संघ लोक सेवा आयोग ने वर्ष 2011 की सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा का आयोजन देश के विभिन्न केन्द्रों पर 29 अक्टूबर, 2011 से 26 नवम्बर 2011 के मध्य किया. यहां पर सिविल सेवा मुख्य परीक्षा 2011 के हिन्दी का प्रश्न-पत्र दिया गया है. इच्छुक अभ्यर्थी इसे पढ़कर अपनी तैयारी की रणनीति बनाने में मदद ले सकते हैं.
HINDI (Compulsory)
Time Allowed: Three Hours Maximum Marks: 300
INSTRUCTIONS
Candidates should attempt ALL questions.
The number of marks carried hi each question is indicated at the end of the question Answers must be written in Hindi (Devanagari Script) unless otherwise directed.
In the case of Question No, 3, marks will be deducted if the precis is much longer or shorter than the prescribed length.The precis must be attempted only on the special precis sheet provided.
1. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर लगभग 300 शब्दों में निबंध लिखिए :- 100
(क) राजनीति और व्यक्तिगत नैतिकता का प्रश्न .
(ख) सामाजिक उन्नति का मुख्य प्रेरक कौन, धर्म अथवा विज्ञान .
(ग) सबके लिए भोजन : हमारी प्रजातांत्रिक प्रणाली के लिए एक चुनौती .
(घ) रफ़्तार की संस्कृति जल्दबाजी और अपराधवृत्ति को जन्म देती हैं .
(ड.) कृतिम – बुद्धि, मानव बुद्धि के विकल्प के रूप में .
2. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान से पढिए तथा उसके बाद दिए गए प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट, सही और संक्षिप्त रूप में दीजिए :- 6×10=60
हम औद्योगीकरण के एक तेज दौर से गुजर रहे हैं तथा अपने उद्योगों में हम बड़ी संख्या में लोगों को नियुक्त कर रहे हैं . भारत में कुछ इस प्रकार की धारणा – सी जान पड़ती हैं की आप जिस विशेष कार्य को करना चाहते हैं उसके विषय में कितना जानते हैं इस बात का महत्व नहीं हैं ; इससे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि आप किसे जानते हैं – ताकि रोजगार पाने के लिए प्रभाव का उपयोग किया जा सके . लोग यह नहीं सोचते कि अच्छे परिणामों के लिए योग्यता आवश्यक है . हमारी शिक्षा में उत्कृष्टता के विकास का एक सुनिश्चित महत्व वाला स्थान है और यदि उत्कृष्टता के विकास को महत्व नहीं दिया जाता है तो इससे योग्यता का अपमान होता है . इस बात से एक ओर तो हमारी शिक्षा प्रणाली विषाक्त और दूषित है तथा दूसरी ओर सामाजिक शिक्षा के लिए आंदोलन प्रारम्भ करने की इच्छा का गला घुट जाता है .
जब किसी पुल का निर्माण किया जाता है अथवा सड़क बनाई जाती है तो बालू, सीमेंट, चूने आदि के उचित मिश्रण के लिए एक निश्चित अनुपात का अनुसरण किया जाता है ताकि पुल और सड़क का निर्माण अच्छा हो सके और वे अधिक समय तक बने रहें . किंतु हमारा अनुभव इस विषय में हमें अंध:पतन की कहानी ही सुनाता है और हमें पता चलता है कि किसी बाँध में दरारें आ गई हैं या कोई सड़क वर्षा के कारण बह गई है .
यह विषय गुणवत्ता नियंत्रण से जुड़ा हुआ है, जिसका सम्बन्ध केवल भौतिक सामग्री से नहीं है अपितु मनुष्यों तथा उनके उत्तरदायित्व विषयक बोध से भी है .
दुर्भाग्यपूर्ण हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था से ऐसी कुछ परिस्थितियों का निर्माण होता है जिनमें योग्यता को एक व्यवस्थित रूप से उपेक्षित किया जाता है और लोगों को यह कहते हुए सुना जाता हैं कि इस देश में गुण का कोई महत्त्व नहीं है . इस बात से यह भावना उत्पन्न होती है कि यहाँ योग्यता, कार्यक्षमता और नैतिक औचित्य को महत्त्व दिये बिना कोई भी लोक सेवा का पद प्राप्त किया जा सकता है और सार्वजनिक कार्य किया जा सकता है . प्रश्न :
(1) इस देश में लोग अच्छा रोजगार पाने के विषय में क्या सोचते हैं ?
(2) हम योग्यता के प्रति सम्मान कब खो देते हैं ?
(3) योग्यता के प्रति असम्मान का दुष्परिणाम क्या होता है ?
(4) जब हम अन्य लोगों के उत्तरदायित्व बोध का सम्मान नहीं करते हैं तो परिणाम क्या होता हैं ?
(5) योग्यता, कार्यक्षमता और उत्तरदायित्व के प्रति उपेक्षा का कारण क्या लगता है ?
(6) गद्यांश में रेखांकित वाक्यांशो का अर्थ अपनी भाषा में समझाइए .
3. निम्नलिखित गद्यांश की संक्षेपिका (Precis) लगभग 190 – 210 शब्दों में लिखिए. इसके लिए दिए गए विशेष पन्नों का प्रयोग कीजिए. यदि शब्द सीमा का उल्लंघन स्वीकार्य सीमा से अधिक है तो उसी अनुपात में अंक काटे जाएंगे. यदि सक्षेपिका 150 शब्दों से कम या 250 शब्दों से अधिक लंबी हुई तो उसके लिए अंक बिल्कुल नहीं दिए जा सकते हैं. 60
मैं उस समय लगभग सात वर्ष का रहा होऊँगा जब मेरे पिता राजस्थानिक न्यायालय का सदस्य बनने के लिए पोरबंदर से राजकोट चले आए. वहाँ मुझे एक प्राथमिक विद्यालय में भर्ती करा दिया गया और मुझे उन दिनों की अच्छी तरह याद है, मुझे पढ़ाने वाले शिक्षकों के नाम तथा अन्य विशेषताएँ भी याद हैं. जैसा पोरबंदर में था उसी प्रकार यहां भी मेरी पढ़ाई के विषय में कोई विशेष उल्लेखनीय बात नहीं. मैं तो केवल एक औसत दर्जे का विद्यार्थी था. इस विद्यालय से मैं एक उपनगरीय विद्यालय में गया और वहाँ से हाई-स्कूल. तब तक मैं बारह वर्ष का हो चुका था. मुझे याद नहीं कि इस थोड़े से समय में मैंने अपने अध्यापकों अथवा सहपाठियों से कभी भी झूठ बोला हो. मैं बहुत शर्मीला था और सभी प्रकार के लोगों के साथ से बचा करता था. मेरी पुस्तकें तथा मेरे पाठ ही मेरे एकमात्र साथी होते थे. ठीक समय पर स्कूल में होना और स्कूल बन्द होते ही घर भाग आना-यही मेरी प्रतिदिन की आदत थी. मैं वस्तुतः वापस भागा ही करता था, क्योंकि मैं किसी से बातचीत नहीं कर सकता था. मुझे इस बात का भी डर था कि कहीं कोई मेरा मजाक न बनाए.
एक घटना ऐसी है जो मेरे हाई-स्कूल के पहले वर्ष के दौरान घटी और जो उल्लेखनीय है. शिक्षा निरीक्षक मिस्टर जाइल्स निरीक्षण के लिए दौरे पर आए हुए थे. वर्तनी अभ्यास (Spelling exercise) के लिए उन्होंने हमें पाँच शब्द लिखने को दिए. इनमें से एक शब्द था ‘Kettle’. मैंने उसकी वर्तनी गलत लिखी हुई थी. मेरे अध्यापक ने अपने जूते के द्वारा मुझे उसे ठीक करने के लिए संकेत देने का प्रयास किया, लेकिन मुझे वह सहायता नहीं लेनी थी. यह बात मेरी समझ से परे थी कि वे यह चाहते थे कि मैं अपने पास वाले विद्यार्थी की स्लेट पर से स्पेलिंग की नक़ल कर लूं क्योंकि में तो यह सोचता था कि अध्यापक वहाँ इसलिए हैं कि हमें नक़ल करने से रोकने के लिए हमारा निरीक्षण करते रहें. परिणाम यह हुआ कि मेरे अतिरिक्त अन्य सभी लड़कों के द्वारा लिखे गए प्रत्येक शब्द की स्पेलिंग सही पाई गई. केवल मैं ही बेवकूफ रहा. बाद में शिक्षक महोदय ने इस बेवकूफी की बात मुझे समझाने का प्रयत्न किया किन्तु उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा. मैं ‘नक़ल’ करने की कला कभी सीख नहीं पाया. फिर भी इस घटना से मेरी अपने अध्यापक ...............बिल्कुल कम नहीं हुआ. मैं स्वभाव से ही दूसरों के........देखता था. बाद में मुझे इन अध्यापक महोदय की कई.....दुर्बलताओं का पता चला, किन्तु उनके प्रति मेरा सम्मान हमेशा बना रहा. इसका कारण यह था कि मैंने बड़ों की आज्ञा का पालन करना सीखा था. उनके कार्यों का विश्लेषण................इसी कलावधि से जुड़ी दो अन्य घटनाएं मेरी स्मृति में हमेशा बनी रही हैं. विद्यालय के लिए निर्धारित पुस्तकों के अतिरिक्त और कुछ भी पढ़ने से मुझे नियमित रूप से अरुचि थी. प्रतिदिन का निर्धारित अध्ययन तो करना ही था क्योंकि मुझे अध्यापक द्वारा दण्डित किया जाना उतना ही नापसन्द था जितना कि उन्हें धोखा देना. इसलिए मैं प्रायः बिना उनमें मं लगाए हुए अपने पाठ पूरे कर लेता था. इस प्रकार जब मेरे पाठ ही पूरे सम्यक रूप से नहीं तैयार होते थे तो अतिरिक्त अध्ययन का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता था. लेकिन मेरे पिता जी द्वारा खरीदी गई एक पुस्तक पर मेरी दृष्टि किसी प्रकार पड़ गई. वह पुस्तक थी ‘श्रवण पितृभक्ति नाटक’ (श्रवण का उनके माता-पिता के प्रति भक्तिभाव के विषय में नाटक) मैंने उसे गहरे मनोयोग के साथ पढ़ा. उसी समय हमारे यहाँ घुमंतू कलाकार आए. मुझे दिखाए जाने वाले चित्रों में से एक श्रवण का था जो अपने कन्धों पर पड़ी हुई झोली की सहायता से अपने अंधे माता-पिता को तीर्थ यात्रा पर ले जा रहे थे. इस पुस्तक तथा चित्र ने मेरे मन पर एक अमित छाप छोड़ी. मैंने अपने आप से कहा, “यह ऐसा उदाहरण है जिसकी तुम्हें नक़ल करनी चाहिए”. श्रवण की मृत्यु पर उनके माता-पिता का करुण रूदन आज भी मेरी स्मृति में ताजा है. उसकी द्रवित कर देने वाली धुन ने मुझे गहराई तक प्रभावित किया और इस धुन को मैंने पिताजी के द्वारा मेरे लिए खरीदे गए बाजे पर बजाया.
4. निम्नलिखित अवतरण का हिन्दी में अनुवाद कीजिए :- 20
Tulasidas’s imagery covers a vast range. No poet of medieval period - not even his great contemporary Surdas - can vie with Tulasidas in respect of the infinite variety of imagery employed by him. He has collected his images from peasant life, court life, priestly environments, rural and civic life, philosophical treatises, literary classics, mythological works and folk literature. His poetry is a vast gallery of all kinds of images ranging from exquisite miniature paintings to large frescoes. Normally he likes simple and integrated images, but is quite capable of creating complex imagery as well. What he seem to abhor is a truncated image of which we can hardly search out a single example. His whole poetic creation is an endless endeavour to give a concrete tangible form to the abstract - to impart physical charms and mental qualities of human personality to an absolute concept. Actually the very conception of Personified Godhood is a grand' exercise in image-making. In this context, what is of special relevance to the modern reader in Tulasidas's art is his unconventional approach to literary-cultural tradition and religion. A number of poets in other Indian languages have also produced great literature in this regard, but Tulasi appears to have surpassed them all.
5. निम्नलिखित गद्यांश का अंग्रेजी में अनुवाद कीजिए :- 20
यह सर्वविदित है कि विश्व का निर्माण, विकास व रक्षा प्रकृति पर ही निर्भर है और प्रकृति के निर्माण व रक्षा में वृक्षों, वनों , लता – पादपों, गुल्मों तृणों का बड़ा महत्त्व है . वस्तुतः मनुष्य का अस्तित्व ही वृक्षों, वनों पर टिका है . वृक्ष ही मिट्टी के मुख्य रक्षक हैं . वे आंधियों के वेग को रोकते हैं और मिट्टी को उड़ने से बचाते हैं . वृक्ष ही पर्वतों का क्षरण रोकने तथा उनको स्थिर रखने में समर्थ हैं . वनों से ही पशु पक्षियों की रक्षा होती है और पारस्थितिकी संरक्षण संभव होता है . वे ही वर्षा के कारण होते हैं . जहाँ वृक्ष अधिक होते हैं वहाँ वर्षा अधिक होती है परन्तु रेगिस्तान वर्षा के लिए तरसता रहता है . वर्षा से ही अन्न उत्पादन संभव होता है और अन्न से मनुष्य जीवित रहता है . अनेक वृक्षों की पत्तियों को घास के रूप में खाकर पशु जीवित रहते हैं . वृक्षों से ही हमें ईधन व भवन निर्माण के लिए काष्ट उपलब्ध होता है . रेल, जलयान, वायुयान आदि अनेक साधनों के निर्माण में वृक्षों से प्राप्त लकड़ी का ही प्रयोग होता है . भाँति – भाँति की दवाइयां, गोंद, कागज, दियासलाई, कई तरह के तेल, अनेक प्रकार के स्वादिष्ट वा पौष्टिक फलों का अक्षुण्ण श्रोत वृक्ष ही हैं. वृक्षों की शीतल छाया हमें ग्रीष्मताप से राहत देती है.
6. (क) निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तियों में से किन्हीं पांच का अर्थ स्पष्ट करते हुए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए:- 5 × 4 = 20
(1) एक पंथ दो काज
(2) पानी पड़ना
(3) हथियार डालना
(4) नाक रगड़ना
(5) नौ दिन चले अढाई कोस
(6) एक और एक ग्यारह होना
(7) जैसी करनी वैसी भरनी
(8) जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ
(9) चिराग तले अंधेरा
(10) सौ सुनार की एक लुहार की .
(ख) निम्नलिखित में से किन्हीं पांच वाक्यों के शुद्ध रूप लिखिए :-
(1) मैं ऐसा नहीँ समझता जैसा कि आप .
(2) उसने अपने हस्ताक्षर नहीँ किया .
(3) मैं तुम्हेँ केवल पांच पुस्तकेँ ही देने पाऊँगा .
(4) परिक्षक की दृष्टि अशुद्धि पर अवश्य पड़ती है .
(5) कोयल बोलता है .
(6) राजा ने चोर को फांसी पर चढ़ाया .
(7) वह पाठ को याद नहीँ करने पाया .
(8) आप देर न करें, भोजन करो जी .
(9) वह मकान बिल्कुल फूटा हुआ था .
(10) वह पुराने कपड़े के व्यापारी हैं .
(ग) निम्नलिखित युग्मों में से किन्हीं पांच को वाक्यों में इस प्रकार प्रयुक्त कीजिए कि उनका अर्थ स्पष्ट हो जाय और उनके बीच का अंतर भी समझ में आ जाय :-
(1) लक्ष्य – लक्ष
(2) सम – शम
(3) भवन – भुवन
(4) प्रसाद – प्रासाद
(5) परिणाम – परिमाण
(6) तरंग – तुरंग
(7) मनुज – मनोज
(8) राज – राज़
(9) अकथ – अथक
(10) आहुति – आहूत
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