मौर्य साम्राज्य पाटलिपुत्र में शाही राजधानी के साथ चार प्रांतों में विभाजित किया गया था. अशोक के शिलालेखों में वर्णित चार प्रांतीय राजधानियों के नाम तोसली ( पूर्व में ), पश्चिम में उज्जैन, (दक्षिण में) सुवर्नगिरी, और (उत्तर में) तक्षशिला थी. मेगस्थनीज के अनुसार, मौर्या साम्राज्य के पास 600,000 पैदल सेना , 30,000 घुड़सवार सेना, और 9000 युद्ध हाथियों का दल था जिसका इस्तेमाल युद्ध में किया जाता था. आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के उद्देश्य से यहाँ एक व्यापक जासूसी प्रणाली अधिकारियों और संदेशवाहकों पर नजर रखने के लिए स्थापित की गयी थी. राजा के द्वारा चरवाहों , किसानों , व्यापारियों और कारीगरों आदि से कर लेने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की गयी थी.
केंद्र में प्रशासन की एक विशाल व्यवस्था की गयी थी. शासक इस प्रशासन पर सड़कों और नदियों के माध्यम से नियंत्रण रखता था. सड़क और नदियां परिवहन और संचार तथा आर्थिक संसाधनों के महत्वपूर्ण साधन थे जोकि कर प्रणाली के माध्यम से प्राप्त होते थे. थल और जल दोनों मार्गों के साथ संचार व्यवस्था साम्राज्य के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण साधन थे. कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार उत्तर-पश्चिम मार्ग कम्बलों के लिए और दक्षिण भारत कीमती पत्थरों और सोने के लिए महत्वपूर्ण था.
राजा प्रशासनिक अधिरचना और मंत्रियों एवं उच्च अधिकारियों के चयन का प्रमुख केंद्र था. प्रशासनिक संरचना निम्नानुसार थी:
राजा की सहायता मंत्रिपरिषद के सदस्य (मंत्रियों का संघ) किया करते थे,जिनके सदस्य निम्नलिखित हैं-
युवराज : राज्य का राजकुमार
पुरोहित : मुख्य पुजारी
सेनापति : प्रमुख कमांडर
अमात्य : सिविल सेवको और कुछ अन्य मंत्रियों का पद.
कुछ विद्वान यह बताते है कि मौर्य साम्राज्य को विभिन्न विभागों में महत्वपूर्ण अधिकारीयों के साथ विभाजित किया गया था.
राजस्व विभाग: महत्वपूर्ण अधिकारी: सन्निधाता : मुख्य कोषागार अधिकारी,समाहर्ता : राजस्व का कलेक्टर जनरल
सैन्य विभाग: मेगास्थनीज सैन्य गतिविधि के समन्वय के लिए छह उपसमितियों की चर्चा करता हैजिनमे से प्रथम नव सेना को दूसरा परिवहन व्यवस्था को और तीसरा पैदल सेना को चौथा अश्वा सेना को पांचवां रथ सेना को छठा हस्ति सेना को देखता था और उनका प्रबंधन करता था.
वाणिज्य और उद्योग विभाग: एक महत्वपूर्ण बाजार अधीक्षक के अधीन.
जासूसी विभाग: महामात्यापसर्पा, गुढपुरुष ( गुप्त एजेंट )के ऊपर नियंत्रण स्थापित करता था.
पुलिस विभाग: जेल बन्धंगारा के रूप में जाना जाता था और यह लॉक अप जिसे चरका से भिन्न था. राज्य के सभी प्रमुख केंद्रों में पुलिस क्वार्टर मौजूद थे.
प्रान्तीय और स्थानीय प्रशासन | महत्वपूर्ण अधिकारी |
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प्रादेशिक | वर्तमान जिला अधिकारी |
स्थानिक | प्रादेशिक के अंतर्गत कर संग्राहक अधिकारी |
दुर्गपाल | किले का राज्यपाल |
अन्तपाल | सीमांत प्रदेश का गवर्नर |
अक्षपटलिक | अकाउंटेंट जनरल |
लिपिकरस | लिपिक |
गोप | एकाउंटिंग के लिए जिम्मेदा |
नगर प्रशासन | महत्वपूर्ण अधिकारी |
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नागरक | नगर प्रमुख |
नवध्यक्षा | जहाजों का अधीक्षक |
शुल्काध्यक्षा | करो का संग्राहक |
सीताध्यक्ष | कृषि अधिकारी |
समस्थाध्यक्षा | बाज़ार अधीक्षक |
लोहाध्यक्षा | लौह विभाग का अध्यक्ष |
अकराध्यक्षा | खानों का अध्यक्ष |
पौत्वाध्यक्षा | माप और तौल अधीक्षक |
मेगस्थनीस पाटलिपुत्र में छह समितियों की चर्चा करता है जिसमे से पाँच समितियां पाटलिपुत्र के प्रशासन की देखभाल करती थीं.
उद्योग, विदेशियों के बारे में जानकारी रखना, जन्म और मृत्यु का पंजीकरण, व्यापार, निर्माण और माल की बिक्री एवं कर के संग्रह आदि कार्य प्रशासन के नियंत्रण में थे.
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