आईएएस मुख्य परीक्षा 2011 : दर्शनशास्त्र द्वितीय प्रश्न-पत्र

Dec 12, 2011, 13:00 IST

यहां पर संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सिविल सेवा मुख्य परीक्षा 2011 के दर्शनशास्त्र का द्वितीय प्रश्न-पत्र दिया गया है.

संघ लोक सेवा आयोग ने वर्ष 2011 की सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा का आयोजन देश के विभिन्न केन्द्रों पर 29 अक्टूबर 2011 से 26 नवम्बर 2011 के मध्य किया. यहां पर सिविल सेवा मुख्य परीक्षा 2011 के दर्शनशास्त्र का द्वितीय प्रश्न-पत्र दिया गया है. इच्छुक अभ्यर्थी इसे पढ़कर अपनी तैयारी की रणनीति बना सकते हैं.

 

दर्शनशास्त्र

प्रश्न-पत्र II

समय : तीन घण्टे                                                                    पूर्णांक: 300

 

अनुदेश

प्रत्येक प्रश्न हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में छपा है. प्रश्नों के उत्तर उसी माध्यम में लिखे जाने चाहिए जिसका उल्लेख आपके प्रवेश –पत्र में किया गया है, और इस माध्यम का स्पष्ट उल्लेख उत्तर-पुस्तक के मुख-पृष्ठ पर अंकित निर्दिष्ट  स्थान पर किया है, और इस माध्यम का स्पष्ट उल्लेख उत्तर –पुस्तक के मुख-पृष्ठ पर अंकित निर्दिष्ट स्थान पर किया जाना चाहिए.

प्रवेश –पत्र पर उल्लिखित माध्यम के अतिरिक्त अन्य किसी माध्यम में लिखे गए उत्तर पर कोई अंक नहीं मिलेगें.

प्रश्न संख्या 1 और 5 अनिवार्य है.  बाकी प्रश्नों में से प्रयेक संख्या 1 और 5 अनिवार्य है. बाकी प्रश्नों में से प्रयेक खण्ड से कम –से –कम एक प्रश्न चुनकर किन्ही तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए.
प्रत्येक प्रश्न के लिए अंक प्रश्न के अंत में दिये गए है.

उत्तर संक्षिप्त और सटीक होने चाहिए.

 

खण्ड ‘क ‘

1. निम्नलिखित सभी चार भागो का उत्तर दे. प्रत्येक उत्तर 150 शब्दों से अधिक न हो : 15×4=60

(क) कोटिल्य के संप्रभुता सिद्धांत एवं बोदा के राज्य के संप्रभुता के सिद्धांत की तुलना करें.

(ख) जनतंत्र में नागरिक को क्या कभी भी कानून के उल्लंघन का नेतिक अधिकार होता है? नागरिको के सविनय अवज्ञा के अधिकार पर चर्चा करे.

(ग) ‘बहुसांस्कृतिवाद’ पद का प्रयोग विवरणात्मक एवं मूल्यात्मक दोनों रूप में हुआ है, चर्चा करें.

(घ) क्या मृत्युदण्ड औचित्यपूर्ण है ? दंड के सिद्धांतों के संदर्भ में उत्तर दीजिये.

 

2. निम्नलिखित सभी तीन भागो में प्रयेक के उत्तर लगभग 200 सब्दो में दीजिये.  20×3=60

(क) क्या नागरिकों को कर्तब्यों के बिना अधिकार प्राप्त हो सकते हैं? उदाहरणों सहित चर्चा करें.

(ख) कांट द्वारा दिये गए कर्तब्य के सम्पूर्ण एवं असंपूर्ण दायित्व के सिद्धांत की चर्चा करें.

(ग) क्या जातिप्रथा से ग्रस्त समाज में नागरिकों ‘अधिकार’ का प्रत्यय निर्वाहित किया जा सकता है? चर्चा करें.

 

3. निम्न सभी तीन भागो का उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए:  20×3=60

(क) माक्सर्वाद एवं समाजवाद के मौलिक भेद क्या है ?

(ख) क्या यह कहा जा सकता है कि समाजवाद मार्क्सवाद का एक कमजोर संस्करण है? चर्चा करें.

(ग) क्या जनतांत्रिक समाजवाद एक आत्मब्याघाती अवधारणा है? चर्चा करें.

 

4. निम्न सभी तीन लगभग 200 शब्दों में उत्तर दीजिए:  20×3=60

(क) न्याय कि अवधारणा का आधारभूत विचार निष्पक्षता है.

(ख) क्या सामाजिक लिंग भेदभाव के मुददे न्याय निष्पक्षता के विचार से निस्तारित किए जा सकते है, चर्चा करें.

(ग) आपके अनुसार न्याय का कौन-सा सिद्धांत जाति भेदभाव कि समस्या का समाधान करने में सवार्धिक सहायक होगा और क्यों ?

 

खण्ड ‘ख ‘

 

5. निम्नलिखित सभी भागो का उत्तर दीजिए  जो प्रत्येक 150 शब्दों से अधिक न हो : 15×4=60

(क) परंपरागत शास्त्रीय धर्म के मूल लक्षणों पर चर्चा किजिये.       

(ख) उस विचार कि परीक्षा करे जिसके अनुसार नैतिकता का आधार केवल धार्मिक संरचना में ही संभव है.

(ग) ईस्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने के प्रमाण, धर्म के विकाश के लिए क्यों आवश्यक है? चर्चा किजिये.

(घ) “ धर्म न केवल असत्य है, वह हानिकारक भी है.” चर्चा करे.

 

6. प्रत्येक भाग पर लगभग 200 शब्दों में उत्तर दीजिए :  20×3=60

(क) क्या विलियन जेम्स का वह कहना सही है कि धार्मिक विवाद सोन्दर्य बोध के विवाद के समान होते है ? चर्चा करें.

(ख) क्या धार्मिक सिद्धांत एवं विवाद सत्यापनीय है? चर्चा करें.

(ग) इस धारण कि चर्चा करें जिसके अनुसार धार्मिक सिद्धांत ‘ छध-वैज्ञानिक ‘ सिद्धांत न होकर जीवन शैली का प्रतिनिधित्व करते है.

 

7. प्रत्येक भाग का उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए :  20×3=60

(क) सत्य के इस सिद्धांत कि चर्चा करे :” एंक सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति.

(ख) क्या निरपेक्ष सत्य का विचार असहिष्णुता एवं धार्मिक विवादों को उत्पन करता है? चर्चा करे.

(ग) सत्य के संबंध में धार्मिक विवादों का समाधान किस प्रकार किया जा सकता है? चर्चा करें.

 

8. प्रत्येक भाग का लगभग 200 शब्दों में उत्तर दीजिए :  20×3=60   

(क) क्या आत्मा कि अमरता में विस्वाश धर्म कि पूर्वमान्यता है? चर्चा करे.

(ख) क्या पुनजर्न्म एव पुनरवतरण का विश्वास आत्मा के अमरत्व के विचार के अभाव में संभव है ? चर्चा करे.

(ग) क्या बोद्धमत , अपने ‘अनन्त’ के विचार के कारण, धर्म माना जा सकता है अथवा है नहीं ? चर्चा करे ?

Jagran Josh
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