भारत ने राजस्थान में पोखरण परीक्षण रेंज से ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का 22 मार्च 2018 को सफल परीक्षण किया.
भारत-रूस द्वारा मिलकर बनाई गई ब्रह्मोस मिसाइल की रेंज को अब 400 किलोमीटर तक बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि वर्ष 2016 में भारत के मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) का पूर्ण सदस्य बन जाने के चलते उस पर लागू होने वाली कुछ तकनीकी पाबंदियां हट गई है.
भारत के डीआरडीओ और रूस के एनपीओ मशिनोस्त्रोयेनिया ने संयुक्त रूप से ब्रह्मोस का निर्माण किया है. इसका नाम दो नदियों ब्रह्मपुत्र तथा मोस्क्वा को जोड़कर बनाया गया है. ब्रह्मोस मिसाइल भारत के सुखोई-30 लड़ाकू विमान पर तैनात सबसे भारी हथियार है.
ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइलों को 40 सुखोई लड़ाकू विमानों में जोड़ने का काम जारी है और ऐसा कहा जा रहा है कि क्षेत्र में नए उभरते सुरक्षा परिदृश्य में इस कदम से भारतीय वायुसेना की जरुरतें पूरी हो जाएंगी.
ब्रह्मोस मिसाइल की खासियत:
• ब्रह्मोस मिसाइल आवाज की गति से करीब तीन गुना अधिक यानी 2.8 माक की गति से हमला करने में सक्षम है.
• ये मिसाइल 300 किलोग्राम भारी युद्धक सामग्री ले जा सकता है.
• ब्रह्मोस मिसाइल 3700 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से 290 किलोमीटर तक के ठिकानों पर अटैक कर सकता है.
• ब्रह्मोस जल, थल और वायु से छोड़ी जा सकने वाली मिसाइल है.
• ब्रह्मोस एएलसीएम (एयर लांच क्रूज मिसाइल) का वजन 2.5 टन है. यह मिसाइल के जमीन और समुद्री संस्करणों से हल्का है.
• यह भारत के सू-30 विमान में तैनात किए जाने वाला सबसे भारी हथियार है.
• हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) द्वारा हथियार की ढुलाई के लिए विमान में परिवर्तन किया गया.
• इस मिसाइल को 500 से 14,000 मीटर (1640 से 46,000 फीट) ऊंचाई से छोड़ा जा सकता है.
• इसे छोड़ने के बाद मिसाइल स्वतंत्र रूप से 100 से 150 मीटर तक गिरती है और फिर क्रूज फेज में 14000 मीटर और अंत में अंतिम चरण में 15 मीटर जाती है.
• इसका निशाना अचूक है. यह कम ऊंचाई पर उड़ान भरने के कारण रडार की पकड़ में नहीं आती है.
भारत आसमान से मिसाइल दागने वाला चौथा देश:
सुखाई विमान से ब्रह्मोस को दागने के बाद भारत भी उन देशों की श्रेणी में आ गया है, जो जल और थल ही नहीं आसमान से भी मिसाइल दाग सकते हैं. भारत से पहले ऐसा करने वाले देश अमरीका, रूस और फ्रांस है.
पृष्ठभूमि:
इस मिसाइल को भारत सरकार सुखोई में तैनात करने के लिए काम कर रही है. अगले तीन वर्षों में कुल 40 सुखोई विमान ब्रह्मोस मिसाइल से लैस हो जाएंगे. सुखोई में ब्रह्मोस मिसाइल होने से वायुसेना की ताकत काफी बढ़ जाएगी. ब्रह्मोस का पहला सफल परीक्षण 12 जून 2001 को किया गया था. मौजूदा समय में यह भारतीय वायु सेना के लड़ाकू बेड़े की रीढ़ बन चुका है. यह मिसाइल सबसे पहले 2005 में नौसेना को मिली थी.
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