उच्च शिक्षा को नए सिरे से पटरी पर लाने के लिए सरकार मिशन मोड परियोजना के रूप में ‘राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान’ जरूर शुरू करने जा रही है, लेकिन उसके लिए राज्य सरकारों को कई मानकों पर खतरा उतरना होगा। योजना पर अमल के पहले ही राज्य सरकारों व संबंधित उच्च शिक्षण संस्थाओं को पूर्व निर्धारित शतरें को पूरा करना जरूरी होगा। राज्य सरकारें या संबंधित संस्थान उसमें फेल हुए तो उन्हें केंद्रीय अनुदान नहीं मिल सकेगा।
उच्च शिक्षा में ढेर सारे सुधारों के साथ मौजूदा 18 प्रतिशत सकल दाखिला दर (जीईआर) को 2020 तक बढ़ाकर 30 प्रतिशत करने के लिए शुरू हो रहे राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रुसा) के तहत राज्यों को हर तरह की मदद मिलेगी, लेकिन उनकी जवाबदेही भी तय होगी। दो पंचवर्षीय (12वीं व 13वीं) योजना में इस पर पूरी तरह अमल के लिए हर राज्य को अपने यहां आधारभूत सर्वे कराकर योजना बनानी होगी। बाद में वार्षिक योजनाओं में बांटकर उनका लक्ष्य भी तय कर दिया जाएगा, जिसमें राज्य सरकारें और संबंधित उच्च शिक्षण संस्थान (दो घटक) शामिल होंगे। उसके आधार पर ही उनकी मदद का अनुदान तय होगा।
योजना के मुताबिक, राज्य सरकारों को अभियान के तहत केंद्रीय मदद की बाबत अलग कोष बनाना होगा। एक निश्चित अवधि में फैकल्टी के खाली पदों को भरना होगा। इसके अलावा भविष्य की योजना बनाकर कॉलेजों की संबद्धता व परीक्षा में सुधार को निश्चत करना होगा। साथ ही राज्य उच्च शिक्षा परिषद का गठन भी जरूरी होगा। जबकि, उच्च शिक्षण संस्थाओं को भी अपनी भावी योजना, परियोजना के लिए अलग से प्रबंधन दल, अकादमिक सुधार व आंतरिक अनुशासन, प्रबंधन सूचना प्रणाली की स्थापना, विनियामक मंडल के गठन और परियोजना मॉनीटरिंग यूनिट जैसे उपाय करने जरूरी होंगे।
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