सुप्रीम कोर्ट ने 31 जुलाई 2018 को फैसला दिया है कि कर छूट अधिसूचनाओं में अस्पष्टता का राजस्व के पक्ष में व्याख्या की जानी चाहिए और निर्धारिती को लाभ नहीं देना है.
यह निर्णय न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशीय संविधान खंडपीठ द्वारा किया गया था. खंडपीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एन वी रामाना, आर बनुमती, एम एम शांतनगौदर और एस अब्दुल नाज़ीर शामिल थे.
सुप्रीम कोर्ट ने कर छूट संबंधी अपना 21 साल पुराना एक निर्णय बदलते हुए व्यवस्था दी है कि टैक्स में छूट से संबंधित अधिसूचना में किसी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में इसका व्याख्या का लाभ शासन के पक्ष में किया जाना चाहिए.
अधिसूचना से संबंधित मुख्य तथ्य:
- संविधान बेंच ने कहा कि सरकार की कर छूट अधिसूचना में अस्पष्टता है जो सख्त व्याख्या के अधीन है, इस तरह के अस्पष्टता का लाभ विषय / निर्धारिती द्वारा दावा नहीं किया जा सकता है और इसे राजस्व के पक्ष में व्याख्या किया जाना चाहिए.
- संविधान खंडपीठ ने कहा कि छूट अधिसूचना का सख्ती से व्याख्या किया जाना चाहिए और इसकी प्रयोज्यता साबित करने का बोझ निर्धारिती पर होगा कि यह मामला छूट खंड या अधिसूचना के मानकों के भीतर आ जाएगा.
- सन निर्यात निगम मामले में, एक तीन न्यायाधीशीय खंडपीठ ने फैसला दिया था कि कर छूट प्रावधान या अधिसूचना में अस्पष्टता का अर्थ व्याख्या किया जाना चाहिए ताकि निर्धारिती के पक्ष में इस छूट के लाभ का दावा किया जा सके.
- संविधान पीठ के फैसले में कहा गया है कि पहले दिए गए फैसले से भ्रम उत्पन्न हो गया था और क़ानूनी रूप से असंतोषप्रद स्थिति पैदा हो गई थी.
पृष्ठभूमि:
सन निर्यात निगम, बॉम्बे बनाम कस्टम्स ऑफ कस्टम्स, बॉम्बे, (वर्ष 1997) में अनुपात की शुद्धता की जांच करने के लिए किए गए संदर्भ पर न्यायमूर्ति रामान ने 82 पृष्ठ के फैसले की रचना की थी.
अदालत ने सीमा शुल्क निगम, कलेक्टर ऑफ कस्टम्स, बॉम्बे के मामले की सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया था.
सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने वर्ष 1997 में अपने निर्णय में कहा था कि टैक्स से छूट संबंधी किसी प्रावधान या अधिसूचना को लेकर अस्पष्टता होने की स्थिति में इसके लाभ का दावा करने वाले कर दाता के पक्ष में इसकी व्याख्या की जानी चाहिए.
यह भी पढ़ें: ताजमहल में बाहरी लोगों को नमाज़ पढ़ने की अनुमति नहीं: सुप्रीम कोर्ट
Comments
All Comments (0)
Join the conversation