लोकसभा में 3 अगस्त 2017 को बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक 2017 ध्वनिमत से पारित हो गया. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को डूबे ऋणों से राहत दिलाने हेतु रिजर्व बैंक को व्यापक नियामक अधिकार देने संबंधित बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक पारित किया गया.
मुख्य तथ्य:
• नये कानून के तहत रिजर्व बैंक को यह अधिकार मिल जायेगा कि वह फंसे कर्ज की वसूली के लिये जरूरी कारवाई शुरू करने संबंधी निर्देश बैंकों को दे सके.
• विधेयक को अरुण जेटली ने 31 जुलाई 2017 को सदन के पटल पर रखा था. इससे संबंधित अध्यादेश को मई में दोबारा जारी किया गया था.
• इस बिल को पारित करने पर इस पर सदन में व्यापक चर्चा हुई. चर्चा में शामिल होते हुए शिवसेना ने देश में सहकारी बैंकों पर भी सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों की तरह ध्यान दिये जाने की मांग सरकार से करते हुए कहा कि सहकारी क्षेत्र के बैंकों के बड़े नेटवर्क को देखते हुए सरकार को इनके प्रति नजरिये को बदलना होगा.
• विधेयक संसद में पारित होने के बाद इससे जुड़े 1949 के कानून को संशोधित करेगा और इस संबंध में जारी अध्यादेश का स्थान लेगा. इससे रिजर्व बैंक को डूबे कर्जों के मामले में कार्रवाई करने की ज्यादा ताकत मिलेगी.
• अध्यादेश के माध्यम से पहले ही आरबीआई बैंकों को कर्ज नहीं चुकाने वाली कंपनियों के खिलाफ बैंकरप्सी प्रक्रिया शुरू करने का आदेश देने का अधिकार मिल गया है.
• उल्लेखनीय है कि डूबे हुए कर्जों में से 25 प्रतिशत हिस्सा केवल 12 बड़े कर्जदारों का है. इस मामले में आरबीआई ने प्रक्रिया शुरू कर दिया है.
• फिलहाल सार्वजनिक बैंकों पर रू 9 लाख करोड़ का एनपीए है.
औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए उनके द्वारा जारी किए गए कुल ऋण का 13.11 प्रतिशत के चिंताजनक स्तर पर पहुंच चुका था. लिहाजा इस चलन पर रोक लगाने के लिए रिजर्व बैंक को व्यापक अधिकार देने की आवश्यकता महूसस की गई. मौजूदा संशेाधन विधेयक इसी उद्देश्य से लाया गया है.
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