चुनाव आयोग ने दिल्ली से आम आदमी पार्टी (आप) के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की है. इस सिफारिश को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास मंज़ूरी के लिए भेजा गया है. इन सभी विधायकों पर संसदीय सचिव के तौर पर लाभ का पद लेने का आरोप है. गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने इन सभी विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था.
ऑफिस ऑफ प्रॉफिट (लाभ के पद)
संविधान के अनुच्छेद 102(1) (A) के तहत संसद के सदस्य (एमपी) या विधायक (एमएलए) ऐसे किसी पद पर नहीं रह सकते जिससे वेतन, भत्ते या अन्य फायदे मिलते हों. इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 191(1)(A) और जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 9(A) के तहत भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट में सांसदों को अन्य पद लेने से रोकने का प्रावधान किया गया है.
टिप्पणी:
यदि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद चुनाव आयोग द्वारा भेजे गए आम आदमी पार्टी (आप) के 20 विधायकों को हटाये जाने की सिफारिश मंजूर कर लेते है, तो विधानसभा की 20 सीटें खाली हो जाएंगी और दिल्ली में फिर एक बार चुनावी महौल बन जाएगा. यह पहला मामला नहीं है जब जनप्रतिनिधियों पर कोई कार्रवाई हुई है. इससे पहले सोनिया गांधी और जया बच्चन को भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट (लाभ का पद) के मामले में अपनी सदस्यता छोड़नी पड़ी थी.
पृष्ठभूमि:
अरविंद केजरीवाल सरकार ने 13 मार्च 2015 को आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों को ससंदीय सचिव नियुक्त किया था. दिल्ली के वकील प्रशांत पटेल ने राष्ट्रपति के पास आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की गुहार लगाई थी. दिल्ली सरकार ने 23 जून 2015 को ऑफिस प्रॉफिट बिल से जुड़ा संशोधन विधानसभा में पारित किया था. लेकिन जब यह मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास पहुंचा तो तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इसे खारिज कर दिया था. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दिल्ली सरकार के उस बिल को मंजूरी देने से मना कर दिया था जिसमें संसदीय सचिव के पोस्ट को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट से अलग करने का प्रावधान था.
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