कावेरी जल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने 16 फरवरी 2018 को फैसला सुनाते हुए तमिलनाडु को मिलने वाले पानी का हिस्सा घटाकर उसे कर्नाटक को दिए जाने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार तमिलनाडु को मिलने वाले पानी का हिस्सा घटाकर 192 से 177.25 TMC कर दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हिस्सेदारी बढ़ाए जाने पर अब कर्नाटक को 270 TMC के स्थान पर 284.75 TMC पानी प्राप्त होगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय जल योजना के लागू होने के बाद कोई भी राज्य किसी ऐसी नदी पर अपना एकछत्र अधिकार नहीं जता सकता, जो शुरू होने के बाद किसी दूसरे राज्य से गुज़रती है.
कावेरी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
• सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु को हर महीने में दिए जाने वाले पानी को लेकर ट्रिब्यूनल का आदेश अगले 15 साल तक मानना होगा.
• कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल का तमिलनाडु में खेती का क्षेत्र बताने वाला फैसला सही है, लेकिन ट्रिब्यूनल ने तमिलनाडु में भूमिगत जल की उपलब्धता पर विचार नहीं किया.
• इसलिए कर्नाटक में पानी की हिस्सेदारी 14.75 TMC बढ़ाई जाएगी.
• केंद्र ट्रिब्यूनल के आदेश के मुताबिक कावेरी मैनेजमेंट बोर्ड का गठन करेगा.
• यह फैसला चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अमिताव रॉय और जस्टिस एएम खानविलकर की बेंच द्वारा दिया गया.
• कर्नाटक चाहता था कि तमिलनाडु को जल आवंटन कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट आदेश जारी करे, जबकि तमिलनाडु का कहना था कि कर्नाटक को जल आवंटन कम किया जाए.
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क्या है कावेरी विवाद?
• कावेरी जल विवाद का मुख्य कारण मद्रास-मैसूर समझौता 1924 को माना जाता है.
• वर्ष 1924 में मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर राज के बीच ही यह विवाद था और दोनों के बीच पानी को लेकर समझौता भी हो गया लेकिन बाद में इस विवाद में केरल और पुडुचेरी भी शामिल हो गए जिससे यह विवाद गहरा गया.
• जुलाई 1986 में तमिलनाडु ने अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम (1956) के तहत इस मामले को सुलझाने के लिए आधिकारिक तौर पर केंद्र सरकार से एक न्यायाधिकरण के गठन किए जाने का निवेदन किया.
• विवाद के निपटारे के लिए 1990 में केंद्र सरकार ने एक ट्रिब्यूनल बनाया जिसे पानी की किल्लत की समस्या पर गौर फरमाना था.
• वर्ष 1991 में न्यायाधिकरण ने एक अंतरिम आदेश पारित किया जिसमें कहा गया था कि कर्नाटक कावेरी जल का एक तय हिस्सा तमिलनाडु को देगा. हर महीने कितना पानी छोड़ा जाएगा, यह भी तय किया गया लेकिन इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ.
• इसके बाद तमिलनाडु इस अंतरिम आदेश को लागू करने के लिए दबाव डालने लगा. इस आदेश को लागू करने के लिए तमिलनाडु की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की गयी जिससे मामला और भी ज्यादा उलझ गया.
• इसके बाद 5 सितंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद प्रदेशों के बीच तनाव अधिक हो गया जब अदालत ने कर्नाटक को निर्देश दिया कि वह लगातार 10 दिन तक तमिलनाडु को 15,000 क्यूसेक पानी सप्लाई करे.
• सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने आदेश में बदलाव करते हुए तमिलनाडु को 20 सितंबर तक हर दिन 12 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश पारित किया लेकिन कर्नाटक ने तमिलनाडु को पानी देने से मना कर दिया .
• इसके बाद जनवरी 2017 को तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची और कहा कि कर्नाटक सरकार ने उसे पानी नहीं दिया इसलिए उसे 2480 करोड़ रुपए का हर्जाना मिलना चाहिए जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा.
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