले अज्ञात तथ्यों को जानते हैं?
महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी। यह पांचवें वेद शास्त्र के तौर पर जाना जाता है और हिन्दू संस्कृति की बहुमूल्य संपत्ति है। इसी महाकाव्य से भगवद् गीता का उद्गम हुआ है। भगवद् गीता में कुल एक लाख श्लोक हैं और इसलिए इसे शतसाहस्त्री-संहिता भी कहा जाता है।
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हम सभी महाभारत में पांडु के पांच पुत्रों और धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों के बीच की शत्रुता के बारे में जानते हैं। उनके बीच की इस शत्रुता ने चौसर के खेल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और इसके परिणामस्वरूप ही पांडव कौरवों से अपना राज्य एवं पत्नी द्रौपदी दोनों को हार गए थे। 13 वर्षों के वनवास के बाद, जब पांडव वापस आए तो दुर्योधन ने उन्हें उनकी आधी जमीन वापस करने से इनकार कर दिया, जिसकी वजह से उनके बीच में कुरुक्षेत्र का युद्ध हुआ। इस युद्ध में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को नैतिकता का पाठ पढ़ाया जिसे भगवद् गीता भी कहते हैं। इस युद्ध को जीतने के बाद पांडव अपने परिवारजनों की हत्या के अपराधबोध से ग्रस्त हो गए थे और ध्रुवीय पहाड़ों की महान यात्रा पर निकल पड़े थे। इस यात्रा के दौरान स्वर्ग का द्वार बनाने वाले युधिष्ठिर का देहांत हो गया था।
नीचे महाभारत से संबंधित कुछ अज्ञात तथ्य दिए जा रहे हैं। इनमें से ज्यादातर के बारे में हम में से किसी को जानकारी नहीं है–
1. महाभारत का संयोजन महर्षि वेद व्यास ने किया था और इसकी रचना भगवान गणेश जी ने इस शर्त पर की थी कि महर्षि वेद व्यास बिना एक भी बार रूके लिखे जाने वाले श्लोकों का लगातार उच्चारण करते रहेंगे। फिर वेदव्यास ने भी एक शर्त रखी कि वे श्लोकों का अर्थ समझने के साथ ही उसका उच्चारण करेंगे लेकिन गणेश उन्हें अपने दिमाग में व्याख्या किए बिना नहीं लिखेंगे। इसलिए, इस तरीके से पूरे महाकाव्य में कभी– कभी वेदव्यास कठिन श्लोकों का उच्चारण करते जिसे समझने में गणेश को वक्त लग जाता और उसी समय वेदव्यास थोड़ा विश्राम कर लेते थे।
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2. वेदव्यास नाम नहीं है बल्कि एक पद है जिसे वेदों की जानकारी रखने वाले व्यक्तियों को दिया जाता है। कृष्णद्विपायन से पहले 27 वेदव्यास थे और कृष्णद्विपायन 28वें वेदव्यास हुए , भगवान कृष्ण के रंग जैसे श्याम वर्ण और द्वीप पर जन्म लेने की वजह से उन्हें यह नाम दिया गया था।
3. अजीब, लेकिन सच है कि व्याघ गीता, अष्टावक्र गीता, पराशर गीता आदि जैसी 10 अन्य गीताएं भी हैं। हालांकि श्री भगवद् गीता, भगवान कृष्ण द्वारा दी गई जानकारी वाली शुद्ध और पूर्ण गीता है।
4. वैश्यमपायन, वेदव्यास के शिष्य, ने राजा जन्मेजय के दरबार में पहली बार महाभारत का पाठ किया था। जन्मेजय अभिमन्यु के पौत्र और परीक्षित के पुत्र थे। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उन्होंने कई सर्पयज्ञ (सापों की आहुति) किए थे।
5. शांतनु, भीष्म पीतामह के पिता थे। इनका विवाह गंगा से हुआ था। अपने अगले जन्म में शांतनु राजा महाभिष थे, वे ब्रह्मा की सेवा करने गए जहां उन्होंने गंगा को देखा और उनकी तरफ आकर्षित हो गए। इसी बीच ब्रह्मा ने उन्हें श्राप दे दिया और नरक में जाने को कहा, जिसकी वजह से अपने अगले जन्म में वे राजा प्रतीप के पुत्र शांतनु के रूप में पृथ्वी पर आए और गंगा से विवाह किया लेकिन गंगा ने शांतनु से वचन लिया कि वे कभी भी उनसे कोई भी प्रश्न नहीं पूछेंगे। शांतनु इस बात पर सहमत हो गए। उन्हें 8 बच्चे हुए और पहले 7 बच्चों को गंगा ने नदी में डुबा दिया, उन्होंने कभी कोई प्रश्न नहीं पूछा लेकिन जब गंगा अपने आठवें बच्चे को डुबो रही थी, वे क्रोध से भर उठे और गंगा से इसकी वजह पूछी। तब गंगा ने उनसे उनके पिछले जन्म और भगवान ब्रह्मा के श्राप के बारे में बताया। इसके बाद वह उनके आठवें बच्चे के साथ चली गई।
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6. धर्म ग्रंथों के अनुसार 33 मुख्य भगवान हैं और उनमें से एक हैं अष्ट वसु जिनका जन्म शांतनु और गंगा के पुत्र के रूप में हुआ था। उनकी आठवीं संतान भीष्म थी।
7. शांतनु का दूसरा विवाह निषाद की पुत्री सत्यवती से हुआ और उससे उनके दो बच्चे– चित्रांगद और विचित्रवीर्य हुए। एक युद्ध में चित्रांगद की मृत्यु हो गई और विचित्रवीर्य राजा बने जिसने काशी की राजकुमारी अम्बिका और अम्बालिका से विवाह किया।
8. महाभारत में विदुर यमराज के अवतार थे। ये धर्म शास्त्र और अर्थशास्त्र के महान ज्ञाता थे। ऋषि मंदव्य के श्राप की वजह से उन्हें मनुष्य योनी में जन्म लेना पड़ा था।
9. कुंती ने अपने बचपन में ऋषि दुर्वासा की सेवा की थी। वे कुंती की सेवा से प्रसन्न हुए और उसे एक चमत्कारी मंत्र बताया, इस मंत्र के माध्यम से कुंती किसी भी भगवान से बच्चा मांग सकती थी। इसलिए, विवाह के पहले कुंती ने सूर्य देव से शिशु की मांग की और कर्ण का जन्म हुआ।
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10. ऋषि किंदम की श्राप की वजह से पांडु ने साम्राज्य छोड़ दिया था और संन्यासी बन गए थे। कुंती और मादरी भी उनके साथ वन में रहने लगीं। यहां दुर्वासा के मंत्र से धर्मराज युधिष्ठिर का जन्म हुआ। इसी प्रकार वायुदेव से भीम, इंद्र से अर्जुन का जन्म हुआ। कुंती ने यह मंत्र मादरी को बताया और सहदेव का जन्म हुआ।
11. इसके बाद उसके घी से भरे घड़ों को दो वर्षों तक रखा और पहले घड़े से दुर्योधन का जन्म हुआ और उसी दिन भीम और फिर बाकियों का। जन्म के बाद दुर्योधन गधे के जैसे रोने लगा और इसी वजह से गिद्ध और कौवे शोर मचाने लगे। विधुर ने धृतराष्ट्र को कहा कि वे दुर्योधन को मार डालें क्योंकि वे उनके परिवार का नाश कर देगा लेकिन अपने बच्चे से प्रेम ने उन्हें ऐसा करने नहीं दिया। दुर्योधन का वास्तविक नाम सुयोधन था।
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12. हम सभी जानते हैं कि महाभारत में, दुर्योधन ने चौसर का खेल जीता और युधिष्ठिर से द्रौपदी को दुर्योधन की बाईं जंघा पर बैठने को कहने के लिए कहा। इसी वजह से वह खलनायक के रूप में जाना गया। लेकिन उस समय, पत्नी को पुरुष के बाईं जंघा या बाईं तरफ और पुत्रियों को दाईं जंघा या दाईं तरफ रखा जाता था।
13. आमतौर पर लोग छह–पक्षीय पासे के बारे में जानते हैं। अजीब बात यह है कि जिस पासे से शकुनी ने पांडवों को चौसर के खेल में हराया था, उसके चार ही पक्ष थे और वे पासे किस चीज से बने थे, इसके बारे में किसी को पता नहीं था।
14. कहा जाता है कि महाभारत धर्म के बारे में शिक्षा देता है और कई लोग इसे सत्य और झूठ से जोड़ कर भी देखते हैं लेकिन महाभारत में कहीं भी, किसी भी उदाहरण में, सत्य या झूठ को परिभाषित नहीं किया गया है। महाभारत का प्रत्येक कार्य उसके पात्रों की वर्तमान स्थिति पर निर्भर करता है।
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15. भविष्यवाणी करने के लिए ज्योतिषि नक्षत्रों पर निर्भर रहते थे क्योंकि महाभारत युग में कोई राशि चिह्न नहीं था। नक्षत्रों में रोहिणी पहले स्थान पर था न कि अश्विनी।
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16. क्या आप जानते हैं कि महाभारत के युद्ध में विदेशी भी शामिल थे। वास्तविक युद्ध सिर्फ पांडवों और कौरवों के बीच नहीं था बल्कि रोम और यमन की सेना भी इसका हिस्सा थी ।
17. अभिमन्यु की मौत के लिए चक्रव्यूह की रचना करने वाले सात महारथियों को उसकी मौत का कारण माना जाता है लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं है। अभिमन्यु ने दुर्योधन के पुत्र की हत्या की थी, जो सात महारथियों में से एक था। इसी बात से नाराज हो कर दुशासन ने अभिमन्यु का वध कर दिया था।
18. क्या आप जानते हैं कि इंद्रलोक की अप्सरा उर्वशी ने अर्जुन को श्राप दिया था, क्योकि वह उर्वशी को 'मां' कहकर बुला रहा था जिसपर उर्वशी को गुस्सा आया और उसे श्राप दिया कि वह एक हिजड़ा बन जाएगा। इस पर भगवान इंद्र ने अर्जुन से कहा कि यह श्राप एक वर्ष के अज्ञातवास के दौरान तुम्हारे लिए वरदान बन जाएगा और उस अवधि के समाप्त होने पर वह फिर से अपना पुरुषत्व प्राप्त कर लेगा। वन में 12 वर्ष बिताने के बाद पांडवों ने 13वां वर्ष राजा विराट के दरबार में निर्वासन में बिताया। अर्जुन ने अपने श्राप का प्रयोग किया और ब्रिहन्नला नाम के हिजड़े के रुप में वहां रहा।
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19. भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उसके अधूरे वरदान के बारे में याद दिलाया था यानि जब अर्जुन ने वन में प्रवास के दौरान दुर्योधन की जान बचाई थी तब दुर्योधन ने उससे वरदान मांगने के लिए कहा था और अर्जुन ने उपयुक्त समय आने पर मांगने की बात कही थी। इसलिए अर्जुन, दुर्योधन के पास गया और उससे भीष्म के मंत्रों से अभिमंत्रित पांच सुनहरे बाण मांग लिए। दुर्योधन ने इन बाणों से पांडवों की हत्या करने की घोषणा की थी। जब अर्जुन ने उन पांच सुनहरे बाणों की मांग की तब दुर्योधन भयभीत हो गया लेकिन उसने वचन दिया था, इसलिए उसे बाण देने पड़े। फिर जब अगली सुबह वह भीष्म के पास गया और उनसे पांच सुनहरे बाण और मांगे तो वे हंसे और कहा कि अब ऐसा संभव नहीं है और कहा कि महाभारत के युद्ध में कल जो भी होगा वह बहुत पहले ही लिखा जा चुका है और कुछ भी बदला नहीं जा सकता।
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20. महाभारत के युद्ध में भगवान कृष्ण ने हथियार न उठाने के अपने वचन को तोड़ा था। लेकिन जब उन्होंने देखा की अर्जुन, भीष्म की शक्तियों का सामना करने में समर्थ नहीं है, वह असहाय हो गया है, तब उन्होंने तत्काल रथ की लगाम छोड़ दी और युद्ध भूमि में कूद पड़े। उन्होंने रथ के पहियों में से एक को निकाल लिया और भीष्म की हत्या करने के लिए उनकी तरफ फेंका। अर्जुन ने कृष्ण को रोकने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहा।
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21. क्या आप जानते हैं कि भगवान कृष्ण ने कौरवों की बजाए पांडवों का साथ क्यों दिया। वास्तव में, अर्जुन और दुर्योधन दोनों ही कृष्ण के पास उनकी मदद मांगने के लिए गए थे। वे उनके कक्ष में पहुंचे। दुर्योधन उनके कक्ष में पहले पहुंचा था और वह कृष्ण के सिरहाने जाकर बैठ गया था। अर्जुन, कृष्ण के पैरों के पास गया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। जब कृष्ण की नींद खुली तो उन्होंने अर्जुन को पहले देखा, मुस्कुराए और कहा कि वह उसका साथ देंगे।
22. महाभारत में, कौरवों की रक्षा जयद्रथ कर रहा था। पांडवों को चक्रव्यूह में प्रवेश करने से रोकने के लिए वह अपने वरदान का प्रयोग कर रहा था। जयद्रथ को भगवान शिव से वरदान प्राप्त था कि वह अर्जुन को छोड़कर बाकी पांडवों को युद्ध में एक दिन के लिए रोक सकता था । अर्जुन को भगवान कृष्ण का संरक्षण प्राप्त था इसलिए वह इस वरदान से बाहर रहा। लेकिन जब अर्जुन के पुत्र की चक्रव्यूह में हत्या हुई तब बाद में अर्जुन ने जयद्रथ को अपने बाण से मार डाला।
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23. एकलव्य का पुनर्जन्म द्रौपदी के जुड़वा भाई धृष्टद्युम्न के रूप में हुआ था। रुक्मणी के अपहरण के दौरान कृष्ण ने उन्हें मार डाला था। इसलिए, गुरु दक्षिणा के तौर पर कृष्ण ने उन्हें पुनर्जन्म लेने और द्रोणा से बदला पूरा करने का वरदान दिया था।
24. दुर्योधन ने भगवद् गीता सुनने से यह कह कर मना कर दिया था कि वह सही और गलत के बारे में जानता है। उसने यह भी कहा कि कुछ शक्तियां हैं जो उसे सही मार्ग चुनने नहीं दे रहीं। अगर उसने कृष्ण की बातें सुनी होतीं, तो युद्ध टाला जा सकता था।
25. आश्चर्य की बात है, द्रौपदी देवी दुर्गा की अवतार थी। एक बार देर रात भीम ने द्रौपदी को मां दुर्गा के रूप में देखा, वह भीम से खाली कटोरे में भीम का खून मांग रही थी, मृत्यु से डरा हुआ , उसने यह पूरी कहानी अपनी मां– कुंती को सुनाई। फिर उन्होंने द्रौपदी को भीम को कभी दुख न पहुंचाने के लिए कहा। नश्वर होने के नाते, द्रौपदी को वचन देना पड़ा और ऐसा करते समय वह अपने होंठ काट लेती है। कुंती अपने कपड़े के किनारे से उनके होठों पर लगे हुए खून को साफ करती है और वचन देती है कि भीम उसके लिए कटोरा भरेगा।