पिछले दिनों भारत में व्यावसायिक (कमर्शियल) सरोगेसी काफी चर्चा में रहा. इसका कारण हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा इससे संबंधित प्रावधानों में संशोधन एवं नए रेगुलेसन को जारी करना था. विदित हो कि भारत ने खुद ही अपने आप को कमर्शियल सरोगेसी का सार्वभौमिक केंद्र बनाया है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने भारत में इसके बाजार का मूल्यांकन किया और बताया कि यह करीब 450 मिलियन डॉलर का है। हालांकि इस अनियमित व्यापार क्षेत्र के लिए बड़े पैमाने पर उपयोग किए जाने वाले "महान गुणवत्ता" का मूल्य 2.3 बिलियन डॉलर है। इसलिए, भारत के विधि आयोग (2009) द्वारा इसे "सोने का बर्तन" कहा था। संभवतः कम खर्चे और लाभकारी निर्देशों (जैसे, जन्म की घोषणा पर नियुक्त संरक्षकों के नाम और एक आवास में नौ महीने के लिए सरोगेटों को निरंतर देखरेख में रखना) मां– बाप बनने की योजना बना रहे दुनिया भर के अभिभावकों को भारत की ओर आकर्षित किया है।
दुनिया के ज्यादातर विकसित देशों की तुलना में भारत में गुणवत्तापूर्ण सेवाओं के साथ विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं और सुविधाएं बेहद कम मूल्य पर उपलब्ध हैं। यह चिकित्सा पर्यटन के लिए लक्ष्य बन कर आया था और अब दुनिया भर के लोग भारत में विचारणीय प्रकार के पर्यटन को स्वीकार कर चुके हैं। देश में कई लोकप्रिय और प्रचूर चिकित्सा सुविधाओं के बावजूद "भारत दर्शन" के हिस्से के तौर पर भारत को देखने और जानने के लिए पर्यटन एवं विभिन्न प्रयोजनों की वजह प्रदान कर रहे हैं।
कई वजह में से एक, व्यापार के बढ़ने ने कुछ बुरी बातों को भी उजागर किया है। ऐसा ही एक मुद्दा है– भारत में "कमर्शियल सरोगेसी" का फलना– फूलना। सरोगेसी शब्द का अर्थ होता है एक महिला आईवीएफ तकनीक समेत अन्य अलग– अलग प्रजनन तकनीकों के माध्यम से अभिप्रेत माता– पिता के बच्चे को अपने गर्भ में पालती है। इसके लिए उसे पैसे दिए जाते हैं, इसलिए इसे कमर्शियल सरोगेसी का नाम दिया गया है।
वर्ष 2002 के लिए भारत में कमर्शियल सरोगेसी को बिना किसी कानून के इजाजत दी गई थी और तब से यह चिकित्सा जगत में राक्षस उद्योग के तौर पर विकसित हो गया। हालांकि पैसों की कोई उचित संख्या प्राप्त नहीं हैं, लेकिन 2012 में विश्व बैंक द्वारा कराए गए एक अध्ययन में, भारत भर में मौजूद 3,000 शिशु अस्पतालों के साथ सरोगेसी व्यापार के करीब 400 मीलियन डॉलर सालाना होना आंका गया है।
इस तथ्य के बावजूद की भारत में सरोगेसी अरबों का उद्योग बन चुका है, भारत में सरोगेट मांओं को अमेरिका की सरोगेट मांओं को मिलने वाली धनराशि का दसवां हिस्सा भी नहीं मिलता। आईवीएफ केंद्रों की तेजी से बढ़ती संख्या, प्रशासनिक ढांचे का न होना और किराए पर कोख देने को तैयार गरीब महिलाओं तक आसान पहुंच ने भारत को सरोगेट बच्चे के लिए मां की तलाश करने वाले अप्रवासियों के लिए आकर्षक विकल्प बना दिया है। सरोगेट मांओं के कथित शोषण और उनके, बच्चों की सुरक्षा और माता– पिता के अधिकारों को लेकर कई सवाल उठाए गए हैं।
सरोगेसी पर सुप्रीम कोर्ट वर्ष 2008 में, सुप्रीम कोर्ट ने, बेबी मान्जी यामादा बनाम केंद्र सरकार के मामले में कहा था कि भारत में कमर्शियल सरोगेसी स्वीकार्य है। बेबी मान्जी ने जापानी अभिभावकों पर आरोप लगाया था (एक अस्पष्ट अंडदाता और पति के शुक्राणु के माध्यम से) और गुजरात में वह एक सरोगेट मां बनी थी। बच्चे के गर्भ में आने से पहले ही अभिभावकों का संबंधविच्छेद/ तलाक हो गया था। आनुवंशिक पिता बच्चे का संरक्षण प्राप्त करना चाहता था, लेकिन भारतीय कानून एकल पुरुष को यह अधिकार नहीं देता और जापानी कानून सरोगेसी को नहीं मानता। आखिरकार बच्चे को वीजा दिया गया था, हालांकि, इस मामले ने भारत में सरोगेसी के लिए प्रशासनिक ढांचे की जरूरत बता दी। यह एटीआर ( असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नीक्स– सहायक प्रजनन तकनीकें) (विनियमन) विधेयक, 2014 की शुरुआत थी। यहां कमर्शियल सरोगेसी के तौर पर मुख्य कानूनी भ्रम की स्थिति उभर रही है। हालांकि बच्चे को आखिरकार उसकी दादीमां को दे दिया गया, लेकिन इसने एक प्रक्रिया जो कई वर्षों तक अबाध चलती रही, के बारे में जांच– पड़ताल करने के दरवाजे खोल दिए। जांच– पड़ताल के बाद भारत का सरोगेसी (विनियमन) विधेयक का मसौदा तैयार हुआ जिसे मंत्रिमंडल ने अगस्त 2016 में पारित कर दिया।
विधियेक का नया मसौदा क्या कहता है?
इस विधेयक का नया मसौदा वैसे माता– पिता के लिए सरोगेसी को एक विकल्प बताता हैः
1. जिनके विवाह को पांच वर्ष हो चुके हैं और जिन्हें स्वाभाविक तौर पर बच्चे नहीं हो सकते,
2. जो अन्य प्रजनन तकनीकों का उपयोग नहीं कर सकते
3. जैविक बच्चे चाहते हैं और उनके रिश्तेदारों में सरोगेसी को तैयार भागीदार ढूंढ़ सकते हैं।
यह भारत के शिशु केंद्रों के लिए बड़ा झटका है क्योंकि इनमें से ज्यातादर कमर्शियल सरोगेसी से फल– फूल रहे हैं और विधेयक के वर्तमान स्वरूप के तहत उन पर प्रतिबंध लग जाएगा। कमर्शियल सरोगेसी करने पर 10 वर्षों की जेल होगी।
इस विधेयक ने ऐसे बच्चों की वैध स्थिति को स्पष्ट करने की कोशिश की है और यह सरोगेसी से होने वाले बच्चे को एक नागरिक के प्रत्येक वैध अधिकार देने की गारंटी देता है। यह विदेशों में रहने वाले भारतीयों, आप्रवासियों, अविवाहित जोड़ों, समलैंगिकों और लीव– इन रिलेश्नशिप में रहने वालों को सरोगेसी प्लान में जाने से रोकेगा। सरोगेट मां को विवाहित महिला होना चाहिए जिसने खुद एक बच्चे को जन्म दिया हो और वह न तो अप्रवासी भारतीय (एनआरआई) हो और न ही कोई बाहरी व्यक्ति। वैसे जोड़े जिनके जैविक या वैध बच्चे हों, सरोगेट बच्चा पैदा नहीं कर सकते।
मुख्य बहसः
आश्चर्य नहीं है, इस सरोगेसी विधेयक ने देश भर में और यहां तक कि विदेशों में भी मौखिक वाद– विवाद को जन्म दे दिया है। उलटे नजरिए या भावनाओं के साथ आम जनता यह कह कर इसका विरोध कर रही है कि चुनींदा वर्ग के सरोगेसी की इजाजत, यौन परिचय और जीवन के फैसलों द्वारा विधेयक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में दिए गए नागरिकों के मौलिक अधिकारों की उपेक्षा करेगा।
किसी भी मामले में, अभी तो यह विधेयक वैध मुद्दों के साथ काम करने की कोशिश कर रहा है। समलैंगिकों का अधिकार भारत में अभी भी विकासशील मुद्दा है। भारतीय दंड संहिता की धारा 377 पर लेखा परीक्षा अपील, समलैंगिक अधिकारों के दर्जे से संबंधित है, इस मुद्दे पर कोई पर्याप्त वैध फैसला नहीं किया गया है। इसके बाद अब, सरोगेट को वैध अधिकार देने के बाद समलैंगिक अभिभावकों को खुद के बच्चे का विशेषाधिकार खतरे में पड़ जाएगा। सरोगेसी (विनियमन) विधेयक भारत की समलैंगिंक आबादी के अधिकारों को तभी स्पष्ट कर सकेगा जब इन बड़े वैध सवालों (उदाहरण के लिए समलैंगिक विवाह का दर्जा) के जवाब दे दिए जाएंगे। अभी के लिए, सह–संबंधों तक सरोगेसी को समिति करना कानून के अनुसार पर्याप्त है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का अपमान करने की बजाए उसमें वर्णित युवाओं के विशेषाधिकारों की रक्षा और युवाओं को ये विशेषाधिकार देने की गारंटी देता है।
दूसरा मुख्य मुद्दा भारत में कमर्शियल सरोगेसी पर रोक लगाने और सरोगेसी का लाभ उठाने से बाहर वालों को सिमित करने से जुड़ा है। जब से कमर्शियल सरोगेसी शुरु हुई है, बाहरी लोगों समेत कमर्शियल सरोगेसी से जुड़ी घिनौनी कानूनी पूछ–ताछ शुरु हो गई है। उदाहरण के लिए 2012 में, एक ऑस्ट्रेलियाई जोड़ा जिन्हें सरोगेसी से जुड़वां बच्चे मिले थे, ने अपनी मर्जी से एक बच्चे को चुना और दूसरे को छोड़ दिया। ऐसे मामले कमर्शियल सरोगेसी से जुड़ी जटिलताओं को उजागर करती हैं।
इसी समय, हमें कमर्शियल सरोगेसी के लिए महिलाओं के दुरुपयोग के मामले पर भी गौर करना चाहिए। वर्ष 2014 में अल जजीरा ने एक कहानी दिखाई जिसमें यह बताया गया था कि कमर्शियल सरोगेसी के लिए भारतीय महिलाओं का किस प्रकार दुरुपयोग किया जाता है। इन महिलाओं ने वास्तव में एक बच्चे को नौ महीने तक अपनी कोख में पालने का कठिन काम किया था, लेकिन सुविधा के तौर पर जितने पैसे उन्हें देने का वादा किया गया था उसका 50 फीसदी से अधिक खर्च हो जाता था। पूरे वर्ष अलग– अलग समाचार रिपोर्टों में तुलनात्मक कहानियां दिखाई गईं। सरोगेट माओं को वादे के मुताबिक दिए जाने वाले पैसे के कुछ उदाहरण भी हैं लेकिन ज्यादातर सरोगेट मांओं को पैसों के मामले में निराशा और दुख ही मिलता है।
इन पंक्तियों के साथ, यह जानना किसी के लिए भी अचंभा नहीं होगा कि विश्व के ज्यादातर देशों ने कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगा रखा है। थाईलैंड, जो कुछ समय पहले तक दुनिया का कमर्शियल सरोगेसी विनिर्माण संयंत्र बनाने पर विचार कर रहा था, ने भी, सरोगेसी से जुड़वां बच्चों के माता–पिता बने ऑस्ट्रेलियाई जोड़े द्वारा डाउन्स सिंड्रोम से ग्रसित बच्चे को छोड़ने और दूसरे बच्चे को अपनाने की घटना के बाद, सरोगेसी पर प्रतिबंध लगा दिया। आज दुनिया के कई देशों में सभी प्रकार की सरोगेसी पर पूर्ण प्रतिबंध के साथ कमर्शियल सरोगेसी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा हुआ है। इस प्रकार देखा जाए तो, विश्वव्यापी मानकों (हेज कन्वेंशन ऑन अडॉप्शन जैसा बिल्कुल नहीं है, किसी भी मामले में, दुनिया में सरोगेसी की कोई सर्वमान्य परंपरा नहीं है) की अनुरुपता में भारत की सरकार द्वारा इसका बहिष्कार करना अप्रत्याशित नहीं है। फिर, कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाना चयन के लिए भी प्रवेशद्वारा खोल सकता है। भारत जैसे देश में जहां अभाव या सामाजिक शर्म खासकर युवा महिलाओं द्वारा अपने बच्चों को छोड़ने की कई कहानियां सुनने को मिलती हैं, कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाना अभिभावकों से उनके पितृत्व– मातृत्व की कल्पना को साकार करने के तरीके के तौर पर ग्रहण करने का आग्रह हो सकता है।
सरोगेट (विनियमन) मसौदा विधेयक ने भारत में सरोगेसी के मुद्दे का पूर्ण समाधान करने की कोशिश की है। हालांकि इसमें कुछ बातें हैं जो समय के साथ विकसित होंगी, विधेयक की मुख्य बात है– बिना किसी संदेह के कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाना। यह निश्चित रूप से सही दिशा में उठाया गया एक कदम है। महिला की कमजोरी का दुरुपयोग कर उसके गर्भ का व्यावसायिक लाभ उठाना बहुत गलत काम है। विकसित समाज वह होता है जिसमें सभी के विशेषाधिकार की सुरक्षा किया जाता है।
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