सितंबर 2017 के पहले सप्ताह को राष्ट्रीय पोषण सप्ताह के रूप में मनाये जाने की मनसा से नीति आयोग ने सितम्बर के पहले सप्ताह में राष्ट्रीय पोषण रणनीति जारी की. इस रणनीति के तहत राष्ट्रीय विकास एजेंडे में पोषण को लाने और एक व्यापक तरीके से पोषण की समस्या से निपटने का प्रयास करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. अतः इस सन्दर्भ में इस रणनीति की दृष्टि,लक्ष्य,कार्यान्वयन रणनीति और राष्ट्रीय पोषण रणनीति के अपेक्षित परिणामों को समझना आवश्यक है.
राष्ट्रीय पोषण रणनीति की आवश्यक्ता
खासकर कमजोर वर्गों जैसे - महिलाओं और बच्चों के बीच देश की वर्तमान दयनीय पोषण स्थिति को सुधारने के उद्देश्य से राष्ट्रीय पोषण रणनीति का शुभारंभ किया गया. वर्तमान पोषण स्थिति का मूल्यांकन एनएफएचएस -3 और 4 के नीचे दिए गए तथ्यों के आधार पर किया जा सकता है.
• 2015-16 में 5 वर्ष से कम उम्र के कुपोषण के शिकार बच्चों का प्रतिशत 38.4% था.
• 2005-06 और 2015-16 के बीच अवरुद्ध विकास वाले बच्चों की संख्या 19.8% से बढ़कर 21% हो गयी. इनकी सर्वाधिक संख्या पंजाब, गोवा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और सिक्किम में दर्ज की गई थी.
• ग्रामीण इलाकों में कम वजन वाले बच्चों की संख्या 38% थी जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 29% है.
• डब्लूएचओ के अनुसार, 2.5 किग्रा से कम वजन वाले शिशुओं में इससे अधिक वजन वाले बच्चों की तुलना में मरने की संभावना 20 गुना अधिक होती है.
• लगभग 19 प्रतिशत बच्चों का राष्ट्रीय औसत वजन 2.5 किग्रा से कम है.
• एक अनुमान के अनुसार, भारत में लगभग 58% बच्चे रक्तहीनता के शिकार हैं. ऐसा विटामिन, लोहा और अन्य आवश्यक खनिजों की पोषक तत्वों की कमी के कारण है.
सौभाग्य योजना : विशेषताएं, लाभ और चुनौतियाँ
राष्ट्रीय पोषण रणनीति की मुख्य विशेषताएं -
विजन: राष्ट्रीय पोषण रणनीति का विजन 2022 तक कुपोषण मुक्त भारत की स्थापना करना है.
फोकस: जितना जल्दी संभव हो सके जीवन चक्र से कुपोषण को कम करने तथा रोकने का उपाय करना. विशेष रूप से प्रारंभ के तीन वर्षों में.
लक्ष्य: सर्वाधिक समावेशी विकास हेतु मातृ, शिशु और बाल मृत्यु दर में कमी कर राष्ट्रीय पोषण रणनीति के जरिये प्रमुख राष्ट्रीय विकास में योगदान करना.
• 2022 तक 5 साल से कम उम्र के कम वजन वाले बच्चों की प्रतिशतता में कमी लाकर वर्तमान 35.7% से घटाकर 20.7% तक करना.
• बच्चों में एनीमिया (6-59 महीने) की उपस्थिति में कमी को वर्तमान में 58.4% से नीचे लाकर 2022 तक 19.5% तक करना.
• महिलाओं और लड़कियों (15-49 वर्ष) में एनीमिया को 2022 तक 53.1% से घटाकर 17.7% तक लाना.
• दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में इस रणनीति का मुख्य उद्देश्य 2030 तक सभी प्रकार के कुपोषण की घटनाओं में कमी लाना है.
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लाभ
इस रणनीति के निरीक्षण जन्य उपलब्धियों के जरिये, प्राथमिक शिक्षा, बेहतर प्रौढ़ उत्पादकता, महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता जैसे राष्ट्रीय विकास एजेंडे में व्यापक योगदान दिया जा सकता है. इस उपलब्धि से वैश्विक सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में भी सहयोग मिलेगा. इसके अतिरिक्त इसके कार्यान्वयन से निम्नांकित सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलेंगे -
• मातृत्व अवरोधकों तथा एनीमिया की घटनाओं का उपचार कर मातृत्व मृत्यु दर के 1/5 हिस्से को कम किया जा सकता है.
• जन्म के पहले घंटे के अन्दर स्तनपान की प्रारंभिक शुरुआत के सार्वभौमिक अभ्यास को सुनिश्चित करके नवजात मृत्यु दर के 1/ 5 हिस्से को रोका जा सकता है.
• पहले छह महीनों के लिए सार्वभौमिक रूप से सिर्फ स्तनपान (2 वर्ष और उससे अधिक समय तक स्तनपान कराने के साथ) सुनिश्चित करने और 6 महीने के बाद उचित पूरक आहार देने की प्रथाओं को सुनिश्चित करके बाल मृत्यु दर (पांच वर्ष से कम) को कम किया जा सकता है.
• पहले छह महीनों तक सिर्फ स्तनपान के सार्वभौमिक अभ्यास के माध्यम से पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर को 16% तक कम किया जा सकता है जबकि उचित पूरक आहार के सार्वभौमिक अभ्यास के माध्यम से अन्य मामलों में बच्चों की मृत्यु दर को 5% तक कम किया जा सकता है.
निष्कर्ष
पोषण के क्षेत्र में कार्य या निवेश करना पूरे विश्व में विशेष रूप से–सबसे कमजोर बच्चों, लड़कियों और महिलाओं के महत्वपूर्ण सामाजिक विकास के साथ साथ उनके मानव अधिकारों की पूर्ति के संदर्भ में अपनी सार्वभौमिक पहचान रखता है. आजीवन सीखने की क्षमता और वयस्क उत्पादकता को बढ़ाने की कला के विकास के साथ साथ संक्रमण, संवेदनशीलता, विकलांगता और मृत्यु दर की घटनाओं को कम करने के जरिये यह मानव विकास की आधारशिला की स्थापना करता है. नीति आयोग की राष्ट्रीय पोषण रणनीति सरकार के विकास संबंधी दायित्वों को प्राप्त करने की दिशा में एक सार्थक पहल है.
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