एडलमैन की ट्रस्ट बैरोमीटर-2019 रिपोर्ट के अनुसार, सरकार, कारोबार, एनजीओ और मीडिया के लिहाज़ से भारत दुनिया के सबसे भरोसेमंद देशों में शामिल है. हालांकि, देश के कारोबारी ब्रांड की विश्वसनीयता इनमें सबसे कम है.
विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) के वार्षिक सम्मेलन के शुरू होने से पहले 21 जनवरी 2019 को जारी की गई एडलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर-2019 रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वैश्विक विश्वसनीयता सूचकांक तीन अंक के मामूली सुधार के साथ 52 अंक पर पहुंच गया है.
एडलमैन की ट्रस्ट बैरोमीटर-2019 रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने जागरूक जनता और सामान्य आबादी के भरोसा सूचकांक में अपनी अलग पहचान बनाई है. हालांकी कारोबारी ब्रांडो की विश्वसनीयता के मामले में अभी हमारे देश को इस दिशा में और काम करने की जरूरत है. एडलमैन एक अमेरिकी सार्वजनिक संबंध और विपणन परामर्श फर्म है, जिसे डैनियल एडलमैन द्वारा स्थापित और नामित किया गया है. यह वर्तमान में अपने बेटे रिचर्ड एडलमैन द्वारा चलाया जाता है. |
रिपोर्ट से संबंधित मुख्य तथ्य:
• चीन जागरूक जनता सूचकांक में 79 और सामान्य आबादी के भरोसा सूचकांक में 88 अंकों के साथ शीर्ष पर है.
• भारत इन श्रेणियों में क्रमश: दूसरे और तीसरे नंबर पर है.
• यह सूचकांक एनजीओ, कारोबार, सरकार और मीडिया में भरोसे के औसत पर आधारित है.
• यह निष्कर्ष 16 अक्टूबर से लेकर 16 नवंबर 2018 तक 27 बाजारों में किए गए ऑनलाइन सर्वे पर आधारित है. इनमें 33,000 से अधिक लोगों के जवाब को शामिल किया गया है.
ब्रांड विश्वसनीयता:
ब्रांड की विश्वसनीयता के मामले में स्विट्जरलैंड (71 प्रतिशत), जर्मनी (71 प्रतिशत) और कनाडा (70 प्रतिशत) की कंपनियां शीर्ष पर हैं. 69 प्रतिशत के साथ जापान इन देशों के बाद आता है. वहीं, इस मामले में चीन के 41 प्रतिशत, भारत एवं ब्राजील के 40-40 प्रतिशत और मैक्सिको के 36 प्रतिशत हैं.
मीडिया सबसे भरोसेमंद:
खबरों के विश्वसनीय स्रोतों के मामले में ‘खोज’ और ‘पारंपरिक मीडिया’ सबसे अधिक भरोसेमंद हैं. इसे मामले में खोज और पारंपरिक मीडिया के 66 अंक है, जबकि सोशल मीडिया 44 अंकों के साथ भरोसे के मामले में नीचे है. वहीं, 73 फीसदी लोग झूठी सूचना या फर्जी खबरों को हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जाने को लेकर चिंतित हैं.
भविष्य को लेकर निराशावाद की भावना:
रिपोर्ट के अनुसार भविष्य को लेकर निराशावाद की भावना बढ़ रही है. सर्वे में शामिल तीन से एक को ही विश्वास है कि अगले पांच वर्षों में विकसित दुनिया में उनका परिवार बेहतर स्थिति में होगा. वहीं, पांच में से एक का मानना है कि सरकार उनके लिए काम कर रही है, जबकि 70 फीसदी इसमें बदलाव चाहते हैं. इसके अतिरिक्त 100 फीसदी रोजगार वाले अर्थव्यवस्था में रहने वाले लोगों को भी नौकरी खोने की आशंका अधिक रहती है.
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