अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने उत्तर पूर्वी राज्यों में कार्यकुशलता में सुधार और क्षेत्र में बिजली बचाने के लिए अलग टाइम ज़ोन की मांग की है. उनके अनुसार टाइम ज़ोन में बदलाव न होने के कारण सरकारी दफ्तर 10 बजे खुलते हैं और 4 बजे बंद हो जाते हैं जिससे कार्यकुशलता का पूरा फायदा नहीं उठाया जा रहा.
हाल ही में गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने अलग टाइम ज़ोन की मांग को लेकर दायर की गयी एक जनहित याचिका को ख़ारिज कर दिया था.
पृष्ठभूमि
बेंगुलुरु आधारित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज़ द्वारा किये गये एक अध्ययन के अनुसार उत्तर-पूर्वी भारत का टाइम ज़ोन अलग किये जाने से प्रत्येक वर्ष 2.7 बिलियन यूनिट बिजली की बचत हो सकती है. वर्ष 2006 में योजना आयोग द्वारा प्रकाशित की गयी रिपोर्ट के अनुसार भारत में अलग-अलग टाइम ज़ोन बनाये जाने से बिजली की बचत होगी तथा कार्यक्षमता में वृद्धि होगी.
जनवरी 2014 में असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने भी उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए अलग टाइम ज़ोन की मांग करते हुए यहां चाय बागान टाइम ज़ोन बनाये जाने का प्रस्ताव रखा था.
चाय बागान टाइम यहां के चाय बागान में काम करने वाले कामगारों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला टाइम ज़ोन है. ये कामगार भारत के टाइम ज़ोन से एक घंटे आगे चलते हुए काम करते हैं जिसे चाय बागान टाइम ज़ोन कहा जाता है. वर्ष 2014 में राज्य सभा मे केंद्रीय मंत्री जितेंद्र प्रसाद ने इस प्रस्ताव को नकार दिया था.
टिप्पणी
उत्तर-पूर्व भारत के लोगों की अलग टाइम ज़ोन के लिए लंबे समय से मांग रही है. भारतीय स्टैण्डर्ड टाइम 1906 में ग्रीनविच मीन टाइम (जीएमटी) से 82.5° अथवा 5.30 घंटे आगे निर्धारित किया गया था. भारत के दूसरे हिस्सों में इस टाइम से कोई परेशानी नहीं होती लेकिन उत्तर-पूर्व में लोगों को इससे दिक्कत का सामना करना पड़ता है. उत्तर-पूर्व में 4 बजे सूर्योदय हो जाता है तथा शाम को 5 बजे के आसपास सूर्यास्त हो जाता है. अरुणाचल प्रदेश में 10 बजे तक पूरी दोपहर हो चुकी होती है जबकि भारत के अन्य हिस्सों में सुबह का ही वक्त होता है. इसलिए समय का सदुपयोग करने के लिए वहां के स्थानीय निवासियों ने चाय बागान टाइम ज़ोन निकाला है. चाय बाग टाइम ज़ोन ब्रिटिश काल में 150 वर्ष पूर्व लाया गया था.
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