आज हम इस आर्टिकल में कक्षा 10 वी के विज्ञान के 6th अध्याय विधुत के सभी टॉपिक का शोर्ट नोट्स प्रदान करेंगे| जैसा की हमें पता है विधुत तथा विधुत धरा के प्रभाव एक बहुत बड़ा और काफी महत्वपूर्ण यूनिट है इसलिए, छात्रों को इस अध्याय को अच्छी तरह समझ कर तैयार करना चाहिए। यहां दिए गए नोट्स उन छात्रों के लिए बहुत सहायक साबित होंगे जो UP Board कक्षा 10 विज्ञान 2018 की बोर्ड परीक्षा की तैयारी में हैं। आज इस नोट्स में हम जो टॉपिक्स के नोट्स प्रदान कर रहे हैं वह यहाँ अंकित हैं :
1. ओम का नियम
2. ओम के नियम का प्रायोगिक सत्यापन
3. चालक द्वारा ओम के नियम के पालन करने की जाँच
4. विधुत चालक एवं अचालक
5. मुक्त इलेक्ट्रान के आधार पर चालक एवं अचालक की व्याख्या
6. प्रतिरोधों का श्रेणीक्रम संयोजन
7. प्रतिरोधों का समांतर क्रम संयोजन
ओम का नियम : ओम के नियम अनुसार, यदि किसी चालक की भौतिक अवस्थाएँ(जैसे- लम्बाई, परिच्छेदन का क्षेत्रफल, चालक का पदार्थ और ताप”) अपरिवर्तित रहे तो चालक में बहने वाली धारा, चालक के सिरों के विभवान्तर के अनुक्र्मनुपति होता है|
यदि किसी चालक के सिरों पर लगा विभवान्तर V और उसमें बहने वाली धारा ‘I’ हो, तब
V/I = नियतांक
जो चालक इस नियम का पालन करते हैं उन्हें ओमिय चालक कहते हैं और जो चालक इन नियम का पालन नहीं करते, उन्हें अन-ओमीय चालक खा जाता है| ओमीय चालक के लिए V और I के बिच ग्राफ एक झुकी हुई सरल रेखा होती है, जबकि अन- ओमिये चालकों के लिए यह ग्राफ एक वक्र के रूप में होता है|
ओमीय चालकों के लिए V और I के अनुपात को चालक का प्रतिरोध कहते हैं तथा इसे R से प्रदर्शित करते हैं|
V/I = R (नियतांक)
ओम के नियम का प्रायोगिक सत्यापन : ओम का नियम केवल धातु चालकों और मिश्रधातु- चालकों के लिए ही सत्य है| इस प्रयोग के लिए कांस्टेणटन, यूरेका, और मैंगनिन का एक प्रतिरोध तार लेते हैं और इसके श्रेणीक्रम में एक बैटरी, धारा नियंत्रण, अमिटर तथा कुंजी जोड़ देते हैं| अब एक वाल्टमीटर प्रतिरोध तारके सिरों के बिच जोड़ देते हैं| परिपथ में कुंजी लगाते ही धरा बहने लगती है| धारा I का मान अमिटर से और प्रतिरोध के सिरों का विभवान्तर V वोल्त्मीटर से पढ़ लेते हैं| अब धरा नियंत्रक की सहायता से परिपथ में प्रवाहित धारा को बदल-बदल कर धारा I तथा विभवान्तर V के मान पढ़ते जाते हैं और उन्हें एक सरणी में लिख लेते हैं| हर एक प्रेक्षण से V और I का अनुपात समान प्राप्त होता है, जिससे ओम के नियम का सत्यापन हो जाता है|
चालक द्वारा ओम के नियम के पालन करने की जाँच : इसके लिए दिए गए प्रायोगिक चालक के श्रेणीक्रम में सेलो की एक बैटरी, अमिटर,धारा नियंत्रक तथा कुंजी लगते हैं| प्रायोगिक चालक के बिच एक वोल्टमीटर लगते हैं| कुंजी लगते ही पुरे परिपथ में विधुत धारा बहने लगती है| धारा I का मान अमिटर से और प्रायोगिक चालक के सिरों के बिच विभवान्तर V वाल्टमीटर से पढ़कर सरणी में लिख लेते हैं| अब धरा नियंत्रक द्वारा परिपथ में बहने वाली धारा का मान बदल- बदल कर प्रत्येक बार अमिटर तथा वोल्टमीटर के पथ्यंक सरणी में लिख लेते हैं| यदि प्रत्येक प्रेक्षण से V/I का मान समान आता है और चालक ओम के नियम का पालन करता है, अन्यथा नहीं|
एक अन्य विधि में प्राप्त प्रेक्षण के आधार पर V और I में ग्राफ खींचते हैं| यदि ग्राफ एक सरल रेखा प्राप्त होता है तो इसका मतलब है कि तार के सिरों के बिच विभवान्तर तथा उससे बहने वाली धारा परस्पर अनुक्र्मनुपति होती है अर्थात चालक ओम के नियम का पालन करेगा, अन्यथा नहीं|
विधुत चालक एवं अचालक : जिन पदार्थों में विधुत आवेश का प्रवाह सुगमतापूर्वक हो जाता है, उन्हें विधुत चालक कहते हैं; जैसे- धातुएं(पीतल, तम्बा, चांदी आदि), पृथ्वी, अम्ल, क्षारऔर लवणों के जलीय विलयन आदि|
जिन पदार्थों में विधुत आवेश का प्रवाह नहीं होता, उन्हें विधुत अचालक कहते हैं| जैसे- रबड़, सुखी लकड़ी, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी, अब्रक, कागज़, आसुत जल आदि|
मुक्त इलेक्ट्रान के आधार पर चालक एवं अचालक की व्याख्या : जिन पदार्थों में मुक्त इलेक्ट्रान होते हैं, जब उनके सिरों पर विभवान्तर लगाया जाता है तो विधुत क्षेत्र के कारण मुक्त इलेक्ट्रान विधुत क्षेत्र की विपरीत दिशा में गति करने लगते हैं और धारा बहने लगती है| इस प्रकार के पदार्थों को विधुत चालक कहते हैं| इसके विपरीत कुछ पदार्थों में परमाणुओं के बाहरी कक्षा के इलेक्ट्रान नाभिक से दृढ़तापूर्वक बंधे रहते हैं तथा धारा परवाह के लिए मुक्त नहीं हो पाते इस प्रकार के पदार्थों को विधुत चालक कहते हैं|
प्रतिरोधों का श्रेणीक्रम संयोजन : इस संयोजन में प्रतिरोधकों को इस प्रकार क्रमशः जोड़ा जाता है कि किसी प्रतिरोधक का दूसरा सिरा, अगले प्रतिरोधक के पहले सिरे से सम्बंधित रहे| इस प्रकार के संयोजन में धारा के लिए केवल एक मार्ग रहता है जिससे सभी प्रतिरोधों में धारा का मान समान रहता है|
माना प्रतिरोध R1, R2 और R3 परस्पर श्रेणीक्रम में संयोजित है और इसमें I धारा प्रवाहित हो रही है| यदि इन प्रतिरोधकों के सिरों के बिच विभवान्तर क्रमशः V1, V2 और V3 हो तो ओम के नियम के अनुसार,
V1 = I R1, V2 = I R2 तथा V3 = I R3
माना बैटरी का विभवान्तर V है तो,
V = V1 + V2 + V3
= I R1 + I R2 + I R3
= I (R1 + R2 + R3)..........(1)
यदि, R1,R2 और R3 का प्रतिरोध R हो तो ओम के नियम के अनुसार,
V = IR................(2)
समीकरण (1) और समीकरण (2) की तुलना करने पर,
IR = I (R1 + R2 + R3)
R = R1 + R2 + R3
प्रतिरोधों का समांतर क्रम संयोजन : इस संयोजन में सभी प्रतिरोधकों के एक सिरे को एक साथ परिपथ के एक बिंदु A पर तथा दुसरे सिरों को एक साथ दुसरे बिंदु B पर जोड़ा जाता है| इस प्रकार के संयोजन में प्रत्येक प्रतिरोध दो सर्व्निष्ट बिन्दुओं के बिच जुदा होता है| तथा सभी प्रतिरोधकों के सिरों के बिच का विभवान्तर समान होता है|
माना R1, R2 और R3 तिन प्रतिरोध को बिन्दुओं A और B के बिच समांतर क्रम में जोड़ा जाता है| माना R1, R2 और R3 में धाराओं का मान I1, I2 और I3 हो तो ओम के नियम के अनुसार,
I1 = V/ R1, I2 = V/ R2 और I3 = V/ R3
जहाँ V बिन्दुओं A और B के बिच विभवान्तर है|
यदि बिंदु A और B पर आने वाली कुल धारा का मान I हो तो,
I = I1 + I2 + I3
= V/ R1 + V/ R2 + V/ R3
= V(1/ R1 + 1/ R2 + 1/ R3)
1/ R = 1/ R1 + 1/ R2 + 1/ R3
UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : सूक्ष्मदर्शी एवं दूरदर्शी
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