चंद्रमा पर रूस का मिशन लूना 25 (Luna 25) भारत के Chandrayaan-3 मिशन के साथ इन दिनों एक दिलचस्पी पैदा कर दिया है. अब इस बात की चर्चा तेजी से हो रही है कि दोनों मिशन में से कौन सा मिशन चांद पर पहले पहुंचेगा.
भारत ने 14 जुलाई को अपना Chandrayaan-3 मिशन लांच किया था, जो तेजी से चांद की ओर बढ़ रहा है. भारत के मिशन के बाद रूस ने भी लूना 25 मिशन चांद के लिए लांच कर दिया था. दोनों ही मिशन चंद्रमा के दक्षिणी पोल के लिए लांच किये गए है.
Chandrayaan-3 Mission:
— ISRO (@isro) August 9, 2023
Even closer to the moon’s surface.
Chandrayaan-3's orbit is reduced to 174 km x 1437 km following a manuevre performed today.
The next operation is scheduled for August 14, 2023, between 11:30 and 12:30 Hrs. IST pic.twitter.com/Nx7IXApU44
भारत- रूस के बीच एक नई रेस:
भारत- रूस के मिशनों को लेकर अब एक नई रेस शुरू हो गयी है है कि कौन सा मिशन चांद पर पहले पहुंचेगा. हालांकि भारत ने अपना मिशन रूस से पहले लांच किया था. लेकिन कहा यह जा रहा है कि रुसी लूना 25 चांद पर पहले पहुंच जायेगा.
दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बन सकता है रूस:
रूसी लैंडर मिशन के भारत से कुछ दिन पहले चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के करीब उतरने की संभावना है, जिससे रूस दक्षिणी ध्रुव के करीब सॉफ्ट-लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश बन जायेगा. हालांकि भारत भी अपना मिशन चांद के दक्षिणी ध्रुव के लिए ही लांच किया है. यदि रुसी मिशन फेल होता है तो भारत के पास चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने का मौका होगा और भारत ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश बन सकता है.
रुसी मिशन कैसे चंद्रयान से पहले पहुंचेगा?
रुसी स्पेस एजेंसी ने लूना-25 मिशन को इस सप्ताह की शुरुआत में सोयुज रॉकेट से लांच किया था. जो भारत के चंद्रयान -3 के लॉन्च के लगभग एक महीने बाद लांच किया गया है. लूना-25 मिशन कुछ ही दिनों में 3.84 लाख किलोमीटर की यात्रा तय कर लेगा.
इसके पीछे का कारण यह है कि रूसी मिशन का पेलोड भारतीय मिशन से हल्का है और रुसी रॉकेट के क्षमता भारतीय रॉकेट के तुलना में अधिक है. चंद्रयान-3 के 3,900 किलोग्राम की तुलना में लूना 25 का भार केवल 1,750 किलोग्राम है.
चंद्रयान के लैंडर-रोवर का भार 1,752 किलोग्राम है, जबकि प्रोपल्शन मॉड्यूल का भार 2,148 किलोग्राम है. जिस कारण रुसी मिशन के चंद्रयान -3 से पहले पहुंचने की पूरी संभावना है. अगले कुछ दिनों में, चंद्रयान-3 23 अगस्त को संभावित सॉफ्ट लैंडिंग की तैयारी के लिए चंद्रमा के चारों ओर अपनी कक्षा और वेग को कम कर देगा.
यह भी है कारण:
लूना-25 के भारत से कुछ दिन पहले उतरने का एक और कारण यह है कि इसके लैंडिंग स्थल पर चंद्रमा की सुबह पहले होगी. गौरतलब है कि एक चंद्र दिवस पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है. सौर पैनलों द्वारा संचालित पेलोड के साथ, चंद्र दिवस की शुरुआत में उतरने से यह सुनिश्चित होता है कि रोवर को ऑपरेट करने के लिए पूरे 14 पृथ्वी दिवस मिलते हैं.
लूना 25 से कैसे अलग है चंद्रयान -3 मिशन?
लूना 25 मिशन के हल्के होने का एक कारण यह भी है कि लूना-25 अपने साथ रोवर नहीं ले जा रहा है. चंद्रयान-3 में एक रोवर है जो 500 मीटर तक घूमने में सक्षम है. रूसी लैंडर के पास मुख्य रूप से मिट्टी की संरचना, ध्रुवीय बाह्यमंडल में धूल के कणों और चंद्रमा के सतह के पानी का पता लगाने के लिए आठ पेलोड लगे हुए है.
भारत ने क्यों चुना चांद का दक्षिणी ध्रुव:
भारतीय मिशन में चंद्रमा की मिट्टी के साथ-साथ पानी-बर्फ का अध्ययन करने के लिए भी वैज्ञानिक उपकरण लगे है. भारत ने दक्षिणी ध्रुव को इसलिए चुना क्योंकि वहां क्रेटर मौजूद हैं जो स्थायी छाया में रहते हैं, जिससे जल-बर्फ मिलने की संभावना बढ़ जाती है.
भारत-रूस स्पेस सहयोग:
भारत, रूस के साथ मिलकर कई स्पेस क्षेत्र में सहयोग स्थापित किये है. कई लोगों ने अनुमान लगाया है कि क्या रूस ने भारत के मिशन के कारण ही अपना मिशन लांच किया. हालांकि भारत और रूस लंबे समय से सहयोगी रहे हैं, खासकर जब अंतरिक्ष गतिविधियों की बात आती है. दरअसल, रूस को शुरू में भारत के चंद्रयान-2 मिशन के लिए लैंडर-रोवर डिजाइन करना था. हालाँकि फोबोस ग्रंट मिशन की विफलता के बाद यह फैसला वापस ले लिया गया था.
Congratulations, Roscosmos on the successful launch of Luna-25 💐
— ISRO (@isro) August 11, 2023
Wonderful to have another meeting point in our space journeys
Wishes for
🇮🇳Chandrayaan-3 &
🇷🇺Luna-25
missions to achieve their goals.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation