केंद्र सरकार ने गंगा की लुप्तप्राय डाल्फिन समेत पूरी जलचर जीव की संख्या पता लगाने के लिए पूरी नदी का सर्वेक्षण शुरू किया है. नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत यह सर्वेक्षण किया जाएगा.
सर्वेक्षण इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि नदी के जीवों की संख्या से पानी की गुणवत्ता का पता चलता है. इससे मिले वैज्ञानिक डाटा की मदद से सरकार गंगा के पानी की गुणवत्ता सुधारने हेतु उपयुक्त कदम उठाएगी.
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के अनुसार, उत्तर प्रदेश में नरोरा से बिजनौर के मध्य सर्वेक्षण का पहला चरण 1 मार्च 2017 को शुरू किया गया. इस दौरान गंगा में लगभग 165 किलोमीटर में राष्ट्रीय जल प्राणी डाल्फिन की संख्या का पता लगाया जाएगा.
इलाहाबाद से वाराणसी लगभग 250 किलोमीटर तक गणना का काम इस सप्ताह शुरू होने की उम्मीद है. उत्तराखंड के हर्षिल से भी नदी में मछली की प्रजातियों का पता लगाने का अध्ययन शुरू किया गया है.
हालांकि यह सर्वेक्षण भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) के तहत कराया जा रहा है.
एनएमसीजी के अनुसार, गंगा में डाल्फिनों के अलावा घडि़याल तथा कछुओं की संख्या का भी पता लगाया जाएगा. यह गणना अक्टूबर 2017 तक चलेगी. बेहरा ने कहा कि इसके बाद इसी तरह की गणना गंगा की सहायक नदियों में कराई जाएगी.
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, सर्वेक्षण 2015 में किया जाना था. लेकिन राज्यों के बीच समन्वय के अभाव के कारण ऐसा नहीं हो सका.
हालांकि उत्तर प्रदेश ने सर्वेक्षण कराया था. 5 अक्टूबर 2015 से 8 अक्टूबर 2015 के बीच कराए गए इस सर्वेक्षण में लगभग 1,263 डाल्फिन पाई गई थीं. यह सर्वेक्षण राज्य में 3350 किलोमीटर में गंगा तथा उसकी सहायक नदियों में कराया गया था.
डब्ल्यूआइआइ पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की स्वायत्त संस्था है. एनएमसीजी के सलाहकार तथा इस मामले के विशेषज्ञ संदीप बेहरा ने नरोरा से कानपुर के बीच प्रदूषण के चलते गंगा में डाल्फिन के विलुप्त होने पर चिंता जताई.
उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण से डाल्फिन की स्थिति तथा उनको होने वाले खतरे के स्तर का पता चलेगा. गंगा में पहले भी टुकड़ों में सर्वेक्षण कराए गए लेकिन पहली बार व्यापक तथा वैज्ञानिक अध्ययन किया जा रहा है.
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