गूगल ग्लोबल इंपैक्ट अवॉर्ड के चार विनर्स में से एक सोशल अवेयरनेस, न्यूअर ऑल्टरनेटिव्स यानी सना ने करीब ढाई साल के अंदर जिस तरह टेक्नोलॉजी और ग्रीन एनर्जी की मदद से दिल्ली और आंध्र प्रदेश के लोगों तक पीने का साफ पानी पहुंचाया है, उसका क्रेडिट इस चैरिटेबल ट्रस्ट की मैनेजिंग ट्रस्टी संचयिता गजपति को जाता है। पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएट संचयिता पेशे से एक लॉयर रह चुकी हैं। कई डॉक्यूमेंट्री फिल्में भी बनाई हैं, लेकिन कर्नाटक के गुलबर्ग में एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म शूट करने के दौरान उन्होंने अपनी लाइफ का बडा फैसला लिया। फैसला अंडरप्रिविलेज्ड कम्युनिटी तक पीने का साफ पानी पहुंचाने और उनके लिए काम करने का। इसके बाद साल 2011 में शुरू हुआ सना का सफर।
सना का सफर
सना की फाउंडर संचयिता गजपति हमेशा से कुछ ऐसा करना चाहती थीं, जिससे सोसायटी में बडा चेंज आए। मीडिया में रहते हुए उन्हें गांव की जिंदगी को करीब से देखने का मौका मिला। वे वहां की मुश्किलों को समझ सकीं कि कैसे बिना बिजली, साफ पानी और दूसरी जरूरी सुविधाओं के अभाव में लोग रहते हैं। संचयिता कहती हैं, आज पीने के पानी को मैनेज करना सबसे चैलेंजिंग टास्क है। इंडिया में हर दो में से एक व्यक्ति को पीने का साफ पानी नहीं मिलता है। गांवों की ही तरह शहरों के स्लम एरियाज में भी यह एक बडी प्रॉब्लम्स है। लोग बीमारी के शिकार होते हैं। वह कहती हैं, पानी के लिए लडकियों की पढाई छुडवा दी जाती है। इन्हीं सब समस्याओं को देखते हुए मैंने फैसला किया कि कुछ ऐसा किया जाए, जिससे सोसायटी को फायदा हो। इसके बाद ही सना ने पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल के तहत आंध्र प्रदेश के चमावरम गांव और दिल्ली के स्लम एरियाज में पीने का साफ पानी पहुंचाना शुरू किया। कॉरपोरेट्स और दूसरे लोगों ने फंड्स के अलावा बाकी इक्विपमेंट्स प्रोवाइड कराए। टेक्निकल फील्ड से जुडे प्रोफेशनल्स और इंजीनियर्स के साथ-साथ स्टूडेंट्स ने वॉलंटियर के तौर पर मदद की।
बच्चों को मिला साफ पानी
सना का पहला प्रोजेक्ट 1 सितंबर, 2012 को पूर्वी दिल्ली के सूरजमल विहार के आरपीवीवी स्कूल में शुरू हुआ। यहां ट्रस्ट ने दिल्ली सरकार की मदद से सोलर वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट सेटअप किया। यहां सोलर पॉवर पैनल और माइक्रो-आयनॉइजिंग वॉटर प्यूरीफिकेशन प्रॉसेस से सालाना करीब 1.8 मिलियन लीटर साफ पानी तैयार होता है, जिसमें से 5 लीटर पानी हर दिन अंडरप्रिविलेज्ड कम्युनिटी के एक हजार से ज्यादा स्कूली बच्चों में से हर एक को दिया जाता है। संचयिता ने बताया कि इस प्रोजेक्ट में दो कंपनियों ग्रीन ऐंड ब्लू और लाओस की सनलाबॉब ने उनकी काफी मदद की है।
पानी के साथ रोजगार भी
संचयिता के मुताबिक आंध्र प्रदेश के चमावरम गांव में न ही बिजली रहती थी, न ही पीने का साफ पानी मिलता था। उन्होंने वहां लोकल पंचायत और एमपीलैड स्कीम की मदद से सोलर वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाया। सना के टेक्नोलॉजी पार्टनर्स ने लोकल लोगों को ही ट्रेन किया। यही लोग आज वॉटर स्टेशन की मेंटिनेंस संभालते हैं। आज इस प्लांट से करीब 1.8 मिलियन लीटर पीने का साफ पानी लोगों तक पहुंच रहा है, जिसके साथ उन्हें रोजगार भी मिला है।
फोकस ऑन सैनिटेशन
संचयिता कहती हैं कि हर जगह सेप्टिक टैंक्स बनाना आसान नहीं होता। खासकर आंध्र प्रदेश की मिट्टी में जहां काफी नमी है, वहां ऐसे टॉयलेट्स असरदार नहीं होते हैं। इसे देखते हुए ही सना ने आने वाले समय में डीआरडीओ द्वारा डेवलप किए गए बायो डाइजेस्टर टॉयलेट्स को आंध्र प्रदेश के तटीय इलाके के 12 गांवों में लगाने की योजना बनाई है, जिससे 25 हजार लोगों को फायदा पहुंचने की उम्मीद है।
समाज को फायदा दिलाने में मिला गूगल ग्लोबल इंपैक्ट अवॉर्ड
गूगल ग्लोबल इंपैक्ट अवॉर्ड के चार विनर्स में से एक सोशल अवेयरनेस, न्यूअर ऑल्टरनेटिव्स यानी सना ने करीब ढाई साल के अंदर जिस तरह टेक्नोलॉजी और ग्रीन एनर्जी की मदद से दिल्ली और आंध्र प्रदेश के लोगों तक पीने का साफ पानी पहुंचाया है, उसका क्रेडिट इस चैरिटेबल ट्रस्ट की मैनेजिंग ट्रस्टी संचयिता गजपति को जाता है.
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