व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) एक बहुपक्षीय संधि है जिसकी स्थापना परमाणु विस्फोट परीक्षणों पर वैश्विक प्रतिबंध बाइंडिंग के लिए की गयी थी। इसको संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 सितंबर 1996 अपनाया गया परन्तु इस संधि को लागु नहीं किया गया क्यूंकि आठ विशिष्ट राज्यों ने अभी तक इस संधि की पुष्टि नहीं की है।
संगठन का उद्देश्य है की वह संधि के वस्तु और उद्देश्य को प्राप्त करे, ताकि सुनिश्चित कर सके इसके प्रावधानों के कार्यान्वयन को, उनके सहित जो संधि के साथ अनुपालन के अंतर्राष्ट्रीय सत्यापन है, और प्रदान कर सके एक मंच परामर्श और सदस्य राज्यों के बीच सहयोग के लिए।
व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि संगठन के अंग (सीटीबीटीओ)
सीटीबीटीओ के दो अंग हैं, प्रीपरेटरी आयोग और अनंतिम तकनीकी सचिवालय (पीटीएस)
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प्रीपरेटरी आयोग : प्रीपरेटरी आयोग का मुख्ये कार्ये है की वह स्थापित करे एक वैश्विक सत्यापन शासन जैसा संधि में सोचा गया है ताकि यह उस समय तक चालू हो जाएगा जब तक संधि प्रभाव में आएगी।
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अनंतिम तकनीकी सचिवालय (पीटीएस) : पीटीएस ने अपना काम शुरू किया 17 मार्च 1997 में और 70 देशों में से लगभग 270 सदस्यों का अंतरराष्ट्रीय स्टाफ है। यह मेजबान देशों के साथ सहयोग करते हैं 321 निगरानी करने वाले स्टेशनों और 16 रेडियो नुक्लीड प्रयोगशालाओं के विकास और संचालन में।
सीटीबीटी पर भारत के रुख
भारत का संधि के साथ अतीत ये थी की भारत ने किसी भी समय के लिए और सभी स्थानों पर सभी तरह के परमाणु परीक्षण पर प्रतिबंध लगा लिए थे । भारत ने संधि का समर्थन कभी नहीं किया लेकिन भारत बातचीत के दौरान संधि का समर्थन कर रहा था। प्रचुरता के उत्साह की जड़ों का पता 1954 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की प्रसिद्ध पहल "ठहराव समझौता " जो परमाणु परीक्षण पर था से लगाया जा सकता है।
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का हस्तक्षेप उस समय हुआ था जब अमेरिका और सोवियत संघ बढ़ती आवृत्ति के साथ शक्तिशाली परमाणु हथियारों को डेटोनेटिंग केर रहे थे। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई एक अंतरराष्ट्रीय गति का निर्माण करने में जब सन् 1963 में सीमित परीक्षण प्रतिबंध संधि हुई थी और उसमें भारत शामिल भी हुआ था। इस संधि का ये नतीजा हुआ की वैश्विक स्तर पर विवाद कम हुआ था लेकिन परमाणु हथियारों की दौड़ को विवश करने के लिए ये संधि भी असफल रही।
हाल के वर्षों में भारत में सीटीबीटी पर एक सार्वजनिक बहस विचार करना मुश्किल हो गया है। यह बहुत दुखद है कि देश में "ठहराव समझौते" के लिए पथ दरकार किया गया है परन्तु सन् 1998 के बाद से परमाणु निरस्त्रीकरण के चैंपियन के लिए एकतरफा प्रतिबंध का अवलोकन किया जा रहा है,और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में, "वैश्विक परमाणु अप्रसार प्रयासों को मजबूत बनाने के लिए भारत का योगदान जारी रहेगा।" एक प्रभावी अंतरराष्ट्रीय सत्यापन प्रणाली के निर्माण को प्रेरित करने के अपने प्रयासों के लिए भारत वर्तमान में राजनीतिक या तकनीकी लाभ प्राप्त करने में असमर्थ है लेकिन अन्य 183 देशों को ये समर्थन प्राप्त हुआ हैं।
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