बीएस येदियुरप्पा ने कर्नाटक मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने के दो दिन बाद 19 मई 2018 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. सदन में बीजेपी के पास बहुमत के लिए पर्याप्त संख्या नहीं थी. उन्होंने तीसरी बार सीएम का पद छोड़ दिया. इस बार उनका कार्यकाल सिर्फ ढाई दिन का रहा. इससे पहले के उनके दो कार्यकालों की कुल अवधि तीन साल 71 दिन रही थी.
राज्यपाल वजुभाई वाला ने विधानसभा में बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार बनाने के लिए बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा को आमंत्रित किया था. सरकार बनाने के बाद 15 दिनों के अंदर बहुमत साबित करने को कहा था लेकिन मामला कोर्ट में चला गया.
सुप्रीम कोर्ट ने 18 मई को अपने आदेश में कहा कि बीएस येदियुरप्पा 19 मई को सदन में बहुमत साबित करें. कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट को लाइव टेलीकास्ट करने का आदेश दिया था.
पृष्ठभूमि |
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गौरतलब है कि कर्नाटक की 224 सदस्यीय विधानसभा की 222 सीट पर चुनाव कराया गया था. इस चुनाव परिणाम में भाजपा 104 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरा था.
कांग्रेस को यहां 78 सीटों पर जीत मिली जबकि जेडीएस को 37 सीटों पर जीत मिली. परिणाम आने के साथ ही कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन बना लिया था और 117 सीटें होने का दावा किया था. इन विधायकों में बसपा और केपीजेपी के एक-एक विधायक हैं तथा एक निर्दलीय विधायक भी इसमें शामिल हैं.
फ्लोर टेस्ट क्या है?
फ्लोर टेस्ट के जरिए यह फैसला लिया जाता है कि वर्तमान सरकार या मुख्यमंत्री के पास पर्याप्त बहुमत है या नहीं. चुने हुए विधायक अपने मत के जरिए सरकार के भविष्य का फैसला करते हैं.
फ्लोर टेस्ट सदन में चलने वाली एक पारदर्शी प्रक्रिया है और इसमें राज्यपाल का किसी भी तरह से कोई हस्तक्षेप नहीं होता. सत्ता पर काबिज पार्टी के लिए यह बेहद जरुरी होता है कि वह फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित करे.
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