इंडिया वर्सेज पाकिस्तान : व्हाई कान्ट वी जस्ट बी फ्रेंड्स : हुसैन हक्कानी
मई 2016 के दूसरे सप्ताह में आने वाली किताब इंडिया वर्सेज पाकिस्तान : व्हाई कान्ट वी जस्ट बी फ्रेंड्स? सुर्खियों में रही. इस किताब को अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने लिखा है.
भारत– पाकिस्तान के रिश्ते पर लिखी गई इस किताब ने विवादों को जन्म दे दिया है क्योंकि इसमें 26/11 को भारत में किए गए आतंकी हमलों में पाकिस्तान की भूमिका का खुलासा है.
किताब में आईएसआई के पूर्व मुख्य जनरल पाशा के 24 और 25 दिसंबर 2008 को वाशिंगटन दौरे के बारे में जिक्र है जहां उसने चक्कर में डालने वाला प्रवेश किया था. उस दौरे के दौरान जनरल पाशा ने लेखक के सामने कबूल किया था कि 26/11 के हमलावर "हमारे लोग" थे लेकिन वह "हमारा ऑपरेशन" नहीं था.
हुसैन हक्कानी कौन हैं?
• हुसैन हक्कानी पाकिस्तान के अग्रणी दक्षिण एशिया विशेषज्ञ, पत्रकार, शिक्षाविद, राजनीतिक कार्यकर्ता और श्रीलंका एवं अमेरिका में पाकिस्तान के भूतपूर्व राजदूत हैं.
• उन्होंने पाकिस्तान पर दो किताबें लिखी हैं. ये किताबें हैं– पाकिस्तानः बिटविन मॉस्क एंड मिलिट्री (Pakistan: Between Mosque and Military) और मैग्निफिसेंट डेल्युशंसः पाकिस्तान, द यूनाइटेड स्टेट्स एंड एन एपिक हिस्ट्री ऑफ मिसअंडरस्टैंडिंग (Magnificent Delusions: Pakistan, the United States, and an Epic History of Misunderstanding).
• फिलहाल वे वाशिंगटन, डी.सी. में हडसन इंस्टीट्यूट में सीनियर फेलो और दक्षिण एवं मध्य एशिया के निदेशक है.
• 1980 से 1988 तक उन्होंने पत्रकार के तौर पर काम किया और फिर नवाज शरीफ के राजनीतिक सलाहकार और बेनजीर भुट्टो के प्रवक्ता के तौर पर काम किया.
• वर्ष 1992 से 1993 तक वे श्रीलंका में पाकिस्तान के राजदूत रहे.
• वर्ष 1999 में तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की सरकार की आलोचना करने की वजह से निर्वासित किया गया था.
• अप्रैल 2008 में उन्हें पाकिस्तान का राजदूत नियुक्त किया गया था, लेकिन उनका कार्यकाल मेमोगेट घटना के बाद समाप्त कर दिया गया था. इसमें दावा किया गया था कि वे पाकिस्तान के हितों की रक्षा करने के लायक नहीं है.
• पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग का गठन किया था. जून 2012 में जारी किए गए आयोग कि रिपोर्ट के अनुसार उन्हें पाकिस्तान में अमेरिका के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप की इजाजत देने वाले मेमो को प्राधिकृत करने के लिए दोषी घोषित किया गया था. हालांकि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने इस बात का उल्लेख किया है कि आयोग ने सिर्फ अपनी राय व्यक्त की थी.
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