लंबे समय से हमारे देश में खेल के मैदान से करियर की मंजिल तय होती रही है, लेकिन कॉमनवेल्थ गेम्स ने इतना फर्क जरूर पैदा किया है कि पिछले एक दशक में देश में इस फील्ड में हुई तरक्की को सबके सामने रखा है। खेल के मैदान से नाम के साथ-साथ दाम भी कमाने का असली काम तो दरअसल क्रिकेट ने ही किया, लेकिन अब नॉन क्रिकेटिंग स्पोर्ट्स भी तेजी से आगे आ रहे हैं। फिर चाहे वह बॉक्सिंग हो या फिर वेटलिफ्टिंग। दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स ने तो जिम्नास्टिक जैसे खेल को भी ग्लैमर और शोहरत का तडका लगा दिया है, जिसमें भारत ने पहली बार किसी मेगा इंटरनेशनल स्पोर्ट्स इवेंट में मेडल जीता।
सक्सेसफुल करियर
एक निगाह सितारों पर
2008 बीजिंग ओलंपिक्स से पहले विजेंदर सिंह को देश के कितने लोग जानते थे। उनके गांव हरियाणा के भिवानी से बाहर शायद बहुत ही कम लोग, लेकिन आज विजेंदर देश ही नहीं विदेश में भी एक स्टार हैं। विजेंदर की बीजिंग ओलंपिक्स (और उसके बाद भी) में सफलता ने उन्हें एक ब्रांड के रूप में स्थापित कर दिया है। आज वह लाखों रुपये की डील एंडोर्समेंट्स के लिए साइन कर रहे हैं। आखिर कैसे होता है यह सब? सीधा सा जवाब है,
डिटरमिनेशन, डिवोशन, सही अप्रोच और सफलता के झंडे गाडने से मिलती है यह शोहरत, दौलत और एक मुकाम। बॉक्सिंग की फील्ड से ही अखिल कुमार, जयभगवान, सोमबहादुर पुन, सुरंजय सिंह और परमजीत समोटा जैसे कई नाम हैं, जो सफलता के आकाश पर चमक रहे हैं। टेनिस में सोमदेव देववर्मन, रोहन बोपन्ना और युकी भांबरी हैं, तो बैडमिंटन में साइना नेहवाल का नाम ही काफी है। वैसे ज्वाला गट्टा डबल्स में एक नए तेवर और कलेवर के साथ परचम लहरा रही हैं। वेटलिफ्टिंग में सोनिया चानू और रेणुबाला चानू का नाम किसी के लिए अब नया नहीं है। कुछ ऐसा ही हाल शूटिंग का भी है, जिसे क्रिकेट के बाद शायद देश के सबसे सक्सेसफुल, ग्लैमरस और करियर ओरिएंटेड खेल की श्रेणी में रखा जा सकता है। कॉमनवेल्थ गेम्स में गगन नारंग ने अकेले ही 4 गोल्ड मेडल्स जीत लिए, जबकि पिछली बार समरेश जंग इस खेल के हीरो थे। अभिनव बिंद्रा के खाते में भारतीय इतिहास का पहला व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण पदक लाने का श्रेय अंकित है। यह सब आपको बताने का मकसद केवल इतना था कि बीते कुछ सालों में भारत में खेलों का परिदृश्य पूरी तरह से बदल चुका है।
बदल रही है धारणा
अब बच्चों को केवल क्रिकेटर बनाने की चाह माता-पिता के भीतर नहीं रह गई है। वह इससे आगे की दुनिया भी देख रहे हैं। इसका एक दूसरा कारण भी है। क्रिकेट में इतनी भीड हो गई है कि स्टेट लेवल ट्रायल के लिए सैकडों खिलाडियों की भीड जुटती है, जबकि नॉन क्रिकेट खेलों में कम कंपटीशन के बीच जगह बनाने का मौका अब भी है। दूसरा कारण है देश में स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर में हो रहा सुधार। यह सब चीजें खेलों को एक बेहतर करियर ऑप्शन के रूप में पेश कर रही है।
रास्ता और मंजिल
बच्चों का खेलों से पहला परिचय घर के बाहर बने खेल के मैदान और स्कूल में होता है। सीबीएसई, आईसीएसई और स्टेट बोर्डों के सिलेबस में अब खेल काफी अहम भूमिका निभा रहे हैं। खासकर सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड के स्कूलों में तो खेलों पर काफी जोर है। इसी कारण स्कूलों में खेल संस्कृति का विकास हो रहा है। अच्छी सुविधाएं, काबिल कोच और बेहतर एक्सपोजर से बच्चों के पास अब पहले की तुलना में काफी अवसर हैं कि वह खेलों में करियर बनाने के बारे में शुरुआती दौर में ही सोच सकें। यहां पर दरअसल स्कूलों और पैरेंट्स की भूमिका काफी अहम हो जाती है। इवेंट्स में भाग लेने वाला हर बच्चा खेल को करियर के तौर पर नहीं ले सकता है। ऐसे में स्कूल उन बच्चों पर खास निगाह रख सकता है, जिनमें खेलों के लिए रुचि और काबिलियत है। अगर किसी बच्चे में खेल के लिए जुनून दिखाई देता है, तो तुरंत ही उसे खास निगरानी में रखे जाने की जरूरत है। इसी तरह पैरेंट्स की भूमिका भी खेल में करियर बनाने में अहम है। आज भी भारतीय परिवेश में माता-पिता ही बच्चे का भविष्य तय करते हैं। ऐसे में अगर बच्चे की रुचि के आधार पर खेलों को करियर बनाने पर ध्यान दिया जाए तो इस अब तक लगभग अनछुए करियर ऑप्शन में सफलता के अवसर काफी अधिक हो सकते हैं।
सही रणनीति से बनेगी बात
स्कूल, जिला, स्टेट और फिर नेशनल लेवल से होता हुआ किसी भी खिलाडी का सफर इंटरनेशनल लेवल तक आसानी से पहुंच सकता है, बशर्ते प्रयास सही दिशा में पूरे मनोयोग से किए जाएं। नामुमकिन कुछ भी नहीं है। कम से कम विजेंदर सिंह की सफलता तो यही कहती है। विजेंदर के कोच की लगन के कारण हरियाणा के किसी भी अन्य साधारण कस्बे की तरह दिखने वाला भिवानी अब देश के बॉक्सिंग हब में तब्दील हो चुका है। कुछ ऐसा ही हाल है कुश्ती का। सुशील कुमार की पहले बीजिंग ओलंपिक्स और फिर वर्ल्ड चैंपियनशिप की सफलता ने आधुनिक हो चले अखाडों को एक करियर ऑप्शन के तौर पर भी खोल दिया है। केवल सुशील ही क्यों, मेरठ की अल्का तोमर और अनुज तोमर, राजेंद्र कुमार, योगेश्वर दत्त, नरसिंह यादव और गीता कुमारी भी इस सुनहरी सफलता के नए चेहरे हैं।
खिलाडी बनना है तो..
खिलाडियों को उत्साही, ऊर्जावान और शारीरिक रूप से पूरी तरह फिट होना चाहिए।
अगर सफल खिलाडी बनना है तो जिस खेल में रुचि है, उसमें पूरी लगन व प्रतिबद्धता के साथ परिश्रम करना चाहिए।
सफलता के लिए धैर्य, डटे रहने की प्रवृत्ति और खेल भावना होना आवश्यक है।
किसी भी खिलाडी के लिए साइकोमोटर और शारीरिक अनुकूलता बेहद जरूरी है।
सेंट्रल स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी
शायद अब सरकार ने खेलों की बढती ताकत और रोजगार देने में सक्षमता को पहचान लिया है। तभी तो उसने देश में एक सेंट्रल स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी बनाने का काम तेज कर दिया है। दरअसल यह सेंट्रल गवर्नमेंट और झारखंड गवर्नमेंट का संयुक्त प्रयास है, लेकिन अगर इसे अमली जामा पहनाया जा सका तो यह भारतीय खेलों के इतिहास में क्रांति ला सकता है। इससे न केवल अच्छे खिलाडी बन सकेंगे बल्कि देश में एक खेल संस्कृति का भी विकास होगा। इस योजना के तहत राष्ट्रीय खेलों के लिए झारखंड में 700 करोड रुपये की लागत से बने स्टेडियमों और खेल सुविधाओं का इस्तेमाल एक खेल विश्वविद्यालय के रूप में किया जाना है। इस इस योजना के मुताबिक प्रस्तावित खेल विश्वविद्यालय के निकट कुछ केंद्रीय विद्यालय खोले जाने हैं। इसका मकसद है कि स्कूलों से खेल प्रतिभाएं खोजकर उन्हें खेल में करियर बनाने के उद्देश्य से कम उम्र में ही सही प्रशिक्षण दिया जा सके।
आशीष कुमार
आशीष आज देश का सबसे बडा जिम्नास्ट है, उसने वह किया है कि जो पिछले 52 साल में कभी नहीं हुआ। भारत को कॉमनवेल्थ गेम्स में जिम्नास्टिक में मेडल्स मिले हैं, एक सिल्वर और एक ब्रांज।
आशीष को जिम्नास्ट बनाने का फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि वह बचपन में शरीर के लोच के कारण बहुत शरारत करता था। वह सामान्य बच्चों की तरह उछलने कूदने के अलावा कई हरकतें ऐसी भी करता था जिनसे शरीर की लोच का पता चलता था। बच्चे की रुचि व शारीरिक क्षमता पर निगाह रखो और अनुकूल खेल का ही चुनाव करो। एक बार सही खेल का चुनाव हो गया तो आधी जंग फतह समझो। बाकी का काम सही ट्रेनिंग सेंटर व कोच का सेलेक्शन और बच्चे को मेंटल सपोर्ट देने से किया जा सकता है।
जगदीश कनौजिया (आशीष के पिता)
नेशनल स्पोर्ट्स एकेडमी के प्रोडक्ट आशीष ने 58 नेशनल मेडल और 19 इंटरनेशनल मेडल हासिल किए हैं। वह तीन बार से नेशनल चैंपियन है।
स्टेप बाई स्टेप
घर के आंगन में खेल की शुरुआत
स्कूल में खेल गतिविधियां
इंटर स्कूल कांपटीशन
डिस्ट्रिक्ट चैंपियनशिप
यूनिवर्सिटी कंपटीशन
स्टेट लेवल प्रतियोगिताएं
नेशनल लेवल चैंपियनशिप
इंटरनेशनल कंपटीशन
साइना नेहवाल
वह आज दुनिया की तीसरे नंबर की बैडमिंटन प्लेयर हैं, जिन्होंने भारत के लिए कॉमनवेल्थ गेम्स का सुनहरा समापन बैडमिंटन के गोल्ड मेडल के साथ किया। साइना का कहना है कि
खेल की दुनिया में भी कोई शार्टकट नहीं है। सफल होने के लिए केवल और केवल एक ही रास्ता है और वह है मेहनत व कमिटमेंट। सही कोचिंग व पैरेंट्स का साथ भी काफी अहम है। किसी भी खिलाडी के लिए फिजिकल फिटनेस के साथ ही मेंटल टफनेस और एक बार में एक ही लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी है।
स्पोर्ट्स
फास्ट ट्रैक करियर
खेलों के क्षेत्र में कई सरकारी व निजी संस्थान नौकरियां प्रदान करते हैं।
रेलवे: खिलाडियों को नौकरियाँ प्रदान करने में प्रथम है। दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को मिले 101 पदकों में अकेले रेलवे के खाते में 23 पदक गए हैं। जिम्नास्ट आशीष कुमार भी रेलवे में ही हैं।
सर्विसेज में बॉक्सिंग के अच्छे खिलाडी रहे हैं। इसके अलावा सेना, सुरक्षा बल एवं पुलिस में भी खिलाडियों के लिए अच्छे अवसर हैं।
पेट्रोलियम स्पोर्ट्स प्रमोशन बोर्ड खिलाडियों को अवसर प्रदान करने वाला एक प्रमुख मंच है। पीएसपीबी में बैडमिंटन व टेबिल टेनिस पर खासा जोर रहता है।
निजी कंपनियों में ओएनजीसी खेलों के क्षेत्र में काफी आगे है।
स्पोर्ट्स में अन्य करियर
और भी हैं राहें
ऐसा नहीं है कि खेल के मैदान के भीतर ही करियर की सारी संभावनाएं हैं। यदि आप खिलाडी नहीं बन पाए, तो अपनी रुचि और मेहनत से स्पोर्ट्स से संबंधित अन्य करियर भी बना सकते हैं।
कोच - गुरु
राज्यों व केंद्र सरकार के खेल प्रशिक्षण संस्थानों में कोच की डिमांड भी कम नहीं है। इसके अलावा देश में आगे बढ रहे स्पोर्ट्स कल्चर के कारण स्कूलों व क्लबों में भी खेल प्रशिक्षकों की जरूरत महसूस की जा रही है। कई संस्थान हैं, जहां से कोच बनने के लिए जरूरी शैक्षिक योग्यता हासिल की जा सकती है। पटियाला का राष्ट्रीय खेल संस्थान इस फील्ड का सबसे बडा व मशहूर संस्थान है।
अंपायर व रेफरी
किसी भी स्पर्धा को संचालित करने के लिए अंपायर या रेफरी की जरूरत होती है। जिस तेजी से खेल स्पर्धाओं की संख्या बढ रही है, उतनी ही तेजी से अंपायरों व रेफरियों की जरूरत होगी। अंपायरों व रेफरियों के लिए परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं व इनका सेलेक्शन राज्य या राष्ट्रीय खेल संघ करते हैं।
खेल प्रबंधन
आजकल हर सफल खिलाडी विज्ञापन बाजार में अपनी कीमत रखता है। ऐसे ही सफल खिलाडियों की ऑफ फील्ड गतिविधियों को मैनेज करने के लिए खेल प्रबंधकों की जरूरत पडती है। खेल प्रबंधक कंपनियों के साथ खिलाडियों के करार, बिजनेस प्रमोशन, करियर की प्रगति और मीडिया के साथ रिश्तों को सही ढंग से संचालित करते हैं। यही नहीं कई बडे क्लब, स्कूल, कंपनियां भी खेल प्रबंधक रखती हैं। अगर आप नेशनल लेवल पर एक्सपोजर नहीं पा सके लेकिन खेलों में गहरी रुचि रही है तो एमबीए करके इस फील्ड में अवसर पा सकते हैं।
लिखो या बोलो
स्पोर्ट्स एक विशेषज्ञता का क्षेत्र है। अगर आप खेलों के प्रति पैशन रखते हैं और किसी भी कारण से इसमें बतौर खिलाडी सफल नहीं हो सके तो आप खेल पत्रकार या कमेंटेटर भी बन सकते हैं। केवल क्रिकेट ही नहीं बाकी खेलों में भी विशेषज्ञ कमेंटेटरों की जरूरत महसूस की जा रही है।
स्पोर्ट्स एकेडमी
ये बनाते हैं खिलाडी
देश में खिलाडी को सही प्रशिक्षण व एक्सपोजर देने के लिए कुछ प्राइवेट व सरकारी संस्थान मौजूद हैं। इन्होंने बीते कुछ साल में वाकई काफी अच्छा काम किया है।
भारतीय खेल प्राधिकरण (साई)
भारत में खिलाडियों की प्रतिभा पहचानने व निखारने का यह सबसे बडा संस्थान है। स्टेट, नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर खिलाडियों को तैयार करने के लिए साई ने कई योजनाएं बनाई हैं।
स्कॉलरशिप : साई ने नेशनल लेवल पर अच्छी परफॉर्मेस कर रहे खिलाडियों के प्रशिक्षण और बेहतरी के लिए यह योजना शुरू की है। साई के देश भर में लखनऊ, दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरू, गांधी नगर और इम्फाल में ट्रेनिंग सेंटर हैं। इस तरह वह देश के हर हिस्से को कवर करने की कोशिश कर रहा है, ताकि उभरते हुए खिलाडियों व छिपी प्रतिभाओं को तराशकर सामने लाया जा सके।
टाटा फुटबॉल अकादमी, कोलकाता
भारत में फुटबॉल तेजी से बढता खेल है और इसका श्रेय किसी हद तक टाटा फुटबॉल अकादमी को जाता है। टाटा अकादमी ने देश को कई बेहतरीन खिलाडी दिए हैं। कोलकाता स्थित इस अकादमी में खिलाडियों को इंटरनेशनल लेवल की सुविधाओं के साथ ट्रेनिंग दी जाती है। कोलकाता में फुटबॉल का जुनून होने के कारण खिलाडियों का वह माहौल भी मिलता है, जो किसी भी खिलाडी की हौैसलाअफजाई के लिए जरूरी है।
गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी
भारत के लिए ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन खिताब जीतने वाले पुलेला गोपीचंद हैदराबाद में अपनी अकादमी में नए सितारे तैयार कर रहे हैं। साइना नेहवाल इसी अकादमी की हैं। पांच एकड में फैली इस अकादमी में इंटरनेशनल लेवल की सुविधाएं मौजूद हैं। खुद गोपीचंद खिलाडियों के प्रशिक्षण व फिटनेस पर बारीक निगाह रखते हैं।
मैरीकॉम की अकादमी
पांच बार की विश्व चैंपियन बॉक्सर एमसी मैरीकॉम ने बीडा उठाया है कि वह देश में महिला बॉक्सरों की नई पौध को जरूरी खाद व पानी मुहैया कराएंगी। मैरीकॉम ने अपने ही बलबूते मणिपुर में एक अकादमी खोलने का फैसला किया। सुविधाओं के साथ ही इस अकादमी में खिलाडियों को मैरीकॉम सरीखा उम्दा प्रशिक्षक व प्रेरणस्रोत भी मिलेगा।
उषा की कोशिश
भारत में एथलेटिक्स को एक नया मुकाम देने वाली पीटी उषा ने भी देश में इस खेल के प्रति रुझान रखने वाले खिलाडियों के लिए अकादमी खोली है। उनकी अकादमी में कुछ नए खिलाडी तेजी से उभरकर सामने आ रहे हैं। यहां भी सुविधाओं के अलावा उषा का साथ प्रशिक्षुओं के लिए एक अतिरिक्त लाभ की तरह है।
जेआरसी टीम
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