पूर्वी उत्तर प्रदेश में फैले जापानी इन्सेफलाइटिस अथवा दिमागी बुखार की रोकथाम और उपचार के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए 12 फरवरी 2018 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘दस्तक’ अभियान की शुरुआत की. यह अभियान इस लिए चलाया जा रहा है ताकि लोग किसी भी तरह के होने वाले बुखार में लापरवाही ना करें, क्योंकि यह जापानी इन्सेफलाइटिस का मामला भी हो सकता है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा शुरू किये गए इस अभियान के तहत जिला स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारीयों को दो दिवसीय प्रशिक्षण के साथ ही अभियान में प्रयोग किये जाने वाले ऑडियो-विज़ुअल, रेडियो विज्ञापन, इन्सेफलाइटिस से संबधित सावधानी के उपाय की सामग्री, एवं स्वच्छता किट तथा अन्य जानकारी प्रदान किया गया.
दस्तक अभियान के मुख्य तथ्य
• अभियान में प्रदेश के पाँच साल से कम उम्र के सभी बच्चों में खून की कमी की जाँच, छः माह से पाँच वर्ष तक के गंभीर कुपोषित बच्चों की पहचान और नौ माह से पाँच वर्ष तक के बच्चों को विटामिन ‘ए’ का घोल दिया जायेगा.
• साथ ही दस्त रोग, निमोनिया और जन्मजात बीमारियों से पीड़ित बच्चों की पहचान कर उन्हें निःशुल्क जाँच उपचार और परिवहन सेवा दी जायेगी.
• जापानी इन्सेफलाइटिस से प्रभावित जिलों में स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाया जा रहा दस्तक अभियान लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करेगा.
• इस अभियान में राज्य के 38 प्रभावित जिलों में टीवी, रेडियो, और समाचार पत्रों के माध्यम से जापानी इन्सेफलाइटिस से सम्बंधित जानकारी और बचाव के उपाय प्रसारित किये जायेंगे.
• स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता गोरखपुर एवं बस्ती मंडल के सात प्रभावित जिलों में घर-घर जाकर जापानी इन्सेफलाइटिस के उपचार और बचाव के बारे में लोगों को बताएँगे.
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अभियान का लाभ
'दस्तक' अभियान द्वारा लोगों को जापानी इन्सेफलाइटिस से बचाव, निगरानी और उपचार के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी. इस अभियान द्वारा ग्रामीण विकास, प्राथमिक शिक्षा और पंचायती राज विभागों के बीच एक सामंजस्य बनेगा जो समुदाय स्तर पर लोगों की जागरूकता में अहम भूमिका निभाएगा. यह अभियान मार्च से जून तक और फिर जून से नवम्बर तक बृहद रूप से चलाया जायेगा.
जापानी इन्सेफलाइटिस क्या है?
इसे दिमागी बुखार के नाम से भी जाना जाता है. यह फ्लैवी नामक वायरस के संक्रमण से फैलता है. इसकी खोज 1871 में जापान में की गयी थी इसलिए इसे जापानी बुखार के नाम से भी जाना जाता है. यह सबसे अधिक बच्चों को प्रभावित करता है इसलिए इसका उपचार समय रहते करना बहुत आवश्यक है. इसका वायरस जंगली सुअर एवं पक्षियों के माध्यम से फैलता है.
इसका सबसे पहला प्रभाव दिमाग पर पड़ता है जिससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है तथा सांस लेने में भी दिक्कत आने लगती है. प्रभावित बच्चे की आंखें लाल हो जाती हैं तथा शरीर अकड़ने लगता है. सबसे ज्यादा 1 से 14 साल के बच्चे एवं 65 वर्ष से ऊपर के लोग इसकी चपेट में आते हैं.
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