केरल के इडुक्की जिले में मिलने वाले मरयूर गुड़ को हाल ही में भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्रदान किया गया है. मरयूर गुड़ का निर्माण सदियों से पारंपरिक विधि द्वारा किया जाता है जिसके चलते इसे जीआई टैग के लिए चयनित किया गया. 
राज्य के कृषि विभाग द्वारा दो वर्ष तक किये गये प्रयासों के बाद ही मरयूरी गुड़ को भौगोलिक संकेत हासिल हुआ है. जीआई टैग मिलने से क्षेत्रीय गन्ना किसानों को उनकी फसल के लिए अपेक्षित लाभ मिलने की आशा है.
|   लाभ  |  
|   वर्तमान में किसानों को मरयूर गुड़ के लिए प्रति किलो 45 से 47 रुपये का दाम मिलता है, परन्तु इसकी अपेक्षित कीमत 80-100 रुपये प्रति किलोग्राम है. कई क्षेत्रों में मरयूर किस्म की नकली गुड़ भी बड़े पैमाने पर बेची जाती है, जिसके कारण वास्तविक मरयूर गुड़ की कीमत भी कम ही रह जाती है. मरयूर गुड़ को जीआई टैग मिलने से उपभोक्ताओं को वास्तविक मरयूर गुड़ मिलेगा और किसानों को इसका अच्छा दाम भी मिलेगा.  |  
भौगोलिक संकेत (जीआई टैग)
•    जीआई टैग अथवा भौगोलिक चिन्ह किसी भी उत्पाद के लिए एक चिन्ह होता है जो उसकी विशेष भौगोलिक उत्पत्ति, विशेष गुणवत्ता और पहचान के लिए दिया जाता है और यह सिर्फ उसकी उत्पत्ति के आधार पर होता है.
•    ऐसा नाम उस उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी विशेषता को दर्शाता है.
•    दार्जिलिंग चाय, महाबलेश्वर स्ट्रोबैरी, जयपुर की ब्लूपोटेरी, बनारसी साड़ी और तिरूपति के लड्डू कुछ ऐसे उदाहरण है जिन्हें जीआई टैग मिला हुआ है.
•    जीआई उत्पाद दूरदराज के क्षेत्रों में किसानों, बुनकरों शिल्पों और कलाकारों की आय को बढ़ाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचा सकते हैं.
•    ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले हमारे कलाकारों के पास बेहतरीन हुनर, विशेष कौशल और पारंपरिक पद्धतियों और विधियों का ज्ञान है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहता है और इसे सहेज कर रखने तथा बढ़ावा देने की आवश्यकता है.
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