पिछले कुछ वर्षों में खासकर जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार मई 2014 में केंद्र में सत्ता में आई थी, तब से केंद्र और राज्यों के बीच संघीय संबंधों में एक उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिला है.यह परिवर्तन संबंधों के सभी आवश्यक पहलुओं जैसे - खर्च वहन करने की जिम्मेदारियों का विभाजन, राजकोषीय कार्य और अंतर सरकारी हस्तांतरण व्यवस्था तथा राज्यों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता प्रदान करने का प्रयास आदि में स्पष्ट दिखाई देता है. परिवर्तन को और अधिक गति देने के लिए राष्ट्रीय संस्थान जैसे नए संस्थानों की स्थापना की गई और जीएसटी परिषद का गठन किया गया. अतः आज की पृष्ठभूमि में वित्तीय राजकोषीय संबंधों से जुड़े कुछ प्रमुख उपाय और केंद्र-राज्य राजकोषीय संबंधों पर उनके प्रभाव को समझना बहुत जरुरी है.
वस्तु एवं सेवा कर: वस्तु और सेवा कर या जीएसटी 1 जुलाई 2017 से पूरे देश में शुरू किया गया था. जीएसटी में 'एक राष्ट्र, एक बाजार की परिकल्पना के कारण अप्रत्यक्ष करों - एक्साइज, सर्विस, बिक्री कर, जकात, इत्यादि को एक ही नियम के अंतर्गत ला दिया गया है. इसके क्रियान्वयन से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए जीएसटी परिषद को अनुच्छेद 279 (1) के तहत केंद्र और राज्यों से संबंधित एक संवैधानिक निकाय के रूप में गठित किया गया था.
चूंकि परिषद ने सीजीएसटी और एसजीएसटी दरों का फैसला किया है, इसलिए यह सुनिश्चित करता है कि स्टेट, स्टेट लेवल के मैक्रो-एकोनोमिक डिसीजन लेने में महत्वपूर्ण भागीदार हैं. इससे पहले जीएसटी रेजीम के अंतर्गत केंद्र सरकार के दायरे में आने वाले करों को तय करने में राज्य शामिल नहीं थे. हालांकि, फ्लिप पक्ष पर राज्यों ने राज्य सूची के तहत आने वाले विषयों की कर दरों का निर्धारण करने में अपनी स्वायत्तता खो दी है. पहले राज्य सरकार अपने खर्च की आवश्यकताओं, राजस्व आधार आदि से जुड़े अपने कर दरों को तय करती थी. राज्यों की विकास की आवश्यकताओं के अनुरूप कर दरों के निर्धारण में असमर्थता की वजह से राज्यों को फंड हेतु केंद्र पर निर्भर होना पड़ेगा.
नीति आयोग : 1 जनवरी 2015 को विकास संबंधी मामलों पर सरकार को नीतिगत जानकारी प्रदान करने के लिए नीती आयोग को एक थिंक टैंक के रूप में स्थापित किया गया था. इसे अपने पूर्ववर्ती योजना आयोग के विपरीत राज्यों को समायोजित करके 'टीम इंडिया' की भावना पर बनाया गया था. यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि इसकी शासी परिषद में सभी राज्यों के मुख्य मंत्री शामिल होते हैं. निर्णय लेने में राज्य सरकारों की भागीदारी से देश में आर्थिक और सामाजिक नियोजन सुनिश्चित कर विकेंद्रीकरण के जरिये नागरिकों की आकांक्षाओं को बेहतर तरीके से पेश करती है. नीति आयोग राज्यों को एक पक्षपातपूर्ण आधार पर संसाधनों के आवंटन में केंद्र की भेदभावपूर्ण प्रवृत्तियों को भी कम करता है.
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14 वां वित्त आयोग: चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशों को मोदी सरकार द्वारा 2015-20 के लिए स्वीकार किया गया था. 5 साल की अवधि के दौरान केंद्र से राज्यों द्वारा 42 प्रतिशत की दर से कर प्राप्तियां, प्राप्त करना निश्चित किया गया था जो कि 13 वें वित्त आयोग द्वारा सुझाए गए दर की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक है.
केंद्र प्रायोजित योजनाओं का पुनर्गठन : वित्त वर्ष 2016-17 के प्रारम्भ से केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) को कुल 66 परियोजनाओं से घटाकर 28 योजनाओं तक सीमित कर दिया गया है. हाल में वित्त आयोग द्वारा संसाधनों के हस्तांतरण में वृद्धि के साथ साथ योजनाओं की संख्या में कमी, केंद्रों पर राज्यों की निर्भरता को कम करता है. यह राज्य सरकारों को अपनी जरूरतों के अनुसार योजनाओं को डिजाइन करने में भी सुविधा प्रदान करता है.
ओडीए पार्टनर्स से सीधे उधार लेने हेतु राज्य संस्थाओं को अनुमति दे रही है : अप्रैल 2017 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आर्थिक रूप से ठोस राज्य सरकार की संस्थाओं को द्विपक्षीय आधिकारिक विकास सहायता (ओडीए) भागीदारों से सीधे उधार लेने के लिए मंजूरी दे दी. उदाहरण के लिए जिका, महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के कार्यान्वयन हेतु दिशानिर्देश देगी तथा राज्य सरकार की संस्थाओं को बड़ी परियोजनाओं के लिए सीधे वित्तपोषण करने की इजाजत देगी.इसलिए कल्याणकारी योजनाओं पर राज्यों का खर्च प्रभावित नहीं होगा और वे व्यवहार्यता अंतर निधि (वीजीएफ) के लिए केंद्र पर निर्भर नहीं होंगे.
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'बाहरी संबंधों' को बनाए रखने में राज्य सरकारों की भूमिका : पिछले कुछ सालों से केंद्र ने राज्यों को द्विपक्षीय संबंधों में सुधार करने के लिए प्रोत्साहित किया है. उदाहरण के लिए मई 2015 में मोदी की चीन यात्रा के दौरान भारतीय राज्यों और चीनी प्रांतों ने एक राज्य / प्रांतीय नेता फोरम स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की. इसी तरह वाराणसी, हैदराबाद, बेंगलोर, आदि जैसे कई भारतीय शहरों ने विकसित देशों के बड़े शहरों के साथ सिस्टर सिटी पार्टनरशिप समझौतों पर हस्ताक्षर किए. इन समझौतों के जरिये विकास के लिए वित्तीय, तकनीकी और मानव संसाधनों को आकर्षित करने में शहरों को मदद मिलेगा.इस प्रकार केंद्र पर राज्यों की निर्भरता कम होगी.
संक्षेप में उपरोक्त उपायों से यह संकेत मिलता है कि शहरी स्थानीय निकायों सहित राज्य सरकारों को केंद्र से अपनी स्थानीय जरूरतों को पूरा करने के लिए वित्तीय संसाधनों को बढ़ाने और योजनाओं को डिजाइन करने की स्वतंत्रता प्राप्त होगी.
निष्कर्ष
भारत में बाजार अर्थव्यवस्था तेजी से नेहरूवादी और इंदिरा गांधी काल के केंद्रीकृत कमान अर्थव्यवस्था की जगह ले रही है. बाजार की अर्थव्यवस्था में सभी स्तरों पर सरकारों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है क्योंकि उन्हें स्थानीय जरूरतों के अनुरूप सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए नीतियों और कार्यक्रमों को डिज़ाइन करना और कार्यान्वित करना पड़ता है. अतः राज्यों और स्थानीय निकायों के लिए वित्तीय स्वायत्तता आवश्यक है. उपरोक्त प्रवृत्तियों से यह पता चलता है कि हालांकि एक दशक पहले की तुलना में अब राज्य सरकारें अधिक सशक्त हैं लेकिन स्थानीय सरकार वित्तीय स्वायत्तता के मामले में अभी भी पिछड़ रही है.
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