फ्रांस के भूतपूर्व प्रधानमंत्री फ्रेंकोइस फिलन ने फ्रांस में राष्ट्रपति पद के लिए हुए आरंभिक चुनाव में जीत दर्ज की है. उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी एलियन जुप्पे (Alain Juppe) को भारी मतों से हराया. जुप्पे के 30.5% वोटों के मुकाबले उन्हें करीब 69.5% वोट मिले.
राष्ट्रपति पद के अंतिम दौर में वे नेशनल फ्रंट की नेता मरिन ली पेन के खिलाफ होंगे. ये चुनाव 2017 में कराए जाएंगे.
फिलन का राजनीतिक अभियान मुख्य रूप से पूर्ण रूप से आर्थिक सुधार संबंधी वादों के इर्द– गिर्द घूमता रहा जबकि जुप्पे का अभियान मध्यम मार्ग को अपनाता एवं लोकलुभावने वादों के प्रति लोगों को सचेत करता नजर आया.
फिलन द्वारा अभियानों में किए गए कुछ वादे:
• सरकारी खर्च में कटौती
• आव्रजन को न्यूनतम करना
• परंपरागत पारिवारिक मूल्यों का समर्थन
• रुस और उसके राष्ट्रपति– व्लादिमीर पुतिन के साथ दोस्ताना संबंध
जब बात देश की अर्थव्यवस्था की आती है तो जुप्पे का आदर्शवाद कमोबेश फिलन से मेल खाता नजर आता है जैसे लोक सेवकों की संख्या को कम करना, सेवानिवृत्ति की उम्र को बढ़ाकर 62 से 65 वर्ष करना और सप्ताह में 35 घंटे काम करने की परंपरा को खत्म करना आदि.
रुस के प्रति उनका आदर्शवाद बिल्कुल भिन्न था क्योंकि उन्हें लगता था कि रूस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने की बजाए फ्रांस को पुतिन पर और अधिक दबाव बनाना चाहिए.
देश की जातीय, धार्मिक और सामाजिक विविधता के प्रति जुप्पे का रवैया अधिक सहिष्णु था जिसकी वजह से संभवतः उन्हें शुरुआती बढ़त मिली थी. हालांकि, अंतिम कुछ सप्ताहों में फिलन के समर्थकों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी की वजह से वे चुनाव हार गए.
फिलन के लिए उनकी सबसे बड़ी चुनौती अब भी बरकार है. उनकी प्रतिद्वंद्वी ली पेन स्थान– विरोधी अभियान (anti-establishment campaign) चला रही हैं और मुख्य रूप से उनके निशाने पर हैं आप्रवासियों, फ्रांस के बड़े मुस्लिम अल्पसंख्यकों और यूरोपीय संघ. वर्तमान राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने अगले वर्ष चुनावी दौड़ में खुद के होने या न होने के बारे में अभी तक घोषणा नहीं की है.
हालांकि जब तक चुनाव होंगे, 2007- 2012 तक फ्रांस के प्रधानमंत्री रह चुके 62 वर्षीय फिलन के पास राष्ट्रपति चुनाव जीतने का अविश्वसनीय रूप से अच्छा मौका हो सकता है।
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